रेखा शाह आरबी:-
अपने देश में चित्रकारों की कमी नहीं है । एक से बढ़कर एक मंझे हुए चित्रकार भरे पड़े हैं। अनेक चित्रकार हुए। उन्होंने अपनी चित्रकारी से दुनिया को अचंभित कर डाला। अपने-अपने चित्रकला का हुनर कोई जैन शैली में दिखाता है, कोई पाल शैली में दिखाता है, कोई दक्कन शैली का चित्रकार है । इनके अलावा भी बहुत सारी चित्रकला शैली है। जो लोगों का मन मोह लेती है। कला  के लिए बस इतना ही कहा जाएगा जो दृश्य ,शब्द ,चित्र किसी को मंत्रमुग्ध कर दे वह सबसे सुंदर कला है। चाहे वह किसी भी  शैली की हो।
शर्मा जी एक सीधे-साधे मास्टर इंसान हैं बच्चों को अच्छी शिक्षा देना ,पढ़ना, लिखना, सभ्यता से रहना, यह सब सिखाना उनके जीवन का हिस्सा है । वह अपने आसपास अच्छा से अच्छा माहौल अपने लिए भी और दूसरे के लिए भी बना कर रखते हैं। लेकिन दूसरे भी उनके जैसे हो यह कोई जरूरी तो नहीं। शर्मा जी भले ही कुछ नहीं बोलते हो । लेकिन मन तो उनका खिन्न होकर रह जाता है। क्योंकि इतनी बड़ी दुनिया और तरह तरह  के लोग जिसमें किसी को आम पसंद है तो किसी को इमली पसंद है किसी को जामुन पसंद है तो किसी को करेली पसंद है । इसीलिए वह चुपचाप रहते हैं और अपने काम से मतलब रखते हैं।
शर्मा जी को भी एक  चित्रकारी ने मंत्र मुग्ध कर डाला है। कहां जाए तो  अचंभित कर डाला। मास्टर साहब तो सीधे-साधे आदमी है अब उनका अचंभित होना कोई अचंबे की बात नहीं है।  हुआ यूं कि एक दिन उन्हे   एक रेलवे स्टेशन पर जाना हुआ। एकदम एवन प्लस का रेलवे स्टेशन था। फर्स्ट क्लास सुविधाएं एकदम चमचमाता हुआ दूधिया रोशनी में जगमगा रहा था।  स्वचलित सीढियो  पर लोग  शाहरुख खान वाले अंदाज में ऊपर नीचे आ जा रहे थे। सब कुछ मनभावन ही था। साफ सफाई सुंदरता एकदम बेमिसाल थी।
शर्मा जी को दूसरे प्लेटफार्म पर जाना था ।उन्होंने  लिफ्ट के बजाय  ऊपर जाने के लिए सीढिया चुनी। ऊपर सीढ़ियों के प्लेटफार्म पर जगह-जगह कोने में ना कौन सी शैली की चित्रकारी की गई थी। उन्हे घोर आश्चर्य हुआ  कि अपने देश के लोग कितने  कलाप्रेमी हैं ।सीढ़ियों के हर कोने कतरे पर वह चित्रकारी की गई थी। ज्यादा लाल रंग का प्रयोग किया गया था। अब तो उन्हे  यह  जानने की धुन सवार हो गई कि आखिर यह किस शैली की चित्रकारी है। और इसके चित्रकार कौन से लोग हैं । कई लोग से पूछा लेकिन कोई ढंग का जवाब नहीं दे पाया।  तो उन्होंने  सोचा यह छोटे-मोटे लोगों के बस की बात नहीं है। इसकी जांच पड़ताल तो एवं परख करने के लिए तो किसी नामी-गिरामी अनुभवी चित्रकार की मदद लेनी पड़ेगी।
  अपने शहर के सबसे अनुभवी चित्रकार के पास  जाकर मिन्नत चिरौरी  की ..”आदरणीय चलिए मेरा ज्ञान वर्धन कर दीजिए और बताइए  कि.. यह आखिर किस शैली की चित्रकारी है “.थोड़ी सी मिन्नत करने के बाद चित्रकार महोदय मान गए और साथ आये। लगे बारीकी से विश्लेषण करने उनके भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इतनी सुंदर चित्रकारी सीढ़ियों के कोने में कैसे किया गया है ।और किस शैली की ये चित्रकारी है।
घंटे भर से जांच परख चल ही रही थी। सभी ऐंगल से जान पड़ताल चल रही थी । लेकिन बनाने वाले ने कोई सुराग नहीं छोड़ा था । ना नीचे अपने हस्ताक्षर ही किए थे। जबकि आजकल के जमाने में तो लोग एक गधे का चित्र भी बनाते हैं।  तो बड़े शान से नीचे अपने शब्दों में अपना हस्ताक्षर कर देते हैं । ताकि दुनिया उनकी कला  को उनके नाम से जान सके । भला कौन भला मानुस है जिसने इतनी चित्रकारी करने के बाद अपना कोई सुराग नहीं छोड़ा । यह तो गलत बात है हर चित्रकार को अपनी चित्रकारी के नीचे अपना हस्ताक्षर  करना ही चाहिए । ताकि और लोग उसके बारे में जान सके उसकी सराहना कर सके उसे पुरस्कृत कर सके। उसे 15 अगस्त और 26 जनवरी को सम्मान दिया जा सके। यह तो अपनी कला और कलाकारी  छुपाने वाली बात हो गई।
इधर चित्रकार महोदय के  दिमाग का दही होता जा रहा था। और फिर भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था और ना ही कोई सुराग लग पा रहा था । तभी सीढ़ियों से गुजरते एक यात्री ने उन्हें थोड़ा परे हट जाने को कहा और पुच्च  से अपने मुंह से पान की पीक थूका  और हो गयी अनोखी चित्रकारी । शर्मा जी  और चित्रकार महोदय खड़े-खड़े बेहोश होते होते रह गए। भारतीय जनता की अभूतपूर्व  चित्ताकर्षक कलाकारी एवं चित्रकारी देखकर। सच बात है इतने महान भारतीय लोग ही हो सकते हैं कि ऐसी महान कलाकारी कर सके।
(फोटो साभार गूगल )

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.