

अनुपमा शर्मा:–
*दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।*
*धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।।*
यह शक्तिपीठ तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम नगर में स्थित है। यहां देवी की अस्थियां या कंकाल गिरा था। जहां पर मां कामाक्षी देवी का भव्य विशाल मंदिर है, जिसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। यह दक्षिण भारत का सर्वप्रधान शक्तिपीठ है।
ऐकाम्रेश्वर शिवमंदिर से लगभग चौथाई किलोमीटर की दूरी पर है मां कामाक्षी देवी का भव्य मंदिर। इसमें भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है, जिसको कामाक्षीदेवी अथवा कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह मंदिर एक है। इस मंदिर के पार्श्व में अन्नपूर्णा देवी और शारदादेवी मंदिर हैं।
कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य व चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है । भारत के द्वादश प्रधान शक्तिपीठों में यह शक्तिपीठ मन्दिर प्रमुख है। इस मंदिर के पार्श्व में शारदादेवी मन्दिर हैं। यह दक्षिण भारत का प्रमुख शक्तिपीठ है । काँची के तीन भाग हैं—
१.शिवकाँची
२.विष्णुकाँची
३.जैनकाँची
कामाक्षी देवी को ‘कामकोटि’भी कहते हैं ।
माता कामाक्षी को समर्पित इस शक्तिपीठ के स्थान के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद हैं। कुछ इसे पश्चिम बंगाल के बीरभुम जिला के बोलारपुर स्टेशन के उत्तर पूर्व स्थित कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर बताते हैं। तो वहीं कुछ का मानना है कि यह शक्तिपीठ तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है। विद्वानों को जो साक्ष्य मिले हैं उसके अनुसार इस शक्तिपीठ के काँचीपुरम में स्थित होने की सम्भावना अधिक है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब श्री हरि ने माता सती के शरीर का विच्छेदन किया था तब माता के अस्थि/कंकाल का निपात इस क्षेत्र में हुआ था। कालांतर में यह जगह एक शक्तिपीठ के रूप में स्थापित किया गया। जहां पर माँ कामाक्षी देवी का भव्य विशाल मंदिर है, जिसमें त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमूर्ति कामाक्षी देवी की प्रतिमा है। यहां की शक्ति देवी “देवगर्भा” एवं भैरव “रुरु” कहलाते हैं।
यह मंदिर देवी शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। जिसका उल्लेख त्रय देवी मन्दिर क्षेत्र के रूप में भी किया जाता है, जिसमें काँचीपुरम की माँ कामाक्षी, मदुरै की माँ मीनाक्षी एवं काशी की माँ विशालाक्षी का वर्णन आता है। माता कामाक्षी को ‘कामकोटि’ भी कहा जाता है तथा मान्यता है कि यह मंदिर शंकराचार्य जी के देखरेख में पल्लव राजाओं द्वारा निर्मित गया है। जिसका उद्धार चौदहवीं एवं सत्रहवीं ईसवीं में किया गया। देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गई। वस्तुतः कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है, जिसमें तीन देवों की शक्तियां समाहित है। ‘क’ कार ब्रह्मा का, ‘अ’ कार विष्णु का, ‘म’ कार महेश्वर का वाचक है। यहाँ मान्यता है कि कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने की बजाय बैठी हुई मुद्रा में हैं। देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और दक्षिण-पूर्व की ओर देख रही हैं। इस परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।
*वामन मंदिरः* कामाक्षी देवी के भव्य मंदिर के पूर्व-दक्षिण की ओर यह मंदिर है जिसमें भगवान वामन की लगभग पाँच मीटर ऊँची मूर्ति है। भगवान का एक चरण ऊपर उठा हुआ है। एवं दूसरे चरण के नीचे राज बलि का मस्तक है। मंदिर के पुजारी एक बाँस में बहुत मोटी बत्ती (मशाल) जलाकर भगवान के श्रीमुख का दर्शन कराते हैं। इसी के निकट सुब्रह्मण्य मंदिर है। जिसमें स्वामिकार्तिक की बड़ी भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है।
*कैलाशनाथ मंदिरः* बस स्टैंड से लगभग दो किलोमीटर एवं एकाम्रेश्वर शिवमंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर यह प्रचीन शिवमंदिर है। जो बस्ती के अंतिम छोर पर स्थित है। इस मंदिर का शिवलिंग अति सुंदर एवं प्रभावोत्पादक है। चारों ओर की भित्तियां पर नाना प्रकार की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं, जिनकी शिल्पकला देखने योग्य है।
*श्री वैकुंठपेरुमलः* यह मंदिर बस स्टैंड से एक किलोमीटर की दूरी पर एवं बस्ती के मध्य में स्थित है। इस मंदिर में भगवान विष्णु का श्री विग्रह है। मंदिर की शिल्पकला उत्तम है। परिक्रमा मार्ग की भित्तियों पर विविध प्रकार की कलात्मक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं जिनमें श्रंगार, युद्ध और नृत्य गान की मूर्तियां विशेष आकर्षण हैं।
*सुधा सिन्धोर्मध्ये सुर विरटिवाटी परिवृत्तं मणिद्वीपे नीपोपपवनवति चिंतामणि गृहे।*
*शिवाकारे मंचे पर्यंक निलयां भजंति त्वां धन्याः कतिचन चिदानंद लहराम्॥*
इस शक्तिपीठ में सभी सनातनी त्योहार बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं, लेकिन यहां का सबसे बड़ा आकर्षण नवरात्र एवं ब्रह्मोत्सव है। उसमें भी नवरात्र के समय इस मंदिर की रौनक अद्भुत होती है। 9 रात एवं 10 दिन तक चलने वाले इस महोत्सव का अंत विजयादशमी के साथ समाप्त होता है। इस दिन से लोग यहां के स्थानीय लोग माता कामाक्षी का दर्शन-पूजन कर अपने नए प्रतिष्ठान और काम शुरू करते हैं। कांचीपुरम तमिल नाडु का मन्दिर नगरी है। जहाँ शैव एवं वैष्णव परम्परा के 50 से अधिक मन्दिर हैं, जिनके दर्शन करने के लिए आने वाले भक्तों की भीड़ हमेशा रहती है।
काँचीपुरम का रेलवे स्टेशन चैन्नई, चेन्गलपट्टू, तिरूपति और बैंगलोर सहित देश के अन्य बड़े शहरों से परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। वहीं सड़क मार्ग से काँचीपुरम लगभग सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। विभिन्न शहरों से काँचीपुरम के लिए नियमित अंतराल में सरकारी एवं निज़ी बसें चलती हैं। इसके अलावा श्रद्धलु टैक्सी एवं निज़ी वाहनों से भी काँचीपुरम पहुंचकर माता कामाक्षी का दर्शन-पूजन कर अभय वरदान प्राप्त करते हैं।
*काँची तू कामाक्षी, काशी तू विशालाक्षी,*
*मदुरै तू मीनाक्षी, शक्ति रूपेण देवी भगवती,*
*नमो नमः नमो नमः।।*


