
रांची महिला कॉलेज के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ ऊर्वशी की उपन्यास चंदना की समीक्षा :-
सबसे पहले डॉ ब्रजेश वर्मा को इस किताब के लिए बहुत बधाई। आपने बहुत अच्छा विषय चुना है। यह झारखंड के लिए एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय है जिस पर बहुत कम लिखा गया है।
उपन्यास का आरंभ होता है रिटायर फौजी मंगल सिंह से हुए साइबर फ्रॉड से। साइबर क्रिमिनलों ने मंगल सिंह के अकाउंट से उसकी सारी जमा पूंजी ( ₹400000) निकाल ली ।जिसके बाद घटनाक्रम जुड़ते जाते हैं और पहाड़िया जनजाति की नवयुवती चंदना इसमें आ जुड़ती है। घटनाएं कुछ इस तरह रची गई हैं कि पाठक रहस्य रोमांच में खुद को डूबा हुआ पाता है।
फौजी मंगल सिंह का मित्र है रामधनी सिंह। यह एक बुजुर्ग सिपाही है जिसके पास घर की बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं । बेटे को इंजीनियरिंग पढ़ाना है, बेटी को पटना में कोचिंग के लिए भेजना है ,आरा शहर में धीमी गति से बन रहे अपने अधूरे मकान को पूरा करना है। नौकरी खत्म होने वाली है और मकान का कुछ ही हिस्सा बन पाया है। उसका जीवन तनाव में गुजर रहा है। हालांकि वह एक बहादुर सिपाही है मूल रूप से ईमानदार भी है लेकिन एक कमजोर समय में उससे गलती हो जाती है। एक मजबूर इंसान से वह घूस ले बैठता है और जिले के एसपी उसे सस्पेंड कर देते हैं । इसके बाद से रामधनी सिंह के घर में तनाव का माहौल है।
रामधारी सिंह और मंगल सिंह की मित्रता की गहराई इतनी है कि दोनों एक दूसरे के दुःख से दुःखी हो जाते हैं और हर संभव एक दूसरे की मदद करने को तैयार यह दोनों दोस्त मित्रता की मिसाल पैदा करते हैं। दोस्ती की परख भी वहीं होती है जहां अपने मतलब को पीछे की ओर धकेल दिया जाता है। इंसान की जरूरत चाहे कितनी ही बड़ी क्यों ना हो दोस्त यदि संकट में है तो उसे अपनी जरूरत का साधन नहीं बनाया जा सकता।
घटनाक्रम को ऐसे बनते हैं कि एसपी साहब ने सस्पेंडेड सिपाही रामधनी सिंह और रिटायर फौजी मंगल सिंह को साइबर क्राइम की जांच की जिम्मेदारी दी है। जांच के क्रम में वे जामताड़ा आते हैं जो साइबर क्राइम के लिए जाना जाता है ।इस शहर से थोड़ी दूर एक अनजान सा गांव है जो इतना उन्नत है कि यहां के लोगों के घरों के दरवाजे रिमोट से खोले और बंद किए जाते हैं और यहां बसते हैं साइबर अपराध के माहिर खिलाड़ी।
यह साइबर अपराधियों ने किस तरह अपनी जड़े जमा ली हैं लेखक ने विस्तार से उसका वर्णन किया है। एक महिला पात्र है मामूनी। यह भी एक साइबर अपराधी है। मंगल सिंह के अकाउंट से रुपए उड़ा लिए गए हैं उड़ाने वाला केशव है जो कि साइबर अपराधियों में सबसे शातिर अपराधी है । अपराधियों के बॉस का नाम मार्कोश है। जिसको पता चल गया है कि गलत जगह हाथ डाला गया है ।जिस आदमी के बैंक अकाउंट को खाली किया गया है वह संकट पैदा कर सकता है ।क्योंकि वह भारतीय सेना का एक रिटायर्ड जवान है ।उसकी प्रोफाइल भी उसने चेक कर ली है। जिससे उसे पता चला कि नॉर्थ ईस्ट के बॉर्डर पर उसने आतंकवादियों का सामना किया था ।धुन का पक्का है। और अब आरा के एसपी ने अपनी पुलिस को जामताड़ा भेजने का फैसला किया है। जिसके साथ वह जवान भी होगा। इन सारी खबरों के खबरची कौन होंगे यह भी पाठकों के दिमाग में कौंध जाता है।
