

अनुपमा शर्मा:–
या देवीसर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
तिब्बत में कैलाश मानसरोवर के मानसा के निकट एक पाषाण शिला पर माता सती की बायीं हथेली का निपात(गिरना) हुआ था। इस शक्तिपीठ की शक्ति हैं दाक्षायणी और भैरव अमर हैं। यहाँ के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहाँ माता का दायाँ हाथ गिरा था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार —
*राम मनसा निर्मित परम् ।*
*ब्रह्मणा नरशार्दूल तेनेदं मानसं सर: ।।*
ब्रह्मा के मन से निर्मित होने के कारण ही इसे’मानसरोवर ‘कहा गया है। जैन ग्रन्थों में कैलाश को ‘अष्टपद’ तथा मानसरोवर को ‘पद्महद’कहा गया है। कैलाश स्थित मानस शक्तिपीठ का गौरवपूर्ण वर्णन हिन्दू, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थों में भी मिलता है। हिन्दुओं के लिये कैलाश पर्वत ‘भगवान शिव ‘का सिंहासन है तो बौद्धों के लिये विशाल प्राकृतिक मण्डप और जैनियों के लिये ऋषभदेव तथा अन्य अन्य तीर्थंकरों का निर्वाण स्थल है । तथा अनेक तीर्थंकरों ने यहाँ स्नान कर तपस्या भी की थी। ।हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही इसे तांत्रिक शक्तियों का भण्डार मानते हैं ।

इस समय बेशक यह चीन के अधीन है लेकिन हिन्दू, बौद्ध,जैन तथा तिब्बतियों के लिये यह अति प्राचीन स्थान है । यहाँ भगवान शिव स्वयं हंस के रूप में विहार करते हैं। तिब्बती धर्मग्रन्थ ‘कंगरी करछक’ में मानसरोवर को देवी ‘दोर्जे फांग्मो’ का निवास स्थान कहा गया है। यहाँ भगवान देमचोर्ग देवी फांग्मो के साथ नित्य विहार करते हैं। इस तिब्बती ग्रन्थ में मानसरोवर को त्सोमफम कहते हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि भारत वर्ष से एक बड़ी मछली आकर उस सरोवर में मफम कहते हुए प्रविष्ट हुई इसी वजह से उसका नाम त्सोमफम पड़ गया। मानसरोवर के निकट ही राक्षस ताल है जिसे ‘रावण हृद’ भी कहते हैं । मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती लोग इस नदी को लंगकत्सु कहते हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार रावण एक बार अष्टपद की यात्रा पर आया और उसने पद्महद में स्नान करना चाहा किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया । तब रावण ने एक सरोवर का निर्माण कर उसमें मानसरोवर की धारा ला कर स्नान किया।
*सर्वाबाधा प्रशमनं *त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।*
*एवमेवत्वयाकार्य स्मद्वैरि विनाशनम्।।*
