
1893 में एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका नाम “इंट्रोडक्शन टू हिन्दुइज्म” था। इस किताब के लेखक गुरु प्रसाद सेन थे जो 19वीं सदी के अंत में बिहार के एक सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व थे।
मूल रूप से इतिहास में गुरु प्रसाद सेन को ‘दि बिहार हेराल्ड’ के संपादक के रूप में जाना जाता है किंतु बिहार के प्रबुद्ध वर्ग पर उनका जो प्रभाव था उसकी एक अंतहीन कथा है।
गुरु प्रसाद सेन (1842-1900) मूलतः बिहार के निवासी नही थे , उनका जन्म पूर्वी बंगाल (आज का बांग्लादेश) में हुआ था जो 1864 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इतिहास में बीए के गोल्ड मेडलिस्ट और एम ए के टॉपर रहे। 1885 में उन्होंने कांग्रेस की स्थापना का समर्थन किया और 1895 में वे बंगाल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य भी चुने गए।
गुरु प्रसाद बंगाली समाज के एक ताकतवर व्यक्तित्व थे। उन्हें पटना रास आया और उन्होंने दि बिहार हेराल्ड के संपादक बनकर अपनी सारी जिंदगी गुजरी।
सच्चिदानंद सिन्हा ने उनके विषय में लिखा है कि जब वे ब्रिटेन से पढ़कर 1893 में पटना वापस वकालत करने को आये तो गुरु प्रसाद सेन जो उनसे सीनियर लॉयर थे ने उन्हें अपने घर दिन के भोजन पर बुलाया और पूरे इंग्लिश स्टाइल में भोजन कराया।
खाने के उसी मेज पर गुरु प्रसाद सेन ने सच्चिदानंद सिन्हा को अपने बैरिस्टर पुत्र से परिचय कराया। उनके पुत्र के एक दोस्त सेवा राम जो लाहौर में रहते थे की बेटी राधिका से सिन्हा की शादी की बात चलाई और बाद में उन्ही से सिन्हा की शादी हो गई।
इस मित्रता के बावजूद बिहार के निर्माण की लड़ाई में सच्चिदानंद सिन्हा और गुरु प्रसाद सेन के बीच वैचारिक रूप से सदा मतभेद रहा। सच्चिदानंद सिन्हा ने जब “दि बिहार टाइम्स” नामक अखबार की स्थापना 1894 में की और बंगाल से बिहार को अलग कर एक नए प्रान्त की मांग की तब गुरु प्रसाद सेन ने अपने अखबार ‘ दि बिहार हेराल्ड’ के माध्यम से उनका सबसे अधिक विरोध किया।
उस समय गुरु प्रसाद सेन का मानना था कि बिहारियों में अपने खुद के अलग प्रान्त को चलाने की काबीलियत नहीं थी।
हालांकि उन्होंने इसका विरोध किया किन्तु अखबार की उस दुनिया जिसमें बिहार ने लगभग पहला कदम रखा था उन्होंने दुनिया को बिहार की महानता से परिचय करा दिया था।
(फोटो: साभार गूगल)