जामताड़ा भेजा जाता है मामूनी को। आसनसोल से जामताड़ा की दूरी बहुत अधिक नहीं है। मामूनी जानती है कि वह कुछ ही देर में पहुंच जाएगी। उसे अपने मोबाइल पर एक सन्देश का इन्तजार है। वह बार-बार किसी को मैसेज भेजती रहती है, किन्तु जब उधर से कोई जवाब नहीं आता तो वह अपने फोन का स्वीच ऑफ कर संथाल परगना के सुन्दर पठारों का अवलोकन करने लगती है। वह देखती है-दूर-दूर तक भूमि बंजर है। जमीन पर छोटे-छोटे शिलाखंड इस तरह दिख रहे हैं मानों पत्थरों के पेड़ उगे हों। ये सभी जीवित पत्थर हैं, जो करोड़ों वर्षों बाद एक विशाल पहाड़ का रूप ले लेंगे। इतिहास के किसी कालखंड में ज्वालामुखी के उथल-पुथल से इनका उदय हुआ होगा। कहीं भी कोई हरे-भरे खेत नजर नहीं आते। पहाड़ों से निकली हुई सभी छोटी नदियाँ सूखकर तपती हुए रेत बन चुक हैं। यहाँ इंसानों के घर तक नजर नहीं आते। सिर्फ पलाश के बिखरे बागीचे जिनमें लाल-लाल फूल खिले हुए हैं और जो उस गर्म वातावरण में दरख्तों पर लटकी हुई आग सी प्रतीत होती हैं, मन को मोहती रहती हैं। पलाश झारखण्ड की पहचान है; उसे जंगल की आग से भी परिभाषित किया गया है।
मार्कोश के आदेशानुसार केशव जामताड़ा से भागकर उस जगह के करीब पहुंचता है जहां चंदना रहती है। उपन्यास की नायिका चंदना अपना परिचय कुछ इस तरह देती है:-
“मैं चंदना हूँ; पहाड़िया आदिम जन-जाति की एक संतान, जिनके पूर्वज राजमहल की पहाड़ी श्रृंखलाओं में तब से रहते आए हैं, जब भारत में सिन्धु घटी सभ्यता का अंत हुआ था। महोदय, आप जब दुनिया की उन अच्छी किताबें, महत्वपूर्ण दस्तावेजों और सरकार की फाइलों को देखेंगे, तो हर जगह हमारी पहचान मिलेगी। मैं राजमहल की पहाड़ियों में रहती हूँ और प्रकृति ही मेरा घर है। आपलोग यह उम्मीद करेंगे कि मेरी आने वाली संतानें भी अगले कई सदियों तक उन पहाड़ों और जंगलों के संरक्षण में रहेंगी; किन्तु अब यह महज आपकी कल्पना ही होगी।”
अपने घर जंगल और पहाड़ के प्रति चंदना कितनी संवेदनशील है यह उपन्यास के कई पृष्ठों में झलकता है। अपने आसपास की खत्म होती पहाड़ियों को देखकर वह उन्हें बचाने की सोचती है। उपन्यास का एक अंश है जिसमें:-“वह पानी में जितनी बार डुबकी लगाती है, उसके दिल में क्रोध की ज्वाला और भी भड़कती जाती है। वह अशांत हो उठती है। अचानक से वह अपने | हाथों के पंजों को एकसाथ जोड़कर उसे अपने सिर के ऊपर लाती है फिर लोट्टामुंह पर्वत को नमन करती हुई अपनी स्थानीय मालतो भाषा में जोर से चीख उठती है,
“हे जंगल के देवता! मुझे करोड़ों साल से बहते हुए इस झरने की राजमहल की पहाड़ी श्रृंखलाओं को बचाने की शक्ति दे!”
