बसंत का आगमन सुख देता है। किंतु मध्य युग से 60 के दशक तक यह समय स्माल और चिकन पॉक्स का भी था।
स्मॉल पॉक्स ने तो मानव सभ्यता का अंत ही कर दिया था मध्य युग में । किन्तु फिर एक अभियान चला। पूरे विश्व में टीकाकरण हुआ जिसे स्थानीय भाषा में पाछ कहा जाता है। 60 के दशक के हर व्यक्ति की बांह में पाछ के निशान देखे जा सकते हैं।
स्मॉल पॉक्स को काबू में कर लिया गया। फिलहाल उसके जर्म को रूस के लेबोरेटरी में रखा गया है। इसलिए कि यदि कभी इसका दूसरा आक्रमण हुआ तो मानव सभ्यता को फिर से बचाया जा सके।
फिर भी चिकन पॉक्स हो ही जाता है। बच्चों के लिए यह अब भी खतरा है। सरकार इसके लिए बच्चों के जन्म के बाद टीकाकरण करती है। लोग भी जागरूक हैं।
किन्तु भारतीय समाज में एक मान्यता है कि इस बीमारी से लड़ने में सहजन और नीम कारगर हैं।
