अनुपमा शर्मा:-


*तुम्हीं मात हो एक ज्योति स्वरूपमं।
तुम्हीं काल महाकाल माया विरूपमं।।
तुम्हीं हो ररंकार ओंकार वाणी।
तुम्हीं स्थावरं जंगम पोख प्राणी।।*
माता ज्वालादेवी शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा घाटी में पठानकोट जोगिंदर नगर नेरोगेज रेलमार्ग पर ज्वालामुखी रोड स्टेशन से २१किलोमीटर काँगड़ा से चौंतीस (३४)किलोमीटर तथा धर्मशाला से ५६ किलोमीटर दूर कालीधर पर्वत की तलहटी में स्तिथ है । यह शक्तिपीठ इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है तथा माता धूमादेवी का स्थान है। यहाँ माता सती की जिह्वा गिरी थी । इस पीठ की शक्ति सिद्धदा हैं और भैरव को उन्मत्त कहते हैं ।इस शक्तिपीठ में माता के दर्शन नौ ज्योतियों के रूप में होते हैं । जिनके नाम –महाकाली,महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, माता विंध्यवासिनी,माता अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी, और माता अम्बिका देवी हैं। उत्तर भारत के प्रमुख नौ देवी शक्तिपीठों में चौथा दर्शन माता ज्वालादेवी का ही होता है। यह एक सिद्ध स्थान है। नैना देवी, शाकम्भरी देवी,माता विंध्यवासिनी, चिंतपूर्णी व वैष्णों देवी भी इन्हीं की तरह शक्ति की ऊर्जा के क्षेत्र हैं । जहाँ जाकर मनुष्य इसका अनुभव कर सकता है ।
*जले ज्वाला स्थले ज्वाला
ज्वाला आकाश मण्डले ।।
त्रैलोक्ये व्यापिनी देवी
ज्वालादेवी नमोस्तुते ।।*
मुगल राजा अकबर ने इस ज्योतिस्वरूप स्थान को नष्ट करने का प्रयास किया लेकिन वह अपने प्रयास में असफल ही रहा। फिर उसने माता को सोने का छत्र चढ़वाया। सतयुग में महाकाली के भक्त राजा भूमिचंद को माता ने स्वप्न दिया तब स्वप्न से प्रेरित होकर उन्होंने इस मंदिर का भव्य निर्माण कराया । गुरु गोरक्षनाथ ने इस स्थान पर तप भी किया था । इस शक्तिपीठ के जो भी दर्शन करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं । यह मन्दिर (शक्तिपीठ)बड़ा रहस्यमयी है। वैज्ञानिकों ने कई बार यह जानने का प्रयास किया कि यह अग्नि आखिर आती कहाँ से है लेकिन वह आजतक पता नहीं लगा सके।
यह अति पावन एवं पवित्र स्थान है यहाँ शक्ति का प्रचण्ड वेग बहिर्मुखी रूप में दिखता है। यहाँ माता का कोई विग्रह नहीं है । वह ज्योतिस्वरूप होकर यहाँ प्रकट है और अनवरत स्व प्रज्वलित होती रहती है। बिन तेल बिन बाती। नवरात्रों में यहाँ भजन-पूजन व अर्चन का बड़ा महत्व है । माता ज्वालादेवी का मन्दिर कालीधार पर्वत पर स्थित है । इस मन्दिर के ऊपर सुनहरे गुम्बद व ऊँची चोटियाँ बनी हुई हैं । मन्दिर के अंदर तीन फीट गहरा व चौकोर गड्ढा है जिसके चारों ओर रास्ता बना हुआ है। माँ के दरबार के ठीक सामने सेज भवन है जहाँ माता का शयन कक्ष है। मंदिर में प्रवेश करते ही माता का सिंहासन(पलंग ) दिखायी देता है।
माता के अलावा यहाँ गोरख डिब्बी, श्री राधा कृष्ण मंदिर, लाल शिवालय, अम्बिकेश्वर महादेव, सिद्ध नागार्जुन, और टेढ़ा मन्दिर जैसे अनेक सिद्ध स्थान भी हैं। यहाँ एक छोटे से कुण्ड में सदैव जल खौलता रहता है लेकिन छूने पर वह अति शीतल बना रहता है । ऐसे ही ना जाने कितने चमत्कारों की जननी है माँ ज्वालादेवी का सिद्धदा अम्बिका शक्तिपीठ । जो भी सच्चे मन से माँ के दरबार आता है माँ उसकी हर इच्छा पूरी करती है।
*शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते।।*

