अनुपमा शर्मा (वृंदावन से):-
या देवी सर्व भूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शक्तिपीठों के संदर्भ में कई कहानियाँ प्रचलित हैं । ब्रह्म जी ने  आदिशक्ति देवी और शंकर जी  को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया । उनके यज्ञ से प्रसन्न होकर देवी आदिशक्ति प्रकट हुयीं व भगवान शिव से अलग होकर ब्रह्म जी को ब्रह्माण्ड निर्माण में सहयोग किया। उनके इस कार्य से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें  पुनः शिवजी को सौंपने का निर्णय किया। ब्राह्म जी के  मानस पुत्र प्रजापति दक्ष ने माता सती को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए यज्ञ किया। भगवान भोलेनाथ से विवाह के उद्देश्य से माता सती को ब्रह्माण्ड में लाया गया था।। दक्ष का माता शक्ति को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने के उद्देश्य किया गया यज्ञ सफल हुआ। । ब्रह्म जी को शिव के अभिशाप के कारण अपना पाँचवा मुख खोना पड़ा था इसलिए प्रजापति दक्ष भगवान शिव से द्वेष रखता था और भगवान शिव व सती का विवाह ना करने का निर्णय लिया। माता सती भोलेनाथ को ही पति रूप में चाहती थीं इसलिए उन्होंने तप किया और अंत में भगवान शिव व माता सती का विवाह हुआ।
भगवान शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया लेकिन उसमें उसने भगवान शिव व माता सती को आमंत्रित नहीं किया। पिता घर यज्ञ का समाचार सुन सती ने शिव से पिता घर जाने की आज्ञा माँगी । भोलेनाथ ने सती को हर तरह से समझाया लेकिन  वह नहीं समझी और बिन बुलाए पिता के घर यज्ञ में चली गयीं  । वहाँ पहुँचने पर  उनका कोई आदर सत्कार नहीं हुआ । उनकी बहिनें भी उन पर हँसने लगीं। इस तरह भगवान शिव का पिता दक्ष के द्वारा  अपमान होता देख सती बहुत दुखी हुईं और अपने आपको पिता के यज्ञ में होम आहूत कर लिया।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

दक्ष प्रजापति (पिता)के यज्ञ में जब  सती ने स्वयं आहूत कर लिया ।  तो यह समाचार भोलेनाथ को मिला तो वह बहुत दुखी हुए उन्होंने वीरभद्र को वहाँ भेजा । वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का  सिर धड़ से अलग कर दिया । तथा शिवजी ने सती के चैतन्य को अपने कन्धों पर उठाकर ताण्डव करना शुरू कर दिया। सम्पूर्ण जगत में हाहाकार मच गया। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब जगत कल्याण हेतु भगवान विष्णु ने  अपने सुदर्शन चक्र ( और कहीं – कहीं शारंग धनुष) से माता सती के चैतन्य को वेध कर कई हिस्सों में विभक्त कर कर दिया।  पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भी माता सती के अंग ,वस्त्र व आभूषण गिरे वह सभी स्थान  शक्तिपीठ बन गए।
पुराणों में माता के शक्तिपीठों की जानकारी मिलती है। और सभी पुराणों में इनकी संख्या भिन्न-भिन्न है। किसी पुराण में इनकी संख्या इक्यावन(५१) है तो किसी पुराण में बाभन(५२ ) या उससे भी अधिक है। दुर्गासप्तशती तथा  तंत्रचूणामणि के अनुसार  शक्तिपीठों की संख्या ५२,  देवीभागवत महापुराण के अनुसार १०८शक्तिपीठ, कालिका पुराण के अनुसार २६ शक्तिपीठ व शिवचरित्र में इन्हीं शक्तिपीठों की संख्या ५१ है। देवीगीता  के अनुसार देवी पीठों की संख्या ७२ है।
इन शक्तिपीठों दर्शन मात्र से ही जीव की हर मनोकामना पूर्ण होती है । भारतीय आध्यात्म में शक्तिपीठों का बड़ा महत्व है ।

या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.