हर कोई इस बात का अंदाजा लगा सकता है कि राजनीतिक ताकत क्या चीज होती है, जबकि गौर से देखिए तो ऐसा कुछ भी नहीं होता। यह एक अस्थायी अवसर है, इसके सिवा कुछ नहीं।
हमसफ़र एक्सप्रेस नाम से जो ट्रेन खुली उसे सुनकर दिल कुछ शायराना हुआ था। ट्रेनों में अक्सर “हमसफ़र” या “सफर के साथी” जैसी हकीकत हुआ करती हैं; बहुत से लोगों को अपनी कहानी याद आएगी।
किन्तु इस हमसफ़र एक्सप्रेस की कहानी यह है कि झारखंड के गोड्डा जिले में रेलवे स्टेशन के निर्माण के पहले ही इस ट्रेन की घोषणा हो गई थी।
भारत में हजारों ऐसे इलाके और रेलवे स्टेशन हैं जहां के लोग महज एक अच्छी सी ट्रेन को तरसते रहते हैं।
लेकिन गोड्डा के सांसद, जो सत्तारुढ़ भाजपा से हैं ,निशिकांत दुबे ने अपने इलाके में रेलवे स्टेशन के बनने के पहले ही न जाने कहाँ से रेल मंत्रालय से हमसफर एक्सप्रेस के खोले जाने का पत्र जुगाड़ कर लिया?
गोड्डा के लोगों के लिए तो यह सौगात है, मानों किसी सरकारी नॉकरी वाले लड़के को विवाहपूर्व दहेज मिल गया हो!
एक कहाबत यह भी है कि यदि आप आज के दौर में किसी इंसान को एक हाथी दान कर देते हैं तो उसके लिए सवाल यह होगा कि आखिरकार वह बेचारा हाथी को रखेगा कहाँ?
गोड्डा से हमसफ़र एक्सप्रेस शुरू हो चुकी है जो सप्ताह में एक दिन दिल्ली जाती है।
किन्तु कल जब भागलपुर से दुमका कविगुरु एक्सप्रेस से आ रहा था तो हमसफ़र एक्सप्रेस की बोगियों को मंदारहिल (बौंसी) स्टेशन पर रखा गया देखा। गोड्डा से मंदार हिल की दूरी 50 किलोमीटर के आसपास होगी।
क्या गोड्डा स्टेशन में इतनी लंबी गाड़ी के लिए अभी तक साफ सफाई एवं पानी की व्यवस्था नहीं है? क्या इसीलिए इस हाईटेक ट्रेन को उसके आराम के दिनों में मंदार हिल में पड़ा रहने दिया जाता है?
इसे कहते हैं राजनीति ताकत!
ट्रेन को देख किसी ने कहा कि सांसद निशिकांत दुबे की राजनीतिक ताकत देखिए, गोड्डा में स्टेशन बनाने से पहले हमसफ़र एक्सप्रेस ट्रेन दिया दिया।
फिर एक दूसरे ने कहा, “निशिकांत की ताकत नही, ये सब गोड्डा में अडानी के पावर प्लांट आने की वजह से हुआ है।”
लेकिन हमसफ़र एक्सप्रेस का गोड्डा से खुलना भी एक बड़ी बात है, जबकि बगल में दुमका के लोग दिल्ली के लिए एक खटारा ट्रेन को दस साल से तरस रहे हैं। यहां के सांसद सुनील सोरेन भी तो भाजपा के ही हैं और शिबु सोरेन जैसे कद्दावर नेता को हराया है। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें कोई वैल्यू क्यों नही देते?
शायद दुमका के लोगों का हर बार किसी पावर प्लांट को लगाए जाने का विरोध इसके पीछे काम कर रहा है।