
आधुनिक भारत के मुस्लिम परिवारों में दो भाइयों -अली इमाम (1869-1932) तथा हसन इमाम (1871-1933)- की तरह प्रगतिशील परिवार शायद ही कहीं मिले जिनमें से एक, अली इमाम ने लीग ऑफ नेशंस में ब्रिटिश भारत का प्रतिनिधित्व किया था और उनके छोटे भाई, हसन इमाम ने 1918 में बम्बई में हुए स्पेशल इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्षता की थी।
ये दोनों आधुनिक बिहार के निर्माताओं में से माने जाते हैं। इनका जन्म पटना के पास नेउरा नामक एक गांव में हुआ था।
इनकी अन्य भूमिकाओं से अलग जब हम बिहार कांग्रेस की स्थापना की कहानियों को पढ़ते हैं तब पता चलता है कि इन्होनें किस प्रकार से एक बढ़िया सामाजिक तालमेल को जन्म देकर बिहार को उन सांप्रदायिक दलदल में जाने से बचा लिया था जो कि 1905 के लार्ड कर्जन द्वारा किए गए बंगाल विभाजन के बाद पनपा था।
आम तौर पर यह कहा जाता है कि “फूट डालो और राज करो” की नीति को ब्रिटिश ने लाई थी जो गलत है। दरअसल यह प्राचीन रोमनों की नीति थी जिसे ब्रिटेन ने भारत में बखूबी आजमाया था।
तब बिहार बंगाल का एक हिस्सा मात्र था जब 1908 में सोनपुर के मेले में कुछ प्रगतिशील बिहारियों का जमावड़ा हुआ। वहां एक बिहारी मुसलमान नवाब सरफराज हुसैन खान की अध्यक्षता में एक बैठक की गई। इसी बैठक में यह तय किया गया कि बिहार में प्रांतीय कांग्रेस का गठन किया जाए।
हालांकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में ही हो गई थी और बिहार से दरभंगा महाराज ने इसमें हिस्सा भी लिया था, किन्तु बिहार में कांग्रेस की स्थापना को आते-आते 1908 का वर्ष लग गया।
जब नवाब सरफराज हुसैन खान की अध्यक्षता में बिहार प्रांतीय कांग्रेस के गठन का फैलाया कर लिया गया तब एक छह सदस्यों की समिति बनाई गई जिसके अध्यक्ष हसन इमाम थे। बाकी के सदस्य सच्चिदानंद सिन्हा, दीप नारायण सिंह (भागलपुर), बसंती चंद्र सिन्हा (मुजफ्फरपुर के एक वकीक), परमेश्वर लाल (गया से) और नजमुल होदा थे।
इसी कांग्रेस ने यह तय किया कि पटना में इसकी पहली बैठक होगी। पटना में बिहार प्रांतीय कांग्रेस की जो पहली बैठक 1908 में हु ई उसकी अध्यक्षता सर अली इमाम ने की।
सबसे मजेदार बात है कि बंगाल विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल (आज का बंगलादेश) के मुसलमानों को जिस प्रकार से कर्ज़न ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया था उसके फलस्वरूप 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग के गठन का निर्णय लिया गया। इसका एक अधिवेशन 1908 में अमृतसर में हुआ जिसकी अध्यक्षता सर अली इमाम ने की।
वह समय बहुत ही खराब चल रहा था। अली इमाम जो बिहार प्रांतीय कांग्रेस का 1908 में पहला अध्यक्ष थे उन्होंने उसी साल अमृतसर में मुस्लिम लीग के वार्षिक अधिवेशन की भी अध्यक्षता की और खुद को भारत माता का एक संतान बताते हुए जो भाषण दिया उसे अंग्रेजी अखबारों ने इस प्रकार से लिखा कि कोई भी अंग्रेज इस बात को नहीं समझ पाएगा कि अली इमाम के भाषण में राष्ट्रवाद का क्या संदेश छिपा था।
(फोटो साभार: National Portrait Gallery and Google)