अनुपमा शर्मा:-
*ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।*
*दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।*
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर हैं और इनमें से ज्यादातर प्रमुख आकर्षक का केन्द्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुण्डा देवी का मंदिर है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है।
चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठों में से एक है। यहाँ पर आकर श्रद्धालु अपने भावना के पुष्प माँ चामुण्डा देवी के चरणों मे अर्पित करते हैं। मान्यता है कि यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती हैं। देश के कोने-कोने से भक्त यहाँ पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
*देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य।*
*प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।*
चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। यहाँ प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान की है। चामुण्डा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पर्यटको के लिए यह एक पिकनिक स्पॉट भी है। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी और आकर्षित करता है।
चामुण्डा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी हैं। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है तब-तब माता ने दानवों का संहार किया है। असुर चण्ड-मुण्ड के संहार के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।
दुर्गा सप्तशती और देवी महात्यमय के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरों की विजय हुई। असुरों का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों कि भांति धरती पर विचलन करने लगे।
देवताओं के ऊपर असुरों ने काफी अत्याचार किया। देवताओं ने विचार किया और वह भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी कि अराधना करने को कहा।
देवताओं ने पूछा वो देवी कौन है जो कि हमारे कष्टों का निवारण करेगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में पर्वितित हो गया।
इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेंट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की।
तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हों और उनके कष्टों का निवारण हो सके। और हुआ भी ऐसा ही। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूँगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।
*सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि दुर्मुख मर्षिणि हर्षरते*
*त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिष मोषिणि घोषरते।*
*दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते*
*जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥*
चामुण्डा देवी मंदिर शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। पूरे भारतवर्ष मे कुल 51 शक्तिपीठ है। जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन सभी स्थलों पर देवी के अंग गिरे थे।
शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह शिव को अपने बराबर का नहीं समझते थे। यह बात सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुँच गयी।
यज्ञ स्थल पर शिव का काफी अपमान किया गया जिसे सती सहन न कर सकी और वह हवन कुण्ड में कुद गयीं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे।
जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि चामुण्डा देवी मंदिर मे माता सती के चरण गिरे थे।
माता का नाम चामुण्ड़ा पडने के पीछे एक कथा प्रचलित है। दुर्गा सप्तशती में माता के नाम की उत्पत्ति कथा वर्णित है। हजारों वर्ष पूर्व धरती पर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यों का राज था। उनके द्वारा धरती व स्वर्ग पर काफी अत्याचार किया गया।
जिसके फलस्वरूप देवताओं व मनुष्यों ने देवी दुर्गा की आराधना की और देवी दुर्गा ने उन सभी को वरदान दिया कि वह अवश्य ही इन दोनों दैत्यों से उनकी रक्षा करेंगी। इसके पश्चात देवी दुर्गा ने कौशिकी नाम से अवतार ग्रहण किया।
माता कौशिकी को शुम्भ और निशुम्भ के दूतों ने देख लिया और उन दोनों से कहा महाराज आप तीनों लोको के राजा हैं। आपके यहां पर सभी अमूल्य रत्न सुशोभित है। इन्द्र का एरावत हाथी भी आप ही के पास है। इस कारण आपके पास ऐसी दिव्य और आकर्षक नारी भी होनी चाहिए जो कि तीनों लोकों में सर्वसुन्दर है।
यह वचन सुन कर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत देवी कौशिकी के पास भेजा और उस दूत से कहा कि तुम उस सुन्दरी से जाकर कहना कि शुम्भ और निशुम्भ तीनों लोके के राजा है और वो दोनो तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं।
यह सुन दूत माता कौशिकी के पास गया और दोनों दैत्यो द्वारा कहे गये वचन माता को सुना दिये। माता ने कहा मैं मानती हूं कि शुम्भ और निशुम्भ दोनों ही महान बलशली है। परन्तु मैं एक प्रण ले चूंकि हूं कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उसी से विवाह करूंगी।
*ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।*
यह सारी बाते दूत ने शुम्भ और निशुम्भ को बताई। तो वह दोनो कौशिकी के वचन सुन कर उस पर क्रोधित हो गये और कहा उस नारी का यह दूस्साहस कि वह हमें युद्ध के लिए ललकारे। तभी उन्होंने चण्ड और मुण्ड नामक दो असुरो को भेजा और कहा कि उसके केश पकड़कर हमारे पास ले आओ।
चण्ड और मुण्ड देवी कौशिकी के पास गये और उसे अपने साथ चलने के लिए कहा। देवी के मना करने पर उन्होंने देवी पर प्रहार किया। तब देवी ने अपना काली रूप धारण कर लिया और असुरो को यमलोक पहुंचा दिया। उन दोनो असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया।
*शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥*