कंचन:
भागलपुर से बंगलौर के लिए अंग एक्सप्रेस से रवाना हुए। दो दिनों की रेल यात्रा सुखद रही। हालाकि यह थोड़ी लंबी यात्रा थी, किंतु सबकुछ ठीक ही रहा।
मन में अपनी नई ब्याहता बेटी के पास जाने की खुशी में हमने उस लंबी यात्रा को भुला दिया। स्टेशन पर स्वागत में खड़े दामाद को देखते ही थकान मिट गई और बाकी के कसर बेटी को देख पूरे हो गए। जितना सोची थी उससे कहीं अधिक बच्चों के व्यवहार ने मन को मोह लिया।
एक दिन आराम करने के बाद फिर हमलोग वंदे भारत ट्रेन से मैसूर के लिए रवाना हो गए। वंदे भारत से यह मेरी पहली यात्रा थी। दो दिन सिर्फ घूमना और होटल में विश्राम करना हुआ। बच्चों के साथ ऐतिहासिक स्थलों को नजदीक से देखने का मजा ही कुछ और था।
बेटी अब गृहस्थी चलाना सीख गई है। हालाकि हमारे जमाने की औरतों के घर संभालने के तौर तरीके से उसका कुछ अलग था, जो वर्तमान समय के हिसाब से सटीक बैठता है।
मेरा नियमित मॉर्निंग वॉक चलता रहा। बंगलौर का मौसम बड़ा सुहाना था। सुबह और शाम की सैर के बीच हमने बहुत सारी महिलाओं से मित्रता कर ली। हालाकि भाषाई समस्या थी, किंतु जहां प्रेम बैठ जाए भाषा की दिक्कतें नही होती। उनमें से कन्नड़, तमिल, तेलगु और गुजराती महिलाओं से हमने टूटी फूटी अंग्रेजी में बात कर अपना काम चला लिया। वहां मेरे दो निकटतम संबंधी भी घर पे आए, जिनसे मिलना बहुत सुखद रहा।
एक दिन मैं अपनी बेटी के साथ जिम भी गई। वहां जाकर हाथ पैर चला कर हमने अपनी वर्षों की तमन्ना पूरी कर ली।
कुल मिलाकर मेरी यात्रा सफल रही। अभी मैं उसी अंग एक्सप्रेस से वापस लौट रही हूं। हमने बच्चों को दिल से आशीर्वाद दिया और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए अपने घर का रुख किया। उम्मीद है हमलोग फिर जल्द ही मिलेंगे।
