

अनुपमा शर्मा:–
*नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।*
*नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥*
*रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धा˜यै नमो नम:।*
*ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नम:॥*
धर्मशास्त्र के जानकारों के अनुसार उज्जैन में दो शक्तिपीठ स्थित हैं। दोनों शक्तिपीठ आमने सामने पहाड़ी पर हैं। दोनों मंदिरों में विराजित देवियों की मूर्तियां आमने सामने हैं। मान्यता के अनुसार पहला हरसिद्धि व दूसरा शक्तिपीठ अवंतिका है। मान्यता के अनुसार शक्तिपीठ हरसिद्धि में माता सती की सीधे हाथ की कोहनी तथा शक्तिपीठ अवंतिका में ऊध् र्व ओष्ठ गिरा था। पंचांगकर्ता ज्योतिर्विद पं.आनंद शंकर व्यास बताते हैं उज्जैन में दो शक्तिपीठ होने की मान्यता है। इसका उल्लेख कल्याण के शक्ति अंक में भी मिलता है। शास्त्रों में नगर में स्थित यह दोनों शक्तिपीठ आमने सामने बताए गए हैं।
एक और अन्य अंतर स्थान को लेकर भी है।
इस शक्तिपीठ के बारे में अलग अलग मान्यता है। विद्वानों के मतानुसार यह शक्तिपीठ तीन स्थानों पर माना जाता है । पहला मध्य्प्रदेश के उज्जैन नगर में रुद्रतालाब के पास हरसिद्धि मन्दिर को शक्तिपीठ माना जाता है और दूसरा पश्चिम बंगाल में वर्धमान जिले से लगभग१६ किलोमीटर गुस्कुर स्टेशन से उज्जयिनी नामक स्थान पर इस शक्तिपीठ के होने की जानकारी है तो कुछ विद्वान उज्जैन के निकट क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित भैरव पर्वत पर गड़गालिका को मानते हैं। तीसरा कुछ गुजरात के गिरनार पर्वत के सन्निकट भैरव पर्वत को वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं। यहाँ माता सती की दायीं कलाई गिरी थी। यहाँ की शक्ति हैं मंगल चन्द्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन स्थित हरसिद्धि मन्दिर को मुख्य शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ शक्तिपीठ की देवी शक्ति को ‘मंगल चण्डिका’ तथा शिव को ‘मांगल्यकपिलांबर कहते हैं। बताया जाता है कि यहाँ माता की कोहनी का निपात हुआ था। इस तरह तीनों शक्तिपीठ अलग-अलग ही माने या कहे जायेंगे।’
यह शक्तिपीठ मन्दिर पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। मन्दिर केप्रवेश द्वार पर दो विशाल दीप स्तम्भ १५फीट ऊँचे बने हुए हैं, नवरात्रि के समय इन स्तम्भों को रोशनी से सजाया जाता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर एक शेर की मूर्ति है। जिस पर देवी सवार हैं। दरवाजे के दोनों ओर