
ब्रजेश वर्मा:-
झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में पिछले कुछ साल से अलग थलग रह रही जामा विधायक सीता सोरेन ने मंगलवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं।
अपना इस्तीफा उन्होंने पार्टी सुप्रीमों शिबू सोरेन को दिया, जो रिश्ते में उनके ससुर लगते हैं। सीता सोरेन पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन के बड़े पुत्र स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं, जिनके निधन के बाद वह राजनीति में आईं थीं। सीता सोरेन पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी हैं। जमीन घोटाले के मामले में हेमंत सोरेन फिलहाल जेल में हैं।
लोकसभा चुनाव के समय अचानक से सीता सोरेन द्वारा अपने ही परिवार के लोगों पर गंभीर आरोप लगाकर इस्तीफा देना यह साबित करता है कि झारखंड की राजनीति में सबसे मजबूत रहे इस परिवार के अंदरूनी हालत ठीक नहीं हैं और पार्टी सुप्रीमों शिबू सोरेन अपने जीवन के सबसे कठिन राजनीतिक संकट को झेल रहे हैं।
अपने त्यागपत्र में सीता सोरेन ने आरोप लगाया है कि पिछले कुछ वर्षों से उनके और उनके परिवार के खिलाफ गहरी साजिश रच कर उन्हें अलग थलग कर दिया गया है।
उन्होंने अपने पति स्वर्गीय दुर्गा सोरेन को एक क्रांतिकारी नेता बताए हुए कहा है कि उनके गुजर जाने के बाद से ही उनके और उनके परिवार को अलग थलग कर दिया गया। अपने ससुर शिबू सोरेन को संबोधित पत्र में सीता ने कहा कि हालाकि गुरुजी ने परिवार को एकजुट रखने की हर कोशिश की, किंतु वे असफल रहे हैं। उन्हें हाल ही में पता चला है कि उनके परिवार के खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही है।
सीता सोरेन के खिलाफ कौन साजिश रच सकता है, यह भी अपने आप में एक सवाल है। सवाल यह उठता है कि यदि पार्टी सुप्रीमों को उन्हें राजनीति से दूर रखना होता तो वे उन्हें जामा विधानसभा से लगातार तीन बार टिकट देकर चुनाव क्यों जितवाते?
जानकारों की मानें तो सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिलना सीता सोरेन की नाराजगी का एक बड़ा कारण हो सकता है। हेमंत सोरेन कांग्रेस और आर जे डी के सहयोग से सरकार चला रहे थे, जिसमें सीता सोरेन को कोई भी बड़ा पद नही दिया गया। फिर जब हेमंत जमीन घोटाले के मामले में ई डी की गिरफ्त में आ गए तब शिबू सोरेन के सबसे करीबी मित्र चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गाय।
हाल ही में जब मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो उन्होंने हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन को मंत्री बनाया, किंतु सीता को कोई पद नही मिला।
बसंत सोरेन दुमका विधान सभा से पहली बार विधायक बने हैं और सीता सोरेन का विधानसभा जामा दुमका के ठीक बगल में है, जहां से वह तीन बार विधायक रह चुकी हैं। किंतु पार्टी ने बसंत सोरेन को प्राथमिकता दी।
सीता की नाराजगी का एक कारण यह भी बताया जा रहा है। साथ ही उनके परिवार में एक नया नेता उभर रही हैं जो सीता सोरेन की पुत्री हैं। पारिवारिक परंपरा के अनुसार अब वह भी चुनाव लड़ने की हकदार हैं।
सोरेन परिवार की सारी राजनीति उस संथाल परगना से चलती है, जहां से लगभग 45 साल पहले शिबू सोरेन ने झारखंड अलग राज्य की मांग का आंदोलन शुरू किया था। यह परिवार संथाल समाज से आता है और संथाल परगना इस समाज का गढ़ है। शिबू सोरेन दुमका से सांसद हुआ करते थे, हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका से विधायक रहे, स्वर्गीय दुर्गा सोरेन जामा से विधायक रहे, सीता सोरेन जामा से विधायक हैं और शिबू सोरेन के छोटे बेटे हेमंत सोरेन दुमका से विधायक हैं।
कुल मिलाकर देखने से ऐसा लगता है कि सोरेन परिवार की संथाल परगना पर हो रही ढीली पकड़ का इस बार के लोक सभा और इसी साल के अंत में होने वाले झारखंड विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी कोई बड़ा फायदा उठा सकती है।
झारखंड की राजनीति में जो फुसफुसाहट है उसके अंदाज यह लगाया जा सकता है कि विद्रोह कर सीता ने यदि भाजपा का साथ दिया तो फिर जेल में बंद हेमंत सोरेन और काफी बुजुर्ग हो चुके शिबू सोरेन के लिए कठिनाइयों भरे दिन सामने होंगे। यही आशंका है।
सोरेन परिवार में दो नई नेत्री उभर रही हैं । एक तो सीता सोरेन की पुत्री हैं और दूसरी हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, जिन्होंने राजनीति में कदम रख दिया है और जिनके गांडेय विधानसभा उप चुनाव में पार्टी की ओर से लड़ना तय माना जा रहा है।
फिर भी सोरेन परिवार की राजनीति यहां तक नही ठहरती। सवाल है कि दुमका लोकसभा सीट से मुक्ति मोर्चा के टिकट पर कौन चुनाव लडेंगे? पार्टी ने अभी तक भाजपा के खिलाफ अपने उम्मीदवार की घोषणा नही की है। दुमका सीट को पिछले चुनाव में भाजपा के सुनील सोरेन ने शिबू सोरेन से जीत लिया था।
सीता सोरेन के इस्तीफे में इसका रहस्य छिपा हो सकता है। उनके विद्रोह को शांत करने के लिए पार्टी ने यदि उनकी पुत्री को दुमका लोक सभा सीट से भाजपा के खिलाफ चुनाव लडा दिया तो क्या होगा? यह भी एक सवाल है।

