
दुमका: झारखंड सरकार का कोरोना ई -पास कुछ ऐसा है जैसा कि सदियों पहले मुहम्मद -बिन-तुगलक ने सोने के सिक्के की जगह चमड़े का सिक्का चला दिया और उसकी कीमत सोने के सिक्के के बराबर रख दी।
कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए झारखंड सरकार ने जिस प्रकार जनता पर बिना ई-पास के सब्जी भी खरीदने पर रोक लगा रखा है उससे पूरे संथाल परगना में आदिवासियों की जान पर आफत आ गयी बताई जा रही है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार की राजनीतिक आधारशिला उन आदिवासियों पर टिकी है जिनके परिवार में शायद ही किसी के पास कोई स्मार्ट फोन होता हो। लाखों आदिवासी ऐसे हैं जिन्हें इंटरनेट क्या बला है इसकी जानकारी नही होती। मूल शिक्षा का दर, जो अंग्रेजी हिन्दी ठीक से पढ़ सकें और नेटवर्क प्रणाली को जान सकें, उनके समाज मे एक प्रतिशत भी नहीं है।
इसका यह मतमलब तो नही हुआ कि आदिवासी समाज को दवाई, अनाज और अन्य चीजों की जरूरत नही होती जो शहरों में मिलती है। अब शहर जाने के लिए उन्हें, सरकार के नियम के अनुसार ई-पास चाहिए अन्यथा उन्हें फ़ाईन देना होगा या अपने पिछवाड़े पर पुलिस की लाठी सहनी होगी।
आज ही दुमका जिला प्रशासन की रिपोर्ट है कि पुलिस ने 210 ऐसे लोगों से 32 हजार रुपये से अधिक जुर्माना वसूला जिन्होंने कोरोना काल के नियमों को नहीं माना। कल रिपोर्ट थी कि दुमका में लगभग 22 लोग कोरोना पोसेटिव पाए गए और एक्टिव केस की संख्या चार सौ के आसपास है। जिले की आबादी दस लाख से ऊपर है। वैक्सीन नियमित रूप से चल रहा है और डॉक्टरों की पूरी टोली मरीजों के लिए तत्परता से लगे हुए हैं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जनता द्वारा ई-पास के बिना सब्जी तक नही खरीदने अथवा बेचे जाने देने की सलाह देने वाले अधिकारी क्या यह बता सकते हैं कि संथाल परगना में कोरोना के अलावा लोगों को और कोई बीमारी हो रही है या नही?
यदि सिर्फ दुमका जिले की ही बात करें तो इसके तीन प्रखंड- गोपीकांदर, काठीकुंड और रामगढ़ में मलेरिया, पीलिया, टायफाइड जैसी घातक बीमारियां सालों भर पैर जमाए रहती है जिनके शिकार मुख्यरूप से वही आदिवासी लोग होते रहे हैं जो हेमंत सोरेन को सत्ता तक पहुँचते आ रहे हैं।
सरकार के पास सबसे बड़ी एजेंसी होती है वह खुद इस बात का पता कर ले कि गांव में रहने वाले उनके आदिवासी समाज के कितने लोगों के पास स्मार्ट फोन है और कितने लोग वेबसाइट खोलने की हुनर रखते हैं। यदि सारे डॉक्टर कोरोना के इलाज में ही जुटे हुए हैं तो बाकी रोगों का इलाज कौन कर रहा है?
दुमका से सटे कुरवा के एज आदिवासी युवक कालीचरण ने बताया कि उसकी पत्नी के लिए उसे आज ही अपनी मोटरसाइकिल से दवाई लेने दुमका बाजार जाना था किंतु उसके पास वह फोन नही जिससे वह कोरोना काल मे घर से निकलने के लिए ई पास बना सकता। ऐसे कुछ लोगों ने आसनबनी, गुहियाजोरी और हिजला इलाके से भी अपनी समस्याओं को बताया।
सरकार ने शुरू में जो ई पास की घोषणा की उसमे मेडिकल से श्मशान तक जाने वालों को भी इसके लिए मेंडेटरी कर दिया था। बाद में हल्ला हुआ तो इस प्रतिबंध को हटा लिया किन्तु यदि आप मोटरसाइकिल या गाड़ी से शहर किसी आवश्यक काम के लिए जा रहे तो ई पास जरूरी है। यह ई पास मात्र तीन घंटे काम करेगा।
तो, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है, अक्सर गरीब लोग, घर से नही निकल सकते। निजी बसें बन्द हैं।
पिछले साल जब कोरोना ने जोर पकड़ा था तब झारखंड सरकार ने बाहर निकलने वालों पर एक लाख रुपया फाइन लगाया था जिसे बाद में कम किया गया।
अब इस तसवीर का एक दूसरा पहलू बड़ा ही भयानक है। पिछले एक साल से जब जब झारखंड में लॉक डाउन लगा दुमका के शिकारीपाड़ा पत्थर खदानों के संचालकों ने प्रशासन और माफिया की मिलीभगत से अरबों रुपए का पत्थर स्मगलिंग कर बिहार के भागलपुर के रास्ते गंगा नदी के उस पर नॉर्थ ईस्ट तक पहुचा दिया गया।
केंद्र सरकार ने नियम बनाया था कि लॉक डाउन में वैसे मालवाहक गाड़ियां चलती रहेंगी जिनसे व्यापार होते हैं ताकि आम जनता तक अनाज, दवाई और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी न हो।
दुमका में झारखंड सरकार के अधिकारियों ने गुप्त रूप से भरपूर पास उन मालवाहक ट्रकों को दिया जो पत्थरों को दूसरे राज्यों तक पहुँचते रहे। आज जब फिर से ई-पास जनता के लिए मेंडेटरी कर दिया गया है तो पत्थरों के खदानों को व्यापार की खुली छूट बताई जा रही है। शायद सरकार सोचती है कि बाहर से आने वाले ट्रक चालकों से कोरोना नहीं फैलता, कोरोना सिर्फ उन्हीं से फैलता है जो जिल्लत की जिंदगी जीते हैं!