यदि आपको हुमायूं (1508-1556) के बारे में फर्स्ट हैंड जानकारी चाहिए तो निश्चित रूप से आपको 16वीं सदी की लेखिका गुलबदन बेगम (1523-1603) की किताब हुमायूंनामा पढ़नी चाहिए।
गुलबदन बेगम ने यह किताब फारसी भाषा में लिखा था जो 1902 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी। वह बाबर (1483-1530) की बेटी और हुमायूं की बहन थी।
गुलबदन बेगम का जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था और बाद में मुगल बादशाह अकबर (1542-1605) ने उन्हें आगरा बुला लिया।
ऐसा कहा जाता है कि गुलबदन बेगम एक बेहतरीन कथावाचक थी और इसी से प्रेरित होकर अकबर, जो खुद पढ़ा लिखा नहीं था, ने उन्हें अपने पिता हुमायूं की जीवनी को लिखने का आग्रह किया था।
खुद अकबर की जीवनी अबुलफजल (1551-1602) ने लिखी थी जो अकबरनामा के नाम से जाना जाता है।
गुलबदन बेगम की किताब हुमायूंनामा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसमें मुगलकाल के उतार चढ़ाव का जिक्र तथा शेरशाह के हाथों हुमायूं की पराजय और सत्ता खोने की कहानी से लेकर अकबर के जन्म के बारे में भी चर्चा है।
गुलबदन बेगम की पुस्तक में झारखंड के राजमहल के टेलियागढी की भी चर्चा है जहां 1538-39 में शेरशाह (1472-1545 ) के बेटे जलाल खां की सेना ने हुमायूं की सेना को एक महीने तक बंगाल में प्रवेश करने से रोक दिया था। तब टेलियागढी बंगाल का द्वार कहलाता था और शेरशाह ने गौड़, आधुनिक मालदा के पास, जो बंगाल की राजधानी थी पर कब्जा कर लिया था। हुमायूं के सेनापति जहाँगीर कुली बेग को शेरशाह के पुत्र जलाल खां ने घायल कर दिया था।
मुगल काल के आरंभिक दिनों की मूल घटनाओं की जानकारी के लिए गुलबदन बेगम रचित हुमायूंनामा काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह भी कम नहीं कि वह 16वीं सदी की एक लेखिका थी।
(साभार गूगल फोटो)
