अनुपमा शर्मा:
*कोलापुरे महस्थानं यत्र लक्ष्मी: सदा स्थिता*
करवीर शक्ति पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह शक्तिपीठ महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर  में स्थित है । यहाँ माता सती का त्रिनेत्र ( तीसरा )गिरा था । पाँच नदियों के संगम से मिलकर एक नदी बनी जिसे पंच गंगा कहा जाता है । इसी नदी के तट पर बसा कोल्हापुर  प्राचीन मंदिरों की नगरी है । यह नदी आगे जाकर समुद्रगामिनी महानदी कृष्णा से जा मिली है । महालक्ष्मी मन्दिर यहाँ का महत्वपूर्ण मन्दिर है   जहाँ त्रिशक्तियों के विग्रह विराजमान हैं। यह शक्तिपीठ  महालक्ष्मी का निज निवास है।
इस मन्दिर के शिरोभाग पर शिवलिंग तथा नंदी का मन्दिर है । व्यंकटेश(भगवान विष्णु),कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवी प्रकोष्ठ में स्थित हैं। इस परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं । प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। देवीगीता के अनुसार कोल्हापुर ही प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। पद्म पुराणानुसार यह क्षेत्र १०८कल्प प्राचीन है। इसे महामातृका भी कहा गया है क्योंकि यह आद्यशक्ति का मुख्य पीठ है । महालक्ष्मी शक्तिपीठ अतिप्राचीन है । इस शक्तिपीठ का मुख्य आकर्षण  ये है कि इसकी वास्तु रचना श्रीयंत्र पर है । यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप गर्भगृह मण्डप,मध्यमण्डप,गरुड़ मण्डप हैं । मध्यमण्डप में ऊँचे-ऊँचे विशाल  स्वतंत्र १६×१२८खम्बे हैं । हज़ारों मूर्तियाँ शिल्प आकृति में है । माता का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित रत्नशिला  का स्वयंभू  एवम चमकीला है । यह प्रतिमा अति प्राचीन होने की वजह से घिस गयी थी । अतः सन १९५४ में क्लोपक्त विधि से मूर्ति में बज्रलेप-अष्ट वन्धादि  संस्कार करने से यह विग्रह स्प्ष्ट दिखायी देने लगा । चतुर्भुजी माता के हाथ में मातुलुङ्ग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर नाग, लिंग, योनि है–इसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के देवी माहत्म्य में मिलता है। इस मंदिर के घेरे में महालक्ष्मी का निज मन्दिर है।  मन्दिर का मुख्य भाग नीले पत्थरों से निर्मित है। मन्दिर के पास में ही पद्म सरोवर है, मत्स्यपुराण के अनुसार देश के बीच में श्री लक्ष्मी निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र स्थित है। जिसके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। इस शक्तिपीठ को ‘करवीरसुवासिनी’ या कोल्हापुर वासिनी कहा जाता है ।

यह शक्तिपीठ मन्दिर हेमाड़पंथी शैली का है । चारों दिशाओं से मन्दिर में प्रवेश कर सकते हैं। मन्दिर महाद्वार में प्रवेश के साथ ही देवी के दर्शन होते हैं। मन्दिर में स्तम्भों पर खूबसूरत नक्काशी है जो देखते ही बनती है। खम्भों की संख्या कितनी है यह आज तक कोई नहीं जान सका  क्योंकि जिसने भी इन खम्बों को गिनने की या जानने की कोशिश की  उसके साथ या उसके परिवार के साथ कोई न कोई अनहोनी जरूर हुई ।  इस शक्तिपीठ की सबसे बड़ी खासियत यह कि  वर्ष में एक बार सूर्य की  किरणें  देवी विग्रह पर सीधी  पड़ती हैं ।  स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर किरीट उत्कीर्ण है जिस पर शेषनाग फन की छाया है । साढ़े तीन फुट ऊँची यह प्रतिमा  बहुत सुंदर है । माता के विग्रह के निकट ही सिंह विराजमान है। महाराष्ट्र में इस शक्तिपीठ को अम्बाबाई कहते हैं ।  करवीर माहात्म्य में इस सिद्ध स्थान को प्रत्यक्ष ‘दक्षिण काशी’ कहा गया है। स्कंदपुराण के काशीखण्डानुसार महर्षि अगस्त्य अपनी पत्नी लोपामुद्रा के साथ काशी से दक्षिण आये और यहीं बस गये इसलिए इसे काशी से भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
*योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः ।।
तन्मद्ये पंचकोशं काश्याद्यादधिकं मुनि
क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः
तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात पाप नाशनम्
वाराणस्यांधिकं   क्षेत्रं करवीरपुरं महत्
भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्यां यवाधिकम् ।।*
इस मंदिर में बेशुमार खजाना छिपा है कुछ वर्ष पहले इसे खोला गया तो हजारों वर्ष पुराने सोने, चाँदी व हीरों के ऐसे आभूषण प्राप्त हुए जिनकी बाजार में कीमत अरबों रुपये में है। इतिहासकारों के अनुसार इस महालक्ष्मी शक्तिपीठ में कोंकण व चालुक्य राजाओं ,आदिल शाह, माता जीजाबाई व शिवाजी राजे तक ने चढ़ावा चढ़ाया है।
मान्यतानुसार भगवान से रूठ कर माता महालक्ष्मी कोल्हापुर आयीं इस वजह से तिरुपति देवस्थानम से आयी शालु हर वर्ष दीपावली के दिन पहनाया जाता है।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.