मानसिंह

भारत में कुछ ऐसे ब्रिटिश सैनिक अधिकारी हुए जिन्होंने बेहतरीन किताबें लिखी हैं जिनमें कैप्टन चार्ल्स स्टीवर्ट (1764-1837) की रचना “दि हिस्ट्री ऑफ बंगाल” अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
चार्ल्स स्टीवर्ट 1781 से 1808 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के बंगाल आर्मी में रहा। वह भारत के प्राचीन भाषाओं के जानकार थे और 1800 से 1806 तक उन्होंने कलकत्ता के फोर्ट विलियम कालेज में अरबी, पर्शियन और हिंदुस्तानी भाषाओं की शिक्षा दी।
उनकी रचना दि हिस्ट्री ऑफ बंगाल में इस बात का जिक्र बड़ा ही रोचकता से किया गया है कि बंगाल का गवर्नर मानसिंह (1550-1614) ने अकबर (1542-1605) की मृत्यु के कुछ दिनों पहले अचानक से बंगाल के गवर्नर पद से जो त्यागपत्र दिया था उसका कारण एक षड्यंत्र था। मान सिंह तब राजमहल (आज का झारखण्ड) में रहता था और 1592 से 1605 तक यहीं से बंगाल पर शासन किया। उसी ने राजमहल को बंगाल की राजधानी बनाई थी।
चार्ल्स स्टीवर्ट लिखता है कि मानसिंह की एक रिश्तेदार थी जगत गोसाईं (1573-1619) जिसकी शादी जहाँगीर (1569-1627) से हुई थी और शाहजहां (1592-1666) इसी जगत गोसाईं का पुत्र था। जगत गोसाईं को इतिहास में मान बाई के नाम से भी पुकारा जाता है।
मामला यह हुआ था कि अकबर के एक वजीर जिसका नाम अजीम खां था की बेटी की शादी शाहजहां से हुई थी। ऐसे में मानसिंह और वजीर अजीम ख़ाँ के कॉमन इंट्रेस्ट थे कि अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर को नजरअंदाज कर क्यों नहीं शाहजहां को मुगल बादशाह बनाया जाए।
चार्ल्स स्टीवर्ट के अनुसार, इस षड्यंत्र में मानसिंह को बीस हजार राजपूतों का सहयोग प्राप्त था। फिर अचानक से मानसिंह ने राजमहल के गवर्नर पद से त्यागपत्र दे दिया और अजीम खां के साथ मिलकर एक षड्यंत्र करने अकबर के दरवार में जा पहुचा। अकबर ने बंगाल के एक बेहतरीन गवर्नर के रूप में और राजमहल को एक अच्छी राजधानी बनाने के एवज में मानसिंह को 7000 घुडसवारों का सरदार बनाया था जो हैसियत उन दिनों मुगल दरवार में किसी के पास नही थी।
चार्ल्स स्टीवर्ट लिखता है कि अकबर मृत्यु शैया पर था जब 25 अक्टूबर 1605 को जहाँगीर ने मानसिंह और अजीम खाँ के षड्यंत्र के बारे में अकबर को सारी जानकारी दी। अकबर ने मानसिंह और अजीम खां दोनो को बुलाया और फटकार लगाते हुए अपने विश्वासी अधिकारियों के समक्ष जहाँगीर को अपना उत्तराधिकारी घोसित कर दिया। दो दिनों बाद अकबर की मृत्यु हो गई।
‌अब मानसिंह के पास कोई चारा नहीं था वह शाहजहां के साथ एक रात चुपके से यमुना नदी में एक नाव पर सवार हो फरार हो गया।
जब जहाँगीर ने सत्ता संभाली तब उसने इस घटना को भुलाते हुए एक बार फिर मानसिंह को राजमहल भेज दिया। इस बार मानसिंह एक महीने तक ही राजमहल में रहा। उसके बाद उसे जहाँगीर ने दक्षिण भारत को संभालने के लिए भेज दिया।
(विशेष जानकारी के लिए डॉ ब्रजेश वर्मा की हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘राजमहल’ पढ़ें)
(फोटो- साभार गूगल)

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.