अनुपमा शर्मा:

पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने  सदा वसंतम गिरजासमेतम्  ।
सुरासुराराधितपाद्पदमम श्री वैद्यनाथं तमहं नमामि ।।
परली वैद्यनाथ महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के बीड़ जिले में  स्थित है । यहाँ पर भगवान शिव का सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग मन्दिर है जहाँ पर भगवान वैद्यनाथ के रूप में विराजमान हैं। शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता के अट्ठाईसवें अध्याय के अंतर्गत वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत के अनुसार भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक यह ज्योतिर्लिंग भी हैं। भारत वर्ष के नक्शे  पर कन्याकुमारी से उज्जैन के बीच अगर एक मध्य रेखा खींची जाय तो उस रेखा पर आपको परली गाँव भी मिलेगा । यह स्थान मेरुपर्वत व नागनारायण पहाड़ की एक ढलान पर बसा है।
ब्रह्म,वेणु और सरस्व9 नदियों के निकट बसा परली एक प्राचीन गाँव है। इस गाँव के आस -पास का क्षेत्र पुराण कालीन घटनाओं का साक्षी है अतः इस गाँव को विशेष महत्व प्राप्त हुआ है ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ––
देव दानवों द्वारा  किये गये समुद्र मंथन से चौदह रत्न प्राप्त हुए थे । जिसमें भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ  निकले थे। अमृत को प्राप्त करने के लिये जब दानव दौड़े तो श्री भगवान विष्णु ने अमृत कलश के साथ ही धन्वंतरि को एक शिवलिंग में छुपा दिया था। दानवों को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने उस शिवलिंग से अमृत कलश निकालने का प्रयास किया । जैसे ही उन्होंने शिवलिंग को छुआ वैसे ही उस शिवलिंग से अग्नि की लपटें निकलने लगी लेकिन जैसे ही उस शिवलिंग को भगवान के भक्तों ने छुआ तो उसमें से अमृत धारा निकलने लगी । माना जाता है कि परली वैद्यनाथ ही वह शिवलिंग हैं। अमृत युक्त होने के कारण ही इसे वैद्यनाथ (आरोग्य देवता) भी कहा जाता है ।
कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्
सदा वसंतम हृदयारविंदे
भवम भवानी. सहितं नमामि ।।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग  मन्दिर को लगभग 2000 वर्ष पुराना है। इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूर्ण होने में लगभग 18 वर्ष लगे थे । वर्तमान समय के मन्दिर का जीर्णोद्धार इंदौर की शिवभक्त महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने अठाहरवीं शताब्दी में कराया था । महारानी अहिल्या को यह स्थान बहुत प्रिय था ।
भव्य तथा सुंदर मन्दिर मेरुपर्वत की ढलान पर पत्थरों से बना है तथा गाँव की सतह से करीब अस्सी फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है । मन्दिर तक पहुँचने के लिये  तीन दिशाएं तथा  प्रवेश के लिये तीन द्वार हैं । यह मन्दिर परली गाँव के बाहरी इलाके में स्थित है। इस मंदिर के शिल्प के विषय में बहुत ही रोचक कहानी है महारानी अहिल्या बाई होल्कर को इस मन्दिर के निर्माण के लिये अपनी पसंद का पत्थर प्राप्त नहीं हो रहा था। वह बहुत चिंतित थीं  तब उन्हें स्वप्न में इस मन्दिर निर्माण के लिये जो पत्थर चाहिए इसकी जानकारी मिली तब उन्हें आश्चर्य हुआ कि जिस पत्थर के लिये वह इतनी परेशान हैं वह परली गाँव के पास स्थित त्रिशाला देवी पर्वत पर उपलब्ध है।
मंदिर के चारों ओर दीवारें हैं। मन्दिर परिसर के अंदर विशाल बरामदा तथा सभामंडप है। यह सभामंडप सागौन की लकड़ी से निर्मित है तथा बिना किसी सहारे के खड़ा है । मन्दिर के बाहर दीप स्तम्भ है तथा दीपस्तंभ से ही लगी हुई देवी अहिल्याबाई की नयनाभिराम प्रतिमा है। मन्दिर के द्वार के निकट ही एक मीनार है जिसे प्राची या गवाक्ष कहते हैं। इनकी दिशा साधना के कारण चैत्र और अश्विन माह में एक विशेष दिन को सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर पड़ती हैं। मन्दिर परिसर में जाने के लिये मज़बूत सीढ़ियाँ हैं जिन्हें घाट कहते हैं। मन्दिर परिसर में ही अन्य गयारह ज्योतिर्लिंगों के भी सुंदर मन्दिर स्थापित हैं । मन्दिर में प्रवेश पूर्व की ओर से तथा निकास उत्तर दिशा की तरफ है।
भारत वर्ष में यही एक मात्र स्थान  है जहाँ नारद जी का मन्दिर है। मन्दिर के पहले शनिदेव व शंकराचार्य जी के मन्दिर भी हैं।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै  यकाराय नमः शिवाय ।।
मन्दिर का गर्भगृह व सभा गृह एक ही भू-स्तर(बराबर) पर स्थित होने के कारण सभामण्डप से ही वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो जाते हैं । ज्योतिर्लिंग एक काले शालिग्राम पत्थर से निर्मित है । गर्भगृह की चारों दिशाओं में एक-एक अखण्ड ज्योति दीप हमेशा जलता रहता है। ज्योतिर्लिंग(जलधारा सहित) को क्षरण से बचाने के लिये हर समय एक चाँदी के आवरण से ढँक कर रखा जाता है। सिर्फ दोपहर में दो से तीन बजे के बीच श्रंगार के समय ही इस आवरण को हटाया जाता है। ज्योतिर्लिंग के ठीक ऊपर पाँच मध्यम आकार के चाँदी के गौमुख लटकते हैं जो भगवान वैद्यनाथ का अभिषेक करने में प्रयोग होते हैं।
सभामण्डप में गर्भगृह के ठीक सामने लेकिन थोड़ी दूर पर  एक ही जगह पर एक साथ तीन अलग-अलग आकर के स्वर्णमयी आभा लिये पीतल के नंदी विराजमान हैं। वहाँ से भी ज्योतिर्लिंग के स्पष्ट दर्शन होते हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर ही माता पार्वती का भी मंदिर है ।
निजदेहे सर्वदिक्कं युगपद् भावयेद् वियत्
निर्विकल्पमनास्तस्य वियत् सर्वं प्रवर्तते ।।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.