
राँची: झारखंड विधानसभा अध्यक्ष रवींद्रनाथ महतो की संवैधानिक शक्ति में दुमका उप-चुनाव का भविष्य ढूंढा जा सकता है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा इस सीट को खाली किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी को अब यह सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि यदि विधानसभा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता घोषित करने में अपनी संवैधानिक ताकत पर अड़े रहते हैं तो क्यों नहीं बाबूलाल को दुमका उप – चुनाव में जीत दिलाकर इस मामले को हमेशा के लिए एक संविधानिक तरीके से ही खत्म कर दिया जाए।
फिलहाल हेमंत सरकार का ग्राफ कुछ अच्छा नहीं दिखता, खासकर कोरोना काल में जिस तरह से उन्होंने राज्य को हैंडल किया वह उनके लिए कई दिशाओं ने परेशानी का कारण बना हुआ है।
मामला है झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के भारतीय जनता पार्टी में विलय के बाद विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अभी तक मरांडी को प्रतिपक्ष का नेता घोषित करने से इनकार करते रहने का, जबकि चुनाव आयोग ने इस विलय को मान्यता दे दिया है और भाजपा ने अपनी तरफ से मरांडी को सदन में अपना नेता बना दिया है।
यहां पर विधानसभा अध्यक्ष अपने असीम संवैधानिक ताकत का प्रयोग करते दिखाई पड़ रहे हैं और इस मुद्दे पर बहुत सारी बातें स्पष्ट नही हो पा रही हैं।
ऐसे में भाजपा बाबूलाल मरांडी जैसे शक्तिशाली राजनीतिज्ञ को बैठा के तो नहीं रख सकती। उनकी ताकत का इस्तेमाल करने के लिए ही उनकी पर्टी का विलय हुआ था। वे झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
यह लड़ाई अब सीधे तौर पर जेएमएम बनाम भाजपा बनती जा रही है तो दुमका विधानसभा के उप चुनाव में दोनों दल दो -दो हाथ करने से गुरेज नहीं कर सकते।
जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जीत के बाद दुमका सीट को खाली कर अपनी पार्टी के लिए सबसे बड़ा खतरा मोल लिया है। वह पिछले चुनाव में बरहेट और दुमका से लड़े थे और दोनों स्थानों पर जीते और फिर उन्होंने दुमका को खाली कर दिया।
यह दोनों इलाका झारखंड के संथाल परगना में है जहां से जेएमएम को जमीनी ताकत मिलती रही है। किंतु पिछले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा के सुनील सोरेन ने जेएमएम सुप्रीमो शिबु सोरेन को दुमका से पराजित कर दिया तो उनके पुत्र हेमंत सोरेन का इस सीट को विधानसभा में जीतकर और फिर मुख्यमंत्री बनकर खाली कर देने का मतलब यही निकाला जा रहा है कि हेमंत ने भाजपा को विधानसभा का यह सीट एक प्रकार से थाली में परोस कर देने की गलती कर दी है!
अब इसी का फायदा भाजपा उठा सकती है यदि पार्टी बाबूलाल मरांडी को यहां से उप-चुनाव लड़ा दे तो, ऐसे विचार पार्टी के अंदर उठते दिख रहे हैं।
हालांकि रांची में बाबूलाल मरांडी इस बात से इंकार कर रहे हैं कि वे दुमका से उप-चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
किन्तु मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हल के दुमका दौरे के बाद भाजपा के कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता जिस प्रकार से दुमका उप चुनाव की तैयारी कर रहे हैं उसे देखने से ऐसा लगता है कि भाजपा कोई बड़ा खेल खेलने जा रही है।
मामला सिर्फ एक उप चुनाव भर जीतने का नहीं है। यदि भाजपा ने फिर से बाबूलाल को अपनी पार्टी में लाया है तो वह इतना तो जरूर चाहेगी कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बेबजह अपनी शक्ति का दुरूपयोग कर जिस प्रकार आदिवासी वोट बैंक को बर्बाद कर दिया उसे बाबूलाल मरांडी पार्टी के लिए फिर से समेट दें। इतनी ताकत तो बाबूलाल में है कि वह भाजपा के बिगड़े खेल को पटरी पर ला सकते हैं, वरना रघुवर राज में सब कुछ ठीक होते हुए भी झारखंड की सत्ता हाथ से क्यों निकल गयी?
निशाना है विखरे हुए आदिवासी वोटों को फिर से एकत्र करना। दुमका उप चुनाव में जेएमएम से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन जोर लगा सकते हैं। सोरेन परिवार में यही एक नेता हैं जो अभी तक सदन तक नही पहुँच पाए हैं। एक बार इन्हें राज्यसभा भेजने की कोशिश की गई थी किन्तु चुनाव हार गए।
फिर सोरेन परिवार में पुत्रवधु सीता सोरेन ने कुछ ऐसे मुद्दे और पर्टी पर आरोप लगा दिए हैं जिससे पार्टी घर और बाहर दिनों जगह परेशान सी दिखती है। अब इन चीजों को सिर्फ हेमंत सोरेन ही संभाल सकते हैं। इसीलिए उन्होंने हाल में दुमका का तीनदिवसीय दौरा किया।
दुमका उप चुनाव एक खतरनाक मोड़ पर है जहां से जेएमएम की राजनीतिक भविष्य तय होगी। जानकर मानते हैं कि यदि बाबूलाल मरांडी को मौका मिला और खुदानख़्सते जेएमएम गड़बड़ाई तो पूरे संथाल समाज पर भजपा फिर से अपनी खोई हुई पकड़ बना लेगी! और फिर विधानसभा अध्यक्ष को अपने लटकाए हुए फैसले पर पुनर्विचार करना होगा।