अनुपमा शर्मा:-
सोमनाथ मन्दिर (सोमेश्वर) भूमण्डल में दक्षिण एशिया में भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में स्थित अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव ज्योतिर्लिंग है । भारत में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है । गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल पत्तन में स्थिति इस मन्दिर का निर्माण स्वयं चन्द्र देव ने किया था । ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख है ।
हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन का इतिहास लिए यह मंदिर अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण कई बार विदेशी आक्रांताओं के द्वारा तोड़ा व लूटा गया।
17 बार नष्ट हो चुके इस मन्दिर को हर बार उसी भव्यता के साथ पुनर्निर्मित भी किया गया ।
वर्तमान मन्दिर भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत को स्वतंत्र होने पश्चात लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी करवाया और 1 दिसम्बर 1955 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
विश्व प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ विश्व प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन स्थल है। इस क्षेत्र को प्रभास क्षेत्र भी कहा जाता है।
वास्तुकला के कारण यह मंदिर हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है । मंदिर प्रांगण बहुत बड़ा और आकर्षक है । मंदिर अरब सागर तट से लगा हुआ है। मन्दिर दर्शन के साथ ही आप समुद्र तट के दर्शन लाभ भी ले सकते हैं । मंदिर का गर्भ गृह, सभा मण्डप और नृत्य मण्डप तीन हिस्सों में विभाजित है। इस मंदिर का शिखर 150 फुट ऊँचा है । इसके शिखर पर स्थिति कलश का भार 10 टन और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊँची है।
इस मंदिर प्रांगण में वाणस्तम्भ नाम से एक स्तम्भ भी है यह बहुत प्राचीन स्तम्भ है जिसका मन्दिर के साथ ही जीर्णोद्धार किया गया है। छठी शताब्दी में इस स्तम्भ का उल्लेख है । इसका मतलब यह स्तम्भ छठवीं शताब्दी से पहले भी विद्यमान था। कहते हैं कि यह स्तम्भ दिशा दर्शक स्तम्भ है इस पर एक बाण लगा हुआ है इसलिए इसे बाण स्तम्भ भी कहते हैं। इस स्तम्भ पर लिखा है— *’आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत*, अबाधित ज्योतिरमार्ग, समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक एक सीधी रेखा में कोई भी अवरोध नहीं है यानी कोई कोई भी भूखण्ड का टुकड़ा नहीं है या कोई भी पहाड़ नहीं है।
प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा ने यहाँ भगवान शिव की आराधना की थी । चन्द्रमा ने दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियों से विवाह किया था लेकिन वह सिर्फ उनमें से एक रोहिणी को ही सर्वाधिक प्रेम करता था अपनी अन्य पुत्रियों के साथ अन्याय होता देख दक्ष प्रजापति ने क्रोध में आकर चंद्रदेव को(क्षय रोग होने का ) शाप दे दिया कि अब से हर दिन तुम्हारी कांति(तेज) क्षीण होता रहेगा। जिसकी वजह से चंद्रमा का तेज घटने लगा ।
जब चन्द्र का तेज फीका पड़ने लगा तो वह बहुत दुखी हुए और भगवान शिव की आराधना करने लग गए। उनके कठोर तप से प्रसन्न होकर उन महेश्वर ने सोम चंद्र के शाप का निवारण किया।
सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव की यहाँ स्थानपना करवाने से उनका नामकरण “सोमनाथ” हुआ ।
सोमनाथ मंदिर के निकट दो हिन्दू धार्मिक स्थल हैं इस वजह से इस वजह से इस क्षेत्र का महत्व और बढ़ जाता है । प्रथम पाँच किलोमीटर पर स्थित भालुका तीर्थ ,भगवान श्रीकृष्ण व उनके बड़े भाई बलदेव जी का गोलोक गमन भी यहीं हुआ है।
भगवान श्रीकृष्ण जब भालुका तीर्थ में पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे तब एक बहेलिये ने उनके पैर के तलवे में बने पद्मचिह्न को हिरन की आँख जान कर अनजाने में तीर मार दिया तभी भगवान कृष्ण ने देह त्याग कर बैकुंठ गमन किया और उनके देह त्याग की खबर सुन कर शेषनाग अवतार बलदाऊ जी ने भी अपने शरीर का त्याग कर बैकुंठ गमन किया। यहाँ बहुत बड़ा मन्दिर बना हुआ है।
1 किलोमीटर की दूरी पर तीन नदियों हिरन,कपिला और सरस्वती का महासंगम है ।यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के नश्वर शरीर का अग्नि संस्कार किया गया था।
भगवान श्रीकृष्ण की सिमंतक मणि इसी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में स्थापित है।
यहाँ अन्य बहुत से मन्दिर भी स्थापित हैं।
हनुमानजी का मंदिर, पर्दी विनायक, नवदुर्गा खोडियार, महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति और काशी विश्वनाथ ,अघोरेश्वर के समीप भैरवेश्वर मन्दिर, महाकाली मन्दिर, दुखहरण जी जल समाधि, पंचमुखी महादेव मंदिर, विलेश्वर मन्दिर व राममन्दिर स्थिति हैं नागरों के इष्टदेव हाटकेश्वर व देवी हिंगलाज मन्दिर कालिका मन्दिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मन्दिर, नागनाथ मन्दिर, बालाजी मंदिर, नरसिंह मन्दिर व ऐसे ही अन्य कई मंदिर समेत कुल बयालीस मन्दिर नगर के दस किलोमीटर के दायरे में स्थित हैं।
रोग निवारण अनुष्ठान के लिए यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग बहुत महत्वपूर्ण है यहाँ उन अवढरदानी महादेव के तेज पुंज की अमृतमयी किरणें रोग को क्षीण करने में बहुत सहायक हैं बस उनका स्मरण अगर हृदय से किया जाय तो।
लोग यहाँ महामृत्युंजय के अनुष्ठान को करना अपना सौभाग्य समझते हैं। प्रभु के सानिध्य में रह कर लोग साधना भी करते हैं उनसे एकाकार होने के लिये । शिव प्रणेता हैं सृष्टि के ,आधार हैं चेतना के ।
*मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहं*
*न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |*
*न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:*
*चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम |||*