रेखा शाह आरबी :-

आजकल जमाना बहुत तेजी से बदलता जा रहा है।पता ही नही चलता है , कब कीपैड वाले से स्कीन टच हो गये, फोन के तरह ही हम स्मार्ट बन गए है ,  स्मार्ट से स्मार्ट आईफोन बस इसी तरह जिंदगी में भी कुछ बदलाव होता जा रहा है, आधुनिक दिखने के चक्कर में लोग आजकल कुछ भी करते हैं । पहले शादी ब्याह में सामान्य सी बात थी लड़कियां विदाई के टाइम रोती थी , आजकल  दोनो तरफ के माता-पिता रोते है , शादी से पहले मां-बाप हरकतें देखकर रोते हैं ,शादी के बाद सास ससुर हरकतें देख कर रोते हैं, लड़की का रोना यह पुराने जमाने का चलन आउटडेटेड हो चुका है,
मुझे  एक शादी में जाने का आमंत्रण मिला, वहां पहुंचने पर सामने मंडप में शादी की रस्में चल रही थी, मेरा शादी ब्याह की रस्मों से उतना ही लेना देना था,  जितना आजकल के कलयुगी औलाद को अपने बूढ़े मां बाप से लेना होता है, फिर भी किसी के पूछने पर मैं यही सब को बता रही हूं…शादी को खूब इंजॉय कर रही हूं, लेकिन सच पूछिए तो मेरे शरीर का हर तंत्र खाने के स्टाल के तरफ लगा हुआ है, अब तक 10 बार चक्कर लगा चुकी हूं , मैं बाद में जाकर कुछ बचे कुछ  खत्म हो जाए? वैसे सिचुएशन का सामना नहीं करना चाहती ,आखिर लिफाफा वजनदार दिया है, एक -एक  दमड़ी वसूल करना मैं अपना फर्ज समझती हूं, हम भारतीय कोलगेट के  आखिर तक उसको वसूल करना जानते हैं।
और आजकल तो लोगों को मैनर्स भी नहीं रहा, शादी ब्याह में आते हैं , खाने पर कंगालियों की तरह टूट पड़ते हैं,  खाने के स्टाल लगते ही उन पर ऐसे टूटते हैं, कि वह खाना मुंह को कम कपड़ों को ज्यादा खिला लेते हैं, धक्कम धुकी की धक्का मुक्की  तो आम बात है, मैं खुद चार लोगों को धक्का देकर उनके कपड़ों पर खाना गिरा चुकी हूं, उसके बाद ही मुझे खाने को मयस्सर  हुआ है। वह चारों कपड़े पर से खाना साफ करने में बिजी हो गए, मैं खाने में बिजी हो गई, इस भागदौड़  की दुनिया में जिंदगी को ऐसे ही सब लोग ही ईजी बना रहे हैं,
पहले का सिस्टम ठीक था पात- पंगत में बिठाकर राजा महाराजा के जैसे परोस- परोस कर खिलाया जाता था, अब तो भिखारियों के जैसे प्लेट लेकर खड़ा रहिए, खाना लगते ही मौका देखते ही दौड़ पड़ना पड़ता है ,चुकी अभी खाना लगा नहीं है, इसलिए मेरा ध्यान सामने स्टेज की तरफ चल रही शादी ब्याह के रस्म की तरफ थोड़ा बहुत है, बाकी तो और महिलाओं की साज-सज्जा और ज्वेलरी मैचिंग देखने में व्यस्त हूं, अब इसको गलत मत समझिए स्त्री तो नर्क में भी रहे तो वहां भी ज्वेलरी मैचिंग और कपड़े जरूर देखती है।
सामने चल रही शादी में वर वधु को वचन दिलाए जा रहे थे ,पंडित जी ने सात वचन होने के बाद घोषणा कर दी, यजमान जमाना नया है ,और नए जमाने को देखते हुए शादी ब्याह में दो और वचनों की एंट्री हुई है ,यदि आप इसको मानते हैं तभी शादी को संपूर्ण माना  जाएगा, और यह वचन है, आठवां वचन के रूप में आप शपथ लीजिए की आप सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर एक दूसरे की पोस्ट का सम्मान करेंगे ,और नौवें वचन के तौर पर शपथ लीजिए, एक दूसरे के साथ सारे पासवर्ड शेयर करेंगे, तभी शादी पूरी  मानी जाएगी,  और यह शादीशुदा दांपत्य जीवन के निर्बाध चलने के लिए आजकल के युग में बहुत जरूरी है।
पंडित जी इतना कह कर दोनों लोगों का मुंह देखने लगे, पंडित जी के इतना कहते ही लड़का लड़की एक दूसरे का मुंह देखने लगे ,उनके चेहरे से इस रस्म के प्रति अनिच्छा साफ दिखाई दे रही थी,  अब चुकी पूरे भरे पूरे मंडप में बैठे थे, ना कहना भी संभव नहीं था, अतः मारे मरे मन से उन्होंने एक दूसरे को शपथ लिया ,और उन्होंने एक-दूसरे को पासवर्ड शेयर किया ,और आगे भविष्य में आने वाली पोस्टों के लिए प्रतिबद्धता जताई । शादी  पूरी हो गई उधर पुरिया भी चलने लगी।
(फोटो: साभार गूगल)

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.