सच्चिदानंद सिन्हा
अली इमाम
लार्ड मिंटो

लार्ड मिंटो, सच्चिदानंद सिन्हा और अली इमाम:-बिहार निर्माण के तीन स्तम्भ:

सितंबर 1910 में शिमला में वायसराय लार्ड मिंटो ठहरे हुए थे। उन्होंने सच्चिदानंद सिन्हा को दिन के भोजन पर आमंत्रित किया।
डायनिंग टेबल पर दोनों के बीच जो बातें हुईं उसके पीछे ही बिहार निर्माण की घटना छिपी हुई थी।
लार्ड सिन्हा (1863-1928), जिन्हें सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा उर्फ एस पी सिन्हा के नाम से भी जाना जाता है ने भारत सरकार से आग्रह कर लॉ मेम्बर के पद से त्यागपत्र देने की बात कही थी।
लार्ड मिंटो के सामने सवाल यह था कि लार्ड सिन्हा की जगह ब्रिटिश सरकार के लॉ मेम्बर के पद पर किसे बहाल किया जाए। इसी पर सलाह लेने के लिए मिंटो ने बिहार के सच्चिदानंद सिन्हा को दिन के भोजन पर शिमला बुलाया।
सच्चिदानंद सिन्हा बिहार को बंगाल से अलग कर एक प्रान्त बनाना चाहते थे जिसके लिए आंदोलन जारी था। मिंटो ने सिन्हा से कहा कि चूंकि लार्ड सिन्हा ने लॉ मेम्बर के पद से त्यागपत्र देने की इच्छा जताई है तो वे चाहते हैं कि इस पद पर कोई मुसलमान को बहाल करें।
मिंटो ने कहा कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय से इस पद पर बम्बई हाई कोर्ट के जज जस्टिस दावर को नियुक्त करने का आग्रह किया गया है। इसपर मिंटो सच्चिदानंद सिन्हा से सलाह चाहते थे।
सच्चिदानंद सिन्हा ने जो सलाह दी उसी से बिहार निर्माण का कार्य पूरा हुआ। सिन्हा ने कहा कि चूंकि बम्बई हाई कोर्ट के जज जस्टिस दावर ने बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के मामले में सजा सुनाई है तो उन्हें भारत सरकार का लॉ मेम्बर बनाने से देश में हंगामा होगा।
चूंकि लार्ड मिंटो इस पद पर किसी मुसलमान को बिठाना चाहते थे तो सच्चिदानंद सिन्हा ने अपने मित्र अली इमाम के नाम का सुझाव दिया जो उन दिनों कलकत्ता हाई कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे।
मिंटो राजी हो गए और उन्हेंने सच्चिदानंद सिन्हा से कहा कि अली इमाम को इस पद पर आने के लिए उन्हें ही मनाना होगा। मिंटो ने इस संबंध में अली इमाम का नियुक्त पत्र सिन्हा के हाथों दिया और कहा कि वे स्वयं कलकत्ता जाकर उन्हें दें।
सिन्हा शिमला से सीधे कलकत्ता पहुचे। किन्तु अली इमाम ने जब इस पद को लेने से इनकार कर दिया तब सच्चिदानंद ने उन्हें बिहार निर्माण की दुहाई दी और समझाया कि यदि वे इस पद को स्वीकार करते हैं तभी बिहार को बंगाल से अलग किया जा सकता है।
अब अली इमाम मजबूर हो गए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के लॉ मेंबर के पद को स्वीकार कर लिया। सिन्हा ने उनसे लिखित फ़ैसला मंगा। इमाम ने लिखकर दिया और सिन्हा ने खुद पोस्टऑफिस जाकर उस पत्र को रजिस्टर डाक से वायसराय मिंटो को भेज दिया।
जब अली इमाम भारत सरकार के लॉ मेम्बर बन गए तब उन्होंने बिहार में चल रहे आंदोलन की असलियत सरकार को बताई और बिहार को बंगाल से अलग करने के लिए राजी कर लिया।
ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम दिसंबर 1911 में दिल्ली दरबार के लिए पधारे। उन्होंने भारत की राजधानी कलकत्ता से हटा कर दिल्ली करने की घोषणा की और साथ ही बिहार तथा उड़ीसा को मिलाकर एक अलग प्रान्त बनाने की भी।
सच्चिदानंद सिन्हा का मिशन पूरा हो चुका था। जब 1911 में बिहार बन गया तब एक दिन वे लार्ड सिन्हा से मिलने गए। लार्ड सिन्हा काफी गुस्से में थे। उन्होंने कहा कि यदि वे जानते कि सच्चिदानंद सिन्हा वायसराय मिंटो को अपने प्रभाव में लेकर अली इमाम को लॉ मेम्बर बनाकर बिहार को बंगाल से अलग करने की राजनीति कर रहे थे तो वे कभी भी लॉ मेम्बर के पद से अपना त्यागपत्र नहीं देते। लार्ड सिन्हा की बातें सुन सच्चिदानंद सिन्हा मुस्कुरा उठे।

(इन घटनाओं की विशेष जानकारी के लिए डॉ ब्रजेश वर्मा की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक, बिहार-1911 पढ़ें, जो अमेजॉन और न्मया प्रेस पर उपलब्ध है)

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.