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दुमका: इसी साल होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव में बांग्लादेशी घुसपैठ एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।
जाहिर है कि इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी ने सख्त रवैया अपनाए हुए है। यहां तक कि झारखंड विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी और संसद में गोड्डा लोकसभा क्षेत्र के सांसद निशिकांत दुबे में सदन को इस मामले के प्रति ध्यान आकर्षित कराया है। भाजपा के कार्यकर्ता संथाल परगना में हो रहे बांग्लादेशी घुसपैठ का अब सड़कों पर विरोध कर रहे हैं।
किंतु इन सभी मामलों में सत्ता पक्ष से झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने अपनी आंखें मूंदकर यह जाहिर करने की कोशिश की है कि मानों बांग्लादेशी घुसपैठ कोई मामला ही नहीं है।
पिछले सप्ताह संथाल परगना के पाकुड़ जिले में जब आदिवासी छात्रों ने इस घुसपैठ का विरोध किया तब पुलिस ने उन्हें बर्बरता से पीटा। स्थिति यह हुई कि राष्ट्रीय आदिवासी आयोग द्वारा इस घटना को संज्ञान में लेकर झारखंड के डी जी पी से लेकर संथाल परगना के कुछ उपायुक्तों को पत्र लिखकर इस घटना की रिपोर्ट मांगी गई है।
दरअसल बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से संथाल परगना के पूर्वी हिस्से पर इतना गंभीर प्रभाव पड़ा है कि पाकुड़ और साहेबगंज जिलों में मुसलमानों की तुलना में आदिवासियों की जनसंख्या का प्रतिशत काफी घट गया है।
स्थिति यह बताई जा रही है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिस आदिवासी बहुल बरहेट विधानसभा से चुनाव जीतते आए हैं वहां भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की भरमार है। यहां तक कि बरहेट के भोगनाडीह इलाके, जो संथालों के नायक सिद्धू कान्हूं का जन्म स्थल है वहां के ऊपरी इलाके में अचानक से ऐसे घुसपैठ देखे गए हैं। फिर साहेबगंज जिले के राजमहल और ऊधवा के इलाके की स्थिति सबसे खराब बताई जाती है। इसके अलावा पाकुड़ जिले के पाकुड़, हिरणपुर और महेशपुर में भी संथाल आदिवासियों की जनसंख्या मुसलमानों की तुलना में कम हो गई है।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने आशंका जताई है कि यदि सरकार ने इन घुसपैठियों के खिलाफ कठोर कदम नही उठाया तो आने वाले एक दशक में दुमका, जामताड़ा और गोड्डा का भी यही हाल हो सकता है। इन घुसपैठियों ने व्यापक पैमाने पर अपना आधार कार्ड और राशन कार्ड बनवा लिया है, जिसके आधार पर न सिर्फ वे सरकारी सुविधाएं ले रहे हैं बल्कि व्यापक पैमाने पर मतदाता सूचियों में भी घुसे हुए हैं।
सूत्रों की मानें तो पाकुड़ और साहेबगंज के अधिकांश इलाके में आदिवासियों से अधिक बंग्लादेशी घुसपैठिए नजर आ रहे हैं। उन्होंने चुनावों को भी प्रभावित किया है। उन इलाकों के कुछ प्राइवेट कालेजों में बंगाल के घुसपैठिए ने अपने नाम लिखा रखे हैं, जिन्हें बंगाल की सरकार पढ़ाई के नाम पर मोटी रकम देती आ रही हैं। ये लड़के सिर्फ परीक्षा में उपस्थित होते हैं, पढ़ाई और कॉलेजों से उनका कोई लेना देना नहीं बताया जा रहा है।
बिहार से झारखंड को एक आदिवासी बहुल इलाके के रूप में अलग किया गया था, जिसके लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन में लंबी लड़ाई लड़ी थी। अब इस बार विपक्ष मुक्ति मोर्चा से यह सवाल कर रहा है कि संथाल परगना में आदिवासियों की जनसंख्या क्यों गिरते जा रही है और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा कौन दे रहा है।
संथाल परगना में कुल 18 विधानसभा क्षेत्र हैं, जो किसी भी सरकार के गठन के लिए मुख्य भूमिका अदा करते हैं। इस बार के चुनाव के पहले से ही भाजपा ने इसे अपना मुद्दा बना दिया है।
