जब आधुनिक दुनिया की शुरुआत में टेलीविजन नहीं था, तब फ्रांस में रूसो, मांटेग्यू, वाल्तेयर और दिदरों पैदा हुए और उन्होंने जो लिखा उससे वहां इतनी बड़ी क्रांति हुई कि स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे का विचार आया।
फिर देशों के एकीकरण का युग आया। इटली में मेजिनी, केवूर और गेरिवाल्डी आये तो तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा। जब जर्मनी में बिस्मार्क अपनी गुप्त संधियों की नीतियों से दुनिया को प्रभावित कर रहा था उससे पहले कार्ल मार्क्स ने अपने लेखिनी के माध्यम से दुनिया को दो सिद्धान्तों में बांट दिया।
इजिप्ट में जगलूल पाशा थे तो चीन में सुन यात सेन। और भारत में राजा राम मोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक अवतरित हुए। अमेरिका में अब्राहम लिंकन और मार्टिन लूथर किंग जूनियर थे तो रूस में टालस्टाय, गोर्की और इवान तुर्गनेव।
इनमें से कोई भी फेंकते नहीं थे! सब लिखते थे। जानते हैं क्यों? तब टेलीविजन नहीं था।
आज भी दुनिया इनके ही विचारों और सिद्धान्तों के ऊपर चलती है। दुनिया को बेहतरीन इनके ही सिद्धान्तों से बनाया जा सकता है।
हमने इनमें से तकरीबन हर कोई को पढ़ा है और यह सीखा कि लेखन की जो ताकत होती है, वह फेंकन में नहीं है।
आज जो भी लोग टेलीविजन पर आकर फेंकते हैं, यकीन मानिए वे सुधरवादी नहीं हैं।
इसलिए भरोसा लेखन पर कीजिए, फेंकन पर नहीं