ब्रजेश वर्मा:

इस बार का लोकसभा चुनाव विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां और उनके काले धन को जब्त कर लड़ा जा रहा है।
याद कीजिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में क्या कहा था?
आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता तथा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ई डी ने भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि जिन्होंने देश को लूटा है उन्हें इसका हिसाब देना ही होगा।
जिन दो मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार किया गया, इनपर बड़े पैमाने में लूट का आरोप है। हालाकि यह स्पष्ट नहीं है कि लूट सिर्फ उन्हीं राज्यों में हुई जहां भारतीय जनता पार्टी की विरोधी सरकारें हैं। भारत में सरकारी संपत्ति और खजाने की लूट सबसे बड़ी इंडस्ट्री है, इसमें सत्ता और विपक्ष का कोई भेद नहीं। मामला है कि किसने इसका राजनीतिक फायदा उठाया और वह भी चुनाव के समय। अभी शायद और भी गिरफ्तारियां हों।
जिस तरीके से कांग्रेस नेतृत्व वाली इंडिया गठबंधन से जुड़े नेताओं और अधिकारियों एवं माफिया लोगों की अवैध संपति को जब्त किया जा रहा है, उसका इस चुनाव पर जबरदस्त असर पड़ने वाला है।
कांग्रेस के अध्यक्ष सहित उनके बड़े नेताओं ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार की ट्रिक यह है कि कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के बड़े नेताओं की संपति को चुनाव के समय जब्त कर लो ताकि वे दिवालिया हो जाएं।
यदि यह आरोप सही है तो इसका सीधा असर इंडिया गठबंधन पर पड़ेगा। वह चुनाव के बीच में ही लड़खड़ा जायेगी। भारत में न सिर्फ पार्टियों को खर्च करना पड़ता है, बल्कि ग्रामीण और छोटे शहरी इलाकों में एक बड़ी संख्या वैसे मतदाताओं भी हैं, जो पैसे लेकर वोट डालते हैं। यह तरीका भारतीय चुनाव प्रणाली का एक अहम हिस्सा है।
यह पहली बार हो रहा है कि देश में व्यापक स्तर पर भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के घरों सहित उन्हें कथित रूप से फंडिंग करने वालों के घर छापेमारी हो रही हैं।
पहले निशाने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आए। उनके कार्यकाल में राजमहल की पहाड़ियों सहित अन्य पहाड़ों को पत्थर माफिया के हाथों इस तरह से लुटवाया गया कि मीलों तक पहाड़ खोखले नजर आते हैं। फिर खुद हेमंत सोरेन ने जबरिया जमीनो को अपने कब्जे में करना शुरू किया, जिसमें उपायुक्त जैसे बड़े अधिकारी शामिल हुए। अब हेमंत पद से इस्तीफा दे चुके हैं और रांची के जेल में हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पिछले दस साल की राजनीति एक सामाजिक ऐक्टिविस्ट की तरह रही, जिसमें मुफ्त में बांटकर दिल्ली को बरबाद कर दिया गया। दिल्ली में लोग बहुत शराब पीते हैं। एक बड़ा शराब घोटाला हो गया।
फिर भी केजरीवाल से आम शहरियों को इस मुद्दे से उतना खतरा नही दिखता। बिहार में तो शराबबंदी है, लेकिन यह हर कोई जानता है कि यहां शराब की होम डिलेवरी से लेकर अन्य तरीकों से गोरखधंधा होता है। बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहां जहरीली शराब पीकर सबसे अधिक लोग मरे हैं, किंतु कभी किसी पर कार्यवाही नही होती।
अरबिंद केजरीवाल का सबसे खतरनाक मुहिम पंजाब में फिर से खालिस्तान समर्थकों का जागना है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री खुद केजरीवाल की पहली पसंद हैं।
इन लोगों ने कथित रूप से उन खालिस्तानियों को पंजाब में फिर से जीवित कर दिया, जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी बलि देकर समाप्त कर दिया था। आश्चर्य है कि आज की कांग्रेस पार्टी यह कैसे भूल गई कि खालिस्तानियों ने उनके प्रधानमंत्री को उनके ही घर में किस तरह से मारा था। जब केजरीवाल और पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री पीठ पीछे खालिस्तानियों को समर्थन करते दिखाई देते हैं तो आश्चर्य आज के कांग्रेस नेतृत्व पर होता है, जिन्होंने केजरीवाल को इंडिया गठबंधन का मुख्य हिस्सा बनाया है।
देश में होनेवाले प्रायः हर चुनाव के वक्त, चाहे वह उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के हों या फिर दक्षिण भारत के, अरविंद केजरीवाल की नाक के सामने दिल्ली में कानून व्यवस्था बिगागने की कोशिश की जाती रही। शाहीन बाग और जे एन यू तथा लाल किले पर कथित किसान आंदोलनकारियों का भारतीय झंडे को उतरना जैसी घटनाएं केजरीवाल के काल का काला सच है। ये लोग कानून को मानते ही नहीं। केजरीवाल को नौ बार और हेमंत सोरेन को आठ बार ई डी ने सम्मन भेजा था, किंतु वे कुछ मानते ही नही थे। हेमंत ने तो विधानसभा में यह पास करा दिया था कि कोई भी केंद्रीय एजेंसी उनके राज्य के नेताओं से पूछताछ नही कर सकती। यह सब ऐसा हो रहा था मानों ये लोग संविधान से ऊपर हों।
भारतीय जनता पार्टी ने उन दिनों कुछ नहीं किया, वह चुपचाप वक्त का इंतजार करती रही और इस बीच कश्मीर से धारा 370 और तीन तलाक को हटाया और साथ से सी ए ए भी लागू करा दिया। फिर अपने सबसे चर्चित मुद्दे राम मंदिर का निर्माण भी करा लिया।
कांग्रेस, केजरीवाल और उनके अन्य सहयोगी उलझनों में फंसे रहे। भाजपा जानती थी कि उसकी सरकार इन्हें कभी न कभी मुठ्ठी में कर ही लेगी। और, वक्त चुना गया देश में आम चुनाव का, जब ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां के साथ विपक्षी दलों के खजाने खाली कराए जा रहे हैं।
क्या कोई पार्टी पैसे के अभाव में चुनाव लड़ सकती है ? इस बार चुनाव की यही राजनीति है।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.