ब्रजेश वर्मा:-

झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमों शिबू सोरेन की राजनीतिक कहानियों से अलग एक ऐसी कहानी भी हैं, जिसे कहानी 17 पैले के नाम से पुकारा जाता है।
मूलरूप से यह कहानी झारखंड के संथाल परगना से जुड़ी है, जिसमें किसानों के प्रति स्थानीय महाजनों द्वारा की गई ठगी शामिल थी।
बहुत से साल हो गए। जब अनाज मापने का यह औजार सामाजिक विषमता का कारण बन गया।
इसका नाम पैला है। यह उन महाजनों का सबसे बड़ा अस्त्र हुआ करता था, जो अनाज, खासकर धान से अपना कारोबार किया करते थे।
मूल रूप से पैला पीतल का बना होता था। यह दिखने में जितना सुंदर था, इसकी कहानियां उतनी ही खतरनाक हैं।
कुछ समय पहले संथाल परगना के मुख्ययालय दुमका में एक सरकारी मेला लगा था। उसी मेले में हमने पैले को बिकते देखा। हम अपने हिंदुस्तान टाइम्स की पुरानी यादों में खो गए। एक कहानी हमने लिखी थी, The Story of 17 Paila and Shibu Soren.
बहुत साल पहले, कहते हैं कि यदि एक संथाल किसी महाजन से कुछ पैसे उधार लेता तो वापसी के समय उसके उपजाए धान के बोरे मात्र 17 पैले की नपाई में ही समाप्त हो जाया करते।
इसे कुछ इस तरह समझिए। एक आदिवासी किसी महाजन से 100 रूपए कर्ज लेता है। वह इसके एवज में अपने उपजाए धान से अपने कर्ज चुकाने का वायदा करता है। संथाल परगना एक ऐसा इलाका है जहां सिर्फ एक फसल धान ही उगाया जाता है। अब वह व्यक्ति कर्ज चुकाने के लिए एक बोरे में धान लेकर महाजन के पास पहुंचता है।फिर धान को एक पैले से मापा जाता है। पूरे बोरे का धान मात्र 17 पैले में समाप्त हो जाता है।
यह कैसे होता था ? इसे एक दृश्य से समझा जा सकता है।एक आदिवासी महिला, जिसे मझियान कहकर बुलाते हैं, अपने धान के बोरे को लेकर महाजन के घर बैठी है। एक व्यक्ति उसके घान को मापने ठीक उसके सामने बैठा है। उसके हाथ में एक बड़ा सा पैला है। वह उसमें धान भरते हुए गिनती करता है, रामे जी राम। इसका मतलब हुआ- एक। फिर वह कहना शुरू करता है, रामेजी दो, रामेजी तीन, रामेजी चार और इसी तरह वह धान को मापते हुए मात्र 17 पैले में समाप्त कर देता है।
यह कैसे होता था?जो व्यक्ति धान मापता था वह पैले से गिनती करते हुए आगे बढ़ता। जब उसकी गिनती दस या पंद्रह तक पहुंचती तो वह फिर एक से गिनती शुरू कर देता। यही बात बार बार दोहराई जाती है। गिनती 17 से आगे बढ़ती ही नहीं है।
सामने बैठी औरत या मर्द इतना पढ़ा लिखा नही था कि उसे गिनती आती। फिर उसका सारा धान मात्र 17 पैले में समाप्त हो जाया करता। चाहे बोरे में कितना भी धान क्यों न हो, पैले की गिनती 17 से कभी आगे नही बढ़ती।
यह पुरानी कहानी आज भी लोगों की जुबान पर है।
अब थोड़ा विषय वस्तु बदलते हैं। मेरी नानी एक कहानी सुनाया करती थी। एक मुंशी जी बांका जिले के चानन नदी से होकर रात में गुजर रहे थे। वे अपनी बैल गाड़ी पर थे। नदी बिल्कुल सूखी थी। सिर्फ बालू ही बालू था। उस मुंशी जी की गाड़ी को बीच नदी में कुछ लोगों ने रोक लिया। रात का समय था। उन लोगों ने मुंशी जी से आग्रह किया कि उनके पास बोरे में कुछ धान है जिसे वे अपने पैले से गिन दें।मुंशी जी अनलोगों की बात मान गए।
रात में बीच नदी, जो एकदम सूखी हुई थी, बैठ कर पैले से धान मापने लगे। धान था कि खत्म ही नही हो रहा था। सुबह होने लगी। तब मुंशी जी के साथ उनका जो नौकर था, ने कहा, हुजूर आप यह क्या माप रहे हैं, धान कि नदी के बालू?
अब मुंशी जी ने देखा, वहां कोई धान नही था। वह तो पैले से चानन नदी के बालू माप रहे थे।मुंशी जी पैला छोड़ कर सरपट भाग खड़े हुए। जिन लोगों ने उनसे धान मापने का आग्रह किया था वे दरअसल आत्माएं थीं! मतलब भूत!
फिर उन भूतों ने ठहाके मार कर कहा, आज तो छोड़ दिए मुंशी तुमको, वरना धान की जगह चानन नदी के बालू को इसी पैले से मपवा कर तुम्हारी जान ले लेते।
सोचिए, पैले की कहानी कितनी खतरनाक है।
रही बात संथाल परगना की तो इसी महाजनी व्यवस्था के खिलाफ शिबू सोरेन ने आंदोलन खड़ा कर  समाज के लोगों को एक किया। इसके बाद झारखंड अलग राज्य आंदोलन में तेजी आई।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.