
चीजों का मृत हो जाना कांके डैम का लाइट एंड साउंड
अनुमान लगाकर वस्तुस्थिति तक नहीं भी पहुंचा जाए तो किसी योजना के असमय मृत हो जाने का अनुमान तो लगाया ही जा सजता है; जैसा कि झारखंड की राजधानी रांची के कांके डैम पार्क में लाइट एंड साउंड को देखकर लगता है।
शिलापट्ट पर लिखा है कि इसे 2012 में बनाया गया। आठ साल के अपने शिशुअवस्था में ही इसकी मौत भी हो गई।
कभी-कभी लगता है कि हर चीज हल इलाके में शूट नहीं कर सकता। सम्भवतः कांके डैम के लाइट एंड साउंड में यही हुआ होगा।
दूसरा अनुमान यह है कि 2012 के बाद 2014 में जब दूसरे दल की नई सरकार का गठन झारखंड में हुआ तब उसने अपने पूर्ववर्ती सरकार के कामों को जानबूझकर मृत होने दिया होगा।
यदि यह अनुमान सही है तो इसके पीछे जलन का सिद्धांत काम कर रहा होगा जो आज की राजनीति में परवान है।
तो, फायदा किसको हुआ? शायद उन लोगों को जिन्होंने इसके निर्माण में पैसे बनाए। नुकसान तो आम लोगों का हुआ।
तीसरा अनुमान यह लगाया जा सकता है कि यहां लाइट एंड साउंड का कार्यक्रम कमजोर रहा होगा और थोड़े दिनों बाद लोगों ने इसे उबाऊ मानकर इससे दूरी बना ली होगी। संचालकों ने इसे अपडेट नही किया होगा।
इस इलाके को देखकर ऐसा लगता है यहां पर कुछ सुरक्षा संबंधी समस्याएं भी रही होंगी। ऐसे कार्यक्रम हमेशा रात्रि में हुआ करते हैं जिनकी ओर सबसे अधिक महिलाएं और बच्चे आकर्षित होते हैं। उन्हें अपनी सुरक्षा का खतरा महसूस हुआ होगा और लोग वहां जाने से परहेज करने लगे होंगे।
हर चीज हर जगह के लिए नहीं होती। बहुत सारे जगहों के लोग बहुत सारी चीजों को डिजर्व भी नहीं करते!!