अनुपमा शर्मा:–
मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मान्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है । यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से चतुर्थ हैं । भील जनजाति ने इस जगह पर बस्तियां बसायीं । यह स्थान अपनी भव्यता एवं ऐतिहासिकता की वजह से अधिक प्रसिद्ध है । यह यहाँ के मोरटक्का गाँव से लगभग चौदह किलोमीटर दूर बसा है। यह द्वीप प्रणवाक्षर(ॐ) के आकार में बना हुआ है । यहाँ दो मन्दिर स्थिति हैं ।
● *ॐकारेश्वर*
● *ममलेश्वर*
ॐकारेश्वर का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः ही हुआ है । यह भारतवर्ष की पवित्रतम नदियों में से है और इस पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना का निर्माण हुआ है।
नर्मदा के बारे में वैसे भी कहा जाता है कि—नर्मदा के कंकर , सब ही ही शंकर
सृष्टि में सर्वप्रथम जिस ध्वनि का उच्चारण भगवान के श्रीमुख से हुआ व वेदों का पठन – पाठन जिस ध्वनि के बिना नहीं हो सकता वह ध्वनि ॐ (प्रणवाक्षर) है। इसी ॐकार का भौतिक विग्रह यह ॐ कारेश्वर क्षेत्र है। इसमें अड़सठ(६८) तीर्थ हैं । यहाँ तैतीस कोटि देव परिवार सहित निवास करते हैं तथा दो ज्योतिस्वरूप लिंगो सहित एक सौ आठ शिवलिंग विराजमान हैं।
मध्यप्रदेश में देश के बारह ज्योतिर्लिंगों से दो ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं । एक उज्जैन में महाकाल के रूप में दूसरा ॐकारेश्वर में ॐकारेश्वर-ममलेश्वर के रूप में विराजमान हैं।
ओंकारेश्वर प्रारम्भ में भील राजाओं की राजधानी थी । भील राजाओं ने बहुत समय तक यहाँ शासन किया है। ममलेश्वर मन्दिर अहिल्या बाई होल्कर की तरफ से बनवाया गया है । यहाँ नित्य प्रति मिटटी के अठारह सहस्त्र पार्थिव शिवलिंग बनाकर और उनका पूजन कर उन्हें नर्मदा में विसर्जित किया जाता है। इस नगरी का मूल नाम मान्धाता है ।
सर्वप्रथम ॐकारेश्वर का दर्शन किया जाता है तत्पश्चात ममलेश्वर का दर्शन करते हैं । पुराणों में ममलेश्वर को अमलेश्वर भी कहा गया है। ममलेश्वर की प्रदक्षिणा (परिक्रमा) में वृद्धकालेश्वर, बाणेश्वर, मुक्तेश्वर, कर्दमेश्वर और तिलभांडेश्वर मंदिर मिलते हैं। ममलेश्वर के दर्शनोपरांत निरंजनी अखाड़े में स्वामी कार्तिकेय, अघोरी अखाड़े में अघोरेश्वर गणपति, मारुति का दर्शन करते हुए नृसिंह टेकरी तथा गुप्तेश्वर होकर ब्रह्मपुरी में ब्रह्मेश्वर, लक्ष्मीनारायण,काशी विश्वनाथ, शरणेश्वर, कपिलेश्वर, और गंगेश्वर के दर्शन करके विष्णुपुरी लौटकर भगवान विष्णु के दर्शन करें। कपिलेश्वर ,वरुणेश्वर, नीलकंठेश्वर तथा कर्दमेश्वर होकर मार्कण्डेय आश्रम जाकर मार्कण्डेय शिला और मार्कण्डेयश्वर के दर्शन करें।
भगवान विष्णु के परमभक्त अम्बरीष व मुचकुन्द के पिता व अयोध्या के सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा मान्धाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी वजह से उनके नाम पर इस स्थान का नाम मान्धाता पड़ा।
ॐ कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मानव निर्मित ज्योतिर्लिंग नहीं है बल्कि यह एक प्राकृतिक शिवलिंग है।इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। प्रायः किसी मंदिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और उसके ठीक ऊपर शिखर होता है किंतु यह ॐ कारेश्वर शिवलिंग मन्दिर के शिखर के नीचे नहीं है। मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है।
मान्यतानुसार यह पर्वत ही ॐकार रूप है।
परिक्रमा के अंतर्गत बहुत से मंदिरों के विद्यमान होने के कारण यह ॐ कार के रूप में दिखायी पड़ता है। ॐ कार में बने हुए चन्द्र बिंदु का जो स्थान है वही स्थान ॐ कार पर्वत पर बने ॐकारेश्वर मन्दिर का है। शिव जी के पास ही माँ पार्वती का विग्रह स्थापित है। प्रसाद में यहाँ चने की दाल चढ़ाने की परम्परा है ।
मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में रोज भगवान शिव व पार्वती आकर चौसर-पांसे खेलते हैं। इसी कारण मन्दिर के गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात बिछाई जाती है। ये परम्परा मन्दिर स्थापना के समय से अनवरत चल रही है। कई बार चौसर-पांसे रखे स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर मिले हैं। साल में एक बार शिवरात्रि पर चौसर-पांसे की पूरी बिसात बदल दी जाती है । ॐकारेश्वर शिव का ऐसा अनोखा ज्योतिर्लिंग हैं जहाँ गुप्त आरती होती है। इस आरती में पुजारियों के अलावा अन्य कोई गर्भगृह में नहीं जा सकता। इस मंदिर के दर्शन बिना चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
यहाँ शिवलिंग के दो रूप होने के बारे में एक कथा पुराणों में बतायी गयी है । एक बार विन्ध्य पर्वत ने पार्थिव अर्चना के साथ भगवान शिव की छः मास तक कठोर आराधना की । उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने विन्ध्य को उनके मनचाहे वर प्रदान के दिये। विंध्याचल की इस वर -प्राप्ति के अवसर वहाँ बहुत से ऋषि -मुनिगण पधारे उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने ॐकारेश्वर के दो भाग किये। जिनमें से एक नाम ॐकारेश्वर व दूसरे का नाम ममलेश्वर पड़ा। दोनों ज्योतिर्लिंगों का मन्दिर और स्थान पृथक होते हुए भी दोनों की सत्ता व स्वरूप एक ही माना गया है । मन्दिर की इमारत पाँच मंजिल की है यह ज्योतिर्लिंग पंचमुखी भी है। तीनों लोकों के भ्रमण करने के बाद भगवान शिव यहाँ विश्राम करते हैं।