चंदना के इस व्यवहार से स्रान कर रही सारी स्त्रियाँ विचलित नजरों से उसकी तरफ देखने लगती हैं। वे स्त्रियाँ जानती हैं कि राजमहल की इस पहाड़ी श्रृंखला में चंदना एक जीवित ‘वन देवी’ की तरह है। वे स्त्रियाँ यह भी जानती हैं कि इस तुंग शिखर पर चारों तरफ फैले घनघोर जंगलों में एक अकेली चंदना ही है, जिसके पास किताबी ज्ञान है। उसे देख राजमहल की पहाड़ियां भी नाज करती होंगी। रोमी, जो ठीक उसके करीब स्नान कर रही होती है, अचानक से चंदना को अपनी भुजाओं में जकड़ लेती है।
“यह अचानक से क्या हो गया तुम्हें?”
चंदना अभी भी लोट्टामुंह पर्वत के शिखर की ओर शून्य आँखों से देख रही है। उसे कुछ भी होश नहीं रहता कि उसके अचानक से किए गए इस व्यवहार से पास खड़ी स्नान कर रही स्त्रियाँ उसके विषय में क्या सोचने लगी हैं। वह एक झटके में खुद को रोमी की बाँहों से अलग करते हुए कहती है,
“अब लड़ाई करनी होगी। अब यदि समय को हाथ से निकल जाने दिया गया तो राजमहल की पहाड़ी श्रृंखलाएं हमारी आने वाली पीढ़ियों को कभी भी माफ़ नहीं करेंगी। लोग यहाँ जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. किन्तु हमसबों को अब अपने पहाड़ों के लिए लड़ना होगा।”
साइबर अपराधी केशव के पकड़े जाने के पीछे भी चंदना का योगदान है उसे केशव से सहानुभूति भी है साथ ही वह चाहती है कि वह अपने किए गए अपराधों की सजा पाकर पाप मुक्त हो जाए वह गवाह के तौर पर कोर्ट में पेश की जाती है वहां भी केशव के बहाने वह अपने परिवेश की रक्षा की बात करती है:- “महोदय, आप भारत में किसी भी मानवशास्त्री के पूछ लीजिये, वे सभी एकमत होकर कहेंगे कि राजमहल की पहाड़ी श्रृंखलाएं प्राचीन जीवों, फलों, फूलों, अनाजों, प्राचीन मानवों के हथियारों और पत्तों के जीवाश्म को खोजने और उनपर शोध करने का एक सबसे उत्तम स्थान है। हर साल दर्जनों मानवशास्त्री अपने युवा छात्रों के साथ हमारी उन पहाड़ियों पर आते हैं, जहाँ हमलोग भारत में सिकंदर के आक्रमण से भी पहले से रहते आ रहे हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के दरवार में रहने वाला यूनान के एक दूत मेगास्थनीज ने हमारी संस्कृति का जिक्र किया है और फिर इन्हीं बातों को चीन के यात्री ह्वेनसांग ने भी दोहराया। तो फिर उन पहाड़ों को पत्थरों के व्यापार के लिए तोड़ देना क्या आपके सामने खड़े इस अपराधी से भी बड़ा अपराध नहीं है?”
