ब्रजेश वर्मा:-
जमीन घोटाले से उभरे संकट के बीच झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार के चले जाने और खुद उनकी गिरफ्तारी की वजह से उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा पर पहली बार जिस तरह का दवाब आया है, उससे आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी दुमका सीट को लेकर गहरे मंथन में है।
मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन ने अपने जीवन की लंबी राजनीतिक पारी खेल चुकने के बाद पार्टी के दारोमदार को हेमंत के कंधों पर डालकर खुद को सक्रिय राजनीति से लगभग अलग ही कर लिया था कि इसी बीच हेमंत ई डी की गिरफ्त में आ गए।
  वैसे ऊपरी तौर पर देखा जाए तो सोरेन परिवार में कई नए उभरते सितारे दिख रहे हैं, किंतु वर्तमान मुख्यमंत्री और पार्टी के बुजुर्ग नेता चंपई सोरेन हेमंत की अनुपस्थिति में इन सितारों का कितना सही राजनीतिक इस्तेमाल कर पाते हैं, यह एक गंभीर सवाल है।
शिबू सोरेन के पारिवारिक राजनीति में फिलहाल सबसे चमकता सितारा हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन दिख रही हैं, जिन्होंने अपने पति की गिरफ्तारी के बाद हाल ही में राजनीति में कदम रखा है।
यह कुछ उसी तरह है, जैसा कि आम तौर पर भारत में परिवारवाद की राजनीति करने वालों के घरों में होता आया है। वैसे सोरेन परिवार में हेमंत के छोटे भाई और दुमका से विधायक एवं मंत्री बसंत सोरेन, हेमंत की भाभी और जामा से विधायक सीता सोरेन तथा शिबू सोरेन के बड़े बेटे स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की बेटी भी राजनीति में हैं।
इतना होने के बावजूद सवाल यह खड़ा होता है कि आने वाले लोकसभा के चुनाव में नेतृत्व किनके हाथों होगा, और सबसे खास बात यह कि उनके परिवार के लिए प्रतिष्ठित दुमका लोकसभा सीट पर पार्टी किसे उम्मीदवार बनाएगी?
सन 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन को पराजित कर भाजपा के लिए एक नया रास्ता खोल दिया था। हालाकि इस बार पार्टी के अंदर सुनील सोरेन के टिकट के कट जाने की रस्साकसी थी, किंतु पार्टी नेतृत्व ने उनपर एकबार फिर से भरोसा किया। मैदान में सुनील सोरेन ही हैं।
अब झारखंड मुक्ति मोर्चा क्या फैसला लेती है, सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है। शिबू सोरेन, जिन्हें लोग इज्जत से गुरुजी, दिशोम गुरु, अर्थात आदिवासी जगत का गुरु, कहकर बुलाते हैं, फिलहाल राज्यसभा सदस्य हैं। ऐसे में उनका दुमका से चुनावी मैदान में उतरना संदेहजनक है।
रह जाती हैं सीता सोरेन, या फिर गुरुजी की पत्नी रूपी सोरेन, जिन्होंने बहुत साल पहले असफल चुनाव लडा था और कल्पना सोरेन या फिर स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पुत्री, जो अभी तक चुनाव नही लड़ी हैं।
सूत्रों की मानें तो पार्टी को इन्हीं लोगों में से किन्हीं एक को दुमका से भाजपा के खिलाफ लड़ाना है। सबसे ज्यादे चर्चा कल्पना सोरेन की है। वह मूलरूप से झारखंड की नहीं बल्कि उड़ीसा की हैं, जिन्होंने अपने हाल के पहले भाषण में खुद को न सिर्फ झारखंड की बहू बल्कि बेटी भी बताया था। दुमका में सिर्फ उनके नाम की चर्चा है कि इस रिजर्व सीट से कल्पना सोरेन चुनाव लड़ सकती हैं अथवा नहीं!
सीता सोरेन के टिकट दिए जाने पर कुछ संदेह है। कुछ पारिवारिक मामले हैं जो रह रह कर उठते हैं। शायद वह विधान सभा में अपनी बेटी के लिए भी टिकट मांगें, क्योंकि 2 फरवरी को दुमका में मुक्ति मोर्चा की हुई रैली में उन्हें खूब प्रमोट किया गया था।
शिबू के छोटे पुत्र बसंत सोरेन की दुमका से बाहर की राजनीति में वैसी पकड़ नहीं कि उनके हवाले इस लोकसभा की सीट दी जाए। उनका अंदाज कुछ अलग ही रहा है। एक युवा नेता के रूप में काम तो उन्होंने किया, किंतु वे सदैव दूसरी पंक्ति के नेता रहे। अब चूंकि हेमंत जेल में हैं, तो वे अपने कद को बढ़ाएं, फिर भी उनका दुमका से लड़ना संदेहजनक है।
ऐसे में सबकी नजर कल्पना सोरेन पर ही टिकती है। किंतु उनके इस रिजर्व सीट से चुनाव लड़ने के बारे में विशेषज्ञों की क्या राय है, यह अभी तक खुलकर सामने नही आ रहा।
जानकारों का मानना है कि यदि कल्पना ने दुमका में कदम रखा तो फिर भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। सोरेन परिवार का झारखंड अलग राज्य बनाने में जो भूमिका रही है, उसकी वजह से आदिवासी समाज आज भी उन्हें बल देता है। भाजपा के लिए यही खतरा है। सवाल मोदी मैजिक का है तो 2014 में यहां यह जादू नही चला था। अब 2024 में क्या होता है, सब सोरेन परिवार के एकमात्र फैसले पर है कि दुमका से उनके कौन उम्मीदवार होंगे?

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.