4 सितंबर 1763 को राजमहल के उधवा नाला (अब झारखंड) में बंगाल के अपदस्त नवाब मीर कासिम (-1777) और ईस्ट इंडिया कंपनी के मेजर थॉमस एडम्स (1730-1764) की सेनाओं के बीच 24 घंटे तक चली लड़ाई में, ऐसा कहा जाता है कि, यदि मीर कासिम जीत जाता तो वह मुंगेर की जगह राजमहल में अपनी राजधानी बनाता।
1757 में हुई प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला की पराजय के बाद अंग्रेजों ने उसके सेनापति मीरजाफ़र को बंगाल का नवाब बनाया, किन्तु फिर से उठे मनमुटाव के कारण अंग्रेजों ने उसे हटा कर उसके दामाद मीर क़ासिम को नबाब बना दिया और जब अंग्रेजों की उससे भी नहीं पटी तो 1763 में उसे अपदस्त कर फिर से मीरजाफ़र को नवाब बना दिया।
उधवा नाला की लड़ाई की यही पृष्ठभूमि है। जब मीर कासिम बंगाल का नवाब था तब उसने राजमहल में एक किले का निर्माण करना शुरू किया। इसकी पहचान बुकानन ने भी अपने सर्वे के दौरान 1810-11 में की थी। किन्तु मीर कासिम उधवा नाला की लड़ाई हार गया और फिर उसने राजमहल को त्याग कर मुंगेर का रुख किया जहां उसने एक शानदार किले का निर्माण कराया।
उधवा नाला की लड़ाई के चालीस वर्षों के अंदर ही राजमहल स्थित मीर कासिम के किले की एक -एक ईंट उखाड़ कर मुर्शिदाबाद भेज दिए गए थे। कुछ समय के लिए इस किले में ब्रिटिश फौजें भी रहीं। अब यह किला राजमहल में नहीं दिखता।
ऐसे में उधवा नाला का युद्ध एक ऐतिहासिक मोड़ माना जाता है बंगाल की सत्ता के लिए।
उधवा राजमहल शहर से कुछ किलोमीटर दूर गंगा के किनारे बसा एक इलाका है जो अब पक्षी अभयारण्य के रूप में जाना जाता है।आज जो पक्षी अभयारण्य है वहीं पर मीर कासिम और अंगेजी सेनाओं की 1763 में खूनी भिड़ंत हुई थी।
मीर कासिम की तरफ से एक कुख्यात और अंग्रेजों का सबसे बड़ा दुश्मन वाल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रे (1725-1778)लड़ रहा था। यह व्यक्ति वास्तव में एक फ्रेंच सैनिक था जिसकी प्रेम कथा बेगम समरू के साथ जगत प्रसिद्ध है। बेगम समरू उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सरधना नामक स्थान की थी। ऐसा कहा जाता है कि पहले वह एक तवायफ थी जो रेनहार्ड सोम्ब्रे के प्रेम में पड़ी और जब उसने शादी रचा ली तो अपना नाम बेगम समरू रख लिया। उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपने एस्टेट सरधना में सुंदर चर्च बनवाए।
किन्तु वाल्टर रेनहार्ड सोम्ब्रे इस रूप में कुख्यात माना जाता है कि उसमें पटना में लगभग 150 अंग्रेजों की हत्या की थी जिसके कब्र और शिलालेख आज भी पटना सिटी के पुराने अस्पताल के पास हैं। वह 1763 की उधवा नाला लड़ाई में मीर कासिम के साथ था।
दूसरी ओर ईस्ट इंडिया कंपनी की कमान मेजर एडम्स के हाथों थी जो बहुत ही कम उम्र का था। वह बंगाल की सेना में 1762 में ही आया था और उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई। उसका सहयोग केप्टन जेम्स इरविन, कैप्टन बड़ेनबुर्ग, कैप्टन मोरेन और केप्टन मैकलीन दे रहे थे।
लड़ाई 4 सितंबर 1763 की सुवह शुरू हुई और अगले दिन शाम तक चली। वह मानसून का समय था और गंगा नदी अपने उफान पर थी। पूरा इलाका झील में बदल गया था। इस लड़ाई में नावों का खूब प्रयोग हुआ। मीरकासिम की सेना में किराए के भगोड़े अधिक थे।
लड़ाई इतनी भयानक हुई किस्में मीर कासिम के 15 हजार सैनिक मारे गए। अंग्रेजों की ओर से केप्टन वुडेनबर्ग मार गया और लेफ्टिनेंट हैम्पटन घायल हुए। अंग्रेजों ने मीर कासिम के 100 से अधिक तोपों, घोड़े और हथियारों पर कब्जा कर लिया। दोनों तरफ से भरी क्षति हुई किन्तु जीत अंग्रेजों की हुई।
आम तौर पर उधवा नाला की लड़ाई को याद नहीं किया जाता। किन्तु यह लड़ाई प्लासी और बक्सर की लड़ाई के बीच हुई थी जिसने 1764 में बक्सर की लड़ाई को जन्म दिया था और जिसमें मीर कासिम का साथ मुगल बादशाह शाह आलम द्वीतीय तथा अवध का नवाब सुजाउद्दोला दे रहे थे, किंतु जीत अंग्रेजों की हुई और भारत की किस्मत ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों चली गई।
