अनुपमा शर्मा:-


भारतीय मंदिर न केवल वास्तुशिल्प चमत्कार हैं बल्कि आध्यात्मिक अभयारण्य भी हैं जो हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ते हैं और हमें ईश्वर के करीब लाते हैं।”
*ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघात्र्छूलं भुशुण्डीं शिर:*
*शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वांगभूषावृताम् ।*
*नीलाश्म धुतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां*
*यामस्तौव्स्वपिते ह्वरौ कमलजो हन्तुं मधुंकैटभम्। ।*
५१ शक्तिपीठ में से बहुला चण्डिका शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले से ७किलोमीटर दूर कटवा के पास केतुग्राम या ब्रह्म गाँव में अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल ग्राम में है। यहाँ माता सती का बायाँ हाथ(भुजा) गिरा था। इस शक्तिपीठ की देवी हैं बाहुला और भैरव को भीरुक कहते हैं । केतुग्राम के देवत्व की अध्यक्षता करने वाली देवी बाहुला को कार्तिक व गणेश के रूप में देखा जाता है।
*शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे* ।
*सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ।।*
हावड़ा से १४५किलोमीटर दूर पूर्वी रेलवे के नवद्वीप धाम से ४१ किलोमीटर दूर कटवा जंक्शन से पश्चिम की ओर ‘केतुग्राम’ (ब्रह्म) में स्थित शक्तिपीठ तक आने के लिये नज़दीकी हवाई अड्डा वर्धमान है। अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा कोलकाता में है। कटवा से कोलकाता १८० किलोमीटर दूर है। कटवा से केतुग्राम ३० किलोमीटर दूर है । कृष्णानगर से देवग्राम होते हुए भी कटवा पहुँच सकते हैं। कटवा वर्धमान से लगभग ५६ किलोमीटर दूर है। यह पवित्र स्थल माँ दुर्गा और भगवान शिव को समर्पित है।
हिंदू देवता बहुला को कभी-कभी बाहु या बहुलादेवी भी कहा जाता है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा – भगवान जगन्नाथ की भूमि , दो भारतीय राज्य, जहां उनकी सबसे अधिक पूजा की जाती है। उसका नाम संस्कृत से “कई भुजाओं वाली” के रूप में अनुवादित होता है, उसे अक्सर कई भुजाओं के साथ देखा जाता है, जिनमें से प्रत्येक एक अलग चीज पकड़ती है। चूंकि बहुला को अक्सर प्रजनन क्षमता से जोड़ा जाता है, इसलिए कहा जाता है कि उसके विश्वासियों को भरपूर फसल और संतान का आशीर्वाद मिलता है। उन्हें बीमारियों और बुरी आत्माओं के खिलाफ संरक्षक और मवेशियों के रक्षक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।
कुछ मिथकों के अनुसार, एक मजबूत रक्षक और सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित देवी दुर्गा, बहुला के रूप में प्रकट होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि वीरसेन नाम के एक राजा से बहुला ने मुलाकात की थी, जिसने अनुरोध किया था कि वह उसके सम्मान में एक मंदिर बनवाए। राजा सहमत हो गए और बहुला का आशीर्वाद लेने वाले लोग मंदिर में इकट्ठा होने लगे।
बहुला के बारे में एक अन्य किंवदंती में बकासुर नाम के एक राक्षस का वर्णन किया गया है जिसने एक समुदाय को आतंकित कर दिया था। जब ग्रामीणों ने बहुला से सहायता के लिए प्रार्थना की, तो वह असंख्य हथियारों से सुसज्जित होकर उनके सामने उपस्थित हो गई। उन्होंने बकासुर को परास्त किया और गांव में शांति स्थापित की।
बहुला शक्ति पीठ को भारत के कुछ हिस्सों में देवी काली के स्वरूप के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है, जिन्हें अक्सर एक मजबूत योद्धा और बुराई का नाश करने वाली के रूप में चित्रित किया जाता है। इन मान्यताओं के अनुसार, बहुला काली के मातृ और सुरक्षात्मक गुणों का प्रतिनिधित्व करती है। बहुला को एक मजबूत और उदार देवी के रूप में देखा जाता है जो अपने अनुयायियों को सुरक्षा, उर्वरता और समृद्धि प्रदान करती है। उनकी भक्ति हिंदू पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिकता की विशाल और विविध टेपेस्ट्री में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
इस शक्तिपीठ को भारत के ऐतिहासिक स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ पर श्रद्धालुओं को देवी शक्ति के रूप में एक अलग ही तरह की ईश्वरीय ऊर्जा मिलती है। यहाँ प्रसाद में रोजाना सुबह माँ को मिठाई और फल चढ़ाकर पूजा करते हैं। महाशिवरात्रि और नवरात्रि में यहाँ बहुत चहल-पहल व रौनक रहती है। नवरात्रि में भक्त बिना कुछ खाये शक्तिपीठ के चक्कर लगाते हैं। शक्तिपीठ के अलावा यहाँ गुरुद्वारा काली व शिवलिंगम मन्दिर हैं जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र हैं।
*देवी त्वम नाद त्वम बिंदु नव सिद्धि ।*
*देवी त्वम शिव त्वम शक्ति सर्व सिद्धि ।।*