“महोदय, दुनिया की सबसे बड़ी संस्था, यूनाइटेड नेशंस, जिसमें अपने महान देश भारत की भूमिका सदा से ही प्रगतिवादी रही है, वह भी इस बात को मानकर चलती है कि जंगलों और पहाड़ों के विनाश के साथ ही सभ्यताओं का भी विनाश हो जाएगा। ब्रिटिश भारत में राजमहल का एक सर्वे कराया गया था। सर्वे करने वाले अधिकारी का नाम फ्रांसिस बुकानन था। उसने इस बात का जिक्र किया है कि तेलियागढ़ी किले, जिसे बंगाल का द्वार भी कहा जाता था, के ठीक बगल से, महज तीन सौ साल पहले, गंगा नदी बहती थी। अब गंगा नदी के कोई भी निशान यहाँ पर नहीं हैं, किन्तु तेलियागढ़ी का किला जर्जर अवस्था में आज भी इतिहास की गवाही दे रहा है। लेकिन, विडंबना देखिये महोदय, उस किले के आसपास के पहाड़ों को भी पत्थरों के व्यापर के लिए तोड़ा जा रहा है, जबकि भारत पुरातत्व विभाग ने उस किले को एक संरक्षित ऐतिहासिक स्थान स्वीकार किया है।”
“महोदय, मैं अपने साथ कुछ चित्र लेकर आयी हूँ और आपके सामने पेश करने की इजाजत चाहती हूँ,” इतना कहकर चंदना राजमहल के दारोगा को देखती है। वह अपने बैग से कुछ फोटोग्राफ निकालकर चंदना को देता है। वह उन चित्रों को जज को देते हुए वह कहती है,
“महोदय, ईस्ट इंडिया कंपनी का पहला लेंडस्केप चित्रकार विलियम होजेस 1781 के आसपास राजमहल आया था। उसने इस इलाके के जो चित्र बनाए वे सभी ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित हैं। आप गौर से उन चित्रों को देखें कि राजमहल की पहाड़ियां कितनी खूबसूरत हुआ करती थीं।”
फिर वह कहती है, “दुनिया में वही सभ्यता जिंदा रहती है, जिसके लोग अपने धरोहर की इज्जत करते हैं।” फिर चंदना और भी कुछ चित्र पेश करते हुए कहती है, “सर, ये चित्र आजकल तोड़े जा रहे पहड़ों के हैं। क्या दोनों चित्रों में कोई मेल हैं, जबकि दोनों एक ही स्थान के हैं? टूटे हुए पहाड़ बहुत ही बदसूरत दिखाई देते हैं महोदय।” जब ये पहाड़ नहीं रहेंगे तब गंगा नदी के बालू हवाओं में उड़कर संथाल परगना में फ़ैल जाएंगी। इलका एक विद्यावान में तब्दील हो जाएगा। हजारों पशु-पक्षियों का पता भी नहीं चलेगा कि वे सब कहाँ चले गये। और, भारत की एक सबसे प्राचीन सभ्यता सदा के लिए विलुप्त हो जाएगी।”
चंदना रुकती नहीं है, फिर से कहती है, ‘महोदय! एक सबसे महत्वपूर्ण बात। यदि जंगलों को उजाड़ दिया गया तो वे फिर से उगाए जा सकते हैं, किन्तु जमींदोज कर दिए गए पहाड़ों को कभी भी फिर से नहीं उगाया जा सकता!”
यहां चंदना की दादी की बात गलत साबित हो जाती है। दादी अपने अनुभव ज्ञान को ज्यादा समृद्ध बताते हुए कहती है:-मैंने तुमसे अधिक दुनिया देखी है। सौ पेज की किताब को पढ़ने से अधिक ज्ञान सौ कदम चलने में होता है। मैंने अपने सर पर लकड़ियों के बोझे को रख कर दुनिया देखी है। दुनिया का बोझ इस पहाड़ के वजन से भी भारी होता है बेटी। राजमहल पहाड़ जो हमें जीवन देता है। यह अपने आसपास रहने वालों को संरक्षण देता है। यह पहाड़ न होता तो हमारी आदिम जन-जाति भी न होती। लेकिन अपने जीवन के संघर्ष में दादी ने अपनी प्रकृति को थोड़ा कम महत्व दिया है लेकिन इस महत्व को चंदना विशेषकर समझती है। चंदना की दादी के अनुभव से ज्यादा समृद्ध चंदना है यह सिद्ध हो जाता है।
पूरे उपन्यास में एक हिस्सा मुझे थोड़ा अटपटा लगा वह यह था कि आरा से गई हुई टीम ने गाड़ी वाले को किराए के रूप में ₹10 दिए :- “ये हुई न बात, मेहनत का कमाते खाते हो, पैसे क्यों नहीं लोगे?” इतना कहकर मंगल सिंह एक दस का सिक्का अपनी जेब से निकाल कर उसे देता है।
रहस्य रोमांच से भरपूर यह उपन्यास बेहद पठनीय है। उपन्यास की पहली पंक्ति से आखरी पंक्ति तक यह उत्सुकता बनी रहती है कि अब क्या घटित होगा । किसी भी रचना की यह सबसे बड़ी विशेषता है जो पाठकों को बांधे रखती है।