अनुपमा शर्मा :-
* ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी *भगवती हिसा।*
*बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।*
गुजरात के प्रभास क्षेत्र में त्रिवेणी संगम के निकट माँ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में से एक चंद्रभागा शक्ति पीठ का वर्णन पुराणों में भी उल्लेखित किया गया है। कपिला, हिरण्या एवं सरस्वती नदी के त्रिवेणी संगम पर शमशान भूमि के निकट सोमनाथ ज्योतिरलिंग के समीप है माँ सती का उदर/आमाशयगिरा था जिसे  देवी चंद्रभागा के रूप में जाना जाता है । देवी के इस रूप के रक्षण हेतु वक्रतुंड भैरव हमेशा से उनके निकट विराजमान हैं।
वर्तमान समय में यह शक्तिपीठ सोमनाथ ट्रस्ट के श्री राम मंदिर के पिछले हिस्से की ओर व हरिहर वन के निकट स्थित है। मंदिर की ओर जाने का रास्ता श्री राम मंदिर के प्रवेश द्वार के बाएं तरफ से जाता है। सोमनाथ क्षेत्र में इस शक्तिपीठ के बारे में जानकारी का काफी अभाव है। ज्यादातर गाइड इस मंदिर को वहाँ के लोकल धार्मिक घूमने वाले मंदिरों में शामिल नहीं करते हैं। अतः भक्तों को खुद से ही माँ सती के इस रूप के दर्शन हेतु प्रयासरत रहना पड़ता है ।प्रचलित नाम: प्रभास शक्ति पीठ।
*चंद्रभागा शक्ति पीठ*
गुजरात के पश्चिमी तट पर प्रभास पाटन (सोमनाथ) में स्थित है। यह शक्तिपीठ प्रसिद्ध सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर से ज्यादा दूर नहीं है।
देवी के रक्षक भैरव वक्रतुंड हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर माता सती का पेट का भाग गिरा था।
प्रभास शक्ति पीठ का इतिहास
दक्ष प्रजापति भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे और भगवान विष्णु के भक्त थे। उसके मन में भगवान शिव के प्रति शत्रुता का भाव था  । उनकी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था।
दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव का अपमान करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। सती बिना बुलाए यज्ञ में शामिल हो गईं और जब भगवान शिव का अपमान किया गया तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने यज्ञ अग्नि में प्रवेश करके अपना जीवन समाप्त कर लिया।
जब भगवान शिव ने सुना तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और दुःखी भी हुए। वह सती के शरीर को अपनी बाहों में लेकर आकाश में उड़ गए। हालात ऐसे थे कि इससे दुनिया को बहुत बड़ा नुकसान हो सकता था
ऐसा होने से रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र भेजा और सती के शरीर को 51 भागों में काट दिया। ये हिस्से पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पड़ते थे। वे जिन स्थानों पर गिरे वे 51 शक्तिपीठ बन गए ।
*पौराणिक महत्व विवरण*
प्रभास शक्तिपीठ की मूर्तियों निर्माण पूरी तरह से पत्थरों से बनाया गया हैदेव माता सती (जिन्हें चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है) और भगवान शिव जिन्हें वक्रतुण्ड भैरव के नाम से जाना जाता है का यहाँ स्मारक है । जैसा कि यहाँ माता सती का पेट गिरा था
यह बिना मंदिर का अनोखा व  अद्वितीय शक्तिपीठ है – कोई भी मंदिर विशेष रूप से देवी को समर्पित नहीं है। तीन नदियों – हिरण, कपिला और सरस्वती (त्रिवेणी) का संगम ही वास्तविक शक्तिपीठ है।
यहाँ प्राचीन काल में चंद्रभागा देवी को समर्पित एक मंदिर हुआ करता था। इस तीर्थयात्रा का अधिकांश इतिहास ज्ञात नहीं है। आसपास कई अन्य छोटे मंदिर हैं, जो भगवान शिव, गणेश जी, गुरु दत्तात्रेय और अन्य देवताओं को समर्पित हैं।
चंद्रभागा नाम की उत्पत्ति
सोमनाथ वह स्थान है जहां चंद्र देव ने दक्ष प्रजापति द्वारा दिए गए श्राप से राहत पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी। श्राप के कारण चंद्र देव ने अपनी चमक खो दी। कई वर्षों की प्रार्थना के बाद, भगवान शिव प्रसन्न हुए और चंद्र देव को आशीर्वाद दिया।
कृतज्ञता स्वरूप चंद्र देव ने पहला ज्योतिर्लिंग मंदिर बनवाया और इसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कहा गया। चंद्रभागा का अर्थ है चंद्रमा का एक भाग।
*शरणागत दीनार्तपरित्राण परायणे* *
*सर्वस्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोस्तु ते॥*
*चंद्रभागा देवी शक्ति पीठ पर उत्सव*
आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) और चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) के दौरान यहाँ मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार नवरात्रि है।
शिवरात्रि विशेष पूजा और समारोहों के साथ मनाई जाती है।
नाग पंचमी श्रावण माह का भी विशेष महत्त्व  है।
हर साल नवंबर में कार्तिक पूर्णिमा पर एक मेला आयोजित किया जाता है।
चंद्रभागा मंदिर का समय
चंद्रभागा मंदिर के खुलने और बंद होने का समय नीचे दिया गया है। गुजरात के चंद्रभागा मंदिर में जाने से पहले भक्तों को ये दर्शन समय अवश्य जांचना चाहिए।
चंद्रभागा मंदिर खुलने का समय सुबह के 6 बजे
चंद्रभागा मंदिर बंद होने का समय शाम के 8:00 बजे
चंद्रभागा शक्ति पीठ तक कैसे पहुंचे?
*सड़क द्वारा*
चंद्रभागा शक्ति पीठ की प्रमुख शहरी  सड़कों से कनेक्टिविटी है, जिससे भक्त यहाँ बस या टैक्सी से आसानी से पहुँच सकते हैं।
*ट्रेन द्वारा*
चंद्रभागा मंदिर और सोमनाथ रेलवे स्टेशन के बीच की दूरी 2 किमी है।
*हवाईजहाज द्वारा*
केशोद हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है जो मंदिर से 64 किमी दूर है।
सोमनाथ में ठहरने के लिए सर्वोत्तम धर्मशाला और होटल प्रदान करता है। सभी कमरे बजट कीमतों के साथ स्वच्छ और आरामदायक हैं। सर्वोत्तम आवास विकल्पों की सूची नीचे दी गई है।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.