रेखा शाह आरबी:-
जीवन में बस इतना ही समझ आया है कि शांति से जीवन जीना बिल्कुल भी आसान नहीं है। अब चतुरी जी को ही देख लीजिए । शाम के सात बज रहे थे। चतुरी जी ने अपनी पत्नी से खाना मंगा तो उनकी श्रीमती जी रोटी प्याज और आलू की सब्जी परोस कर दे दी । थाली में खाली आलू देख एक बारगी तो चतुरी जी का चेहरा तमतमा गया। लेकिन गर्मी और पसीने से लथपथ श्रीमती का टमाटर जैसे लाल चेहरा देखकर आगे बोलने की हिम्मत बिल्कुल वैसे ही नहीं हुई जैसे किसी जांच एजेंसी के चंगुल में फंस जाने पर किसी नेता की बोलने की हिम्मत नहीं होती है। जैसे उनके जिंदगी से हरियाली गायब थी वैसे ही उनके थाली से भी हरियाली गायब थी।
अतः चतुरी जी चुपचाप पेट पूजा कर सोने के लिए प्रस्थान कर गए। लेकिन बिजली विभाग की मनचली सुपुत्री बिजली पता नहीं कहां लापता थी। बाहर तो उसका बॉयफ्रेंड आंधी तूफान भी नहीं था। लेकिन फिर भी पता नहीं किसके साथ लापतागंज थी। चतुरी जी ने मोबाइल में मौसम चेक किया तो अभी भी चालीस डिग्री से ऊपर दिखा रहा था। जाने इतनी डिग्रियां लेकर गर्मी क्या करेगी! चाहे कितनी भी डिग्री ले ले नौकरी तो मिलने से रही। हार पछता कर गर्मी रानी को नीचे अपने औकात पर आना ही था। हां अभी चाहे जितना भौकाल अपने देश के नेताओ के जैसे बना ले।लेकिन सबको पता है कि जैसे नेता जी के भौकाल का जनता चिथड़े उड़ाती है वैसे ही गर्मी का भौकाल बरखा रानी उतार कर रख देती है ।
लेकिन अभी तो ग्रीष्म का तांडव जारी था। अतः सोचा कि जब तक बिजली नहीं आती तब तक फेसबुक पर अपना मनोरंजन ही कर लिया जाए। लेकिन फेसबुक पर भी चैन नहीं था चुनावी पार्टियों के आईटी सेल वालों के जहरीले पोस्ट से चतुरी जी का मन बेहद खराब हो गया। मोबाइल बंद करके रखने के सिवा उनके पास और कोई उपाय नहीं था। सोचा जब तक बिजली नहीं आती है तब तक हाथ के पंखे से ही काम चलाया जाए । और किसी तरह निद्रा देवी को बुलाया जाए । लेकिन फेसबुक पर चुनावी पार्टियों के आईटी सेल वाले चैन नहीं लेने दे रहे थे । और हकीकत की दुनिया में गर्मी के साथ चुनावी प्रचार वाली गाड़ियों का शोर चैन नहीं लेने दे रहा था। चतुरी जी अपने आप को दुनिया का सबसे बेबस लाचार निरीह जीव महसूस कर रहे थे ।प्रचार गाड़ी के जोशीले जिन्दाबाद के नारे उनके अन्दर और मुर्दनी फैला रहे थे । चतुरी जी को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर जिए तो कैसे जिया जाए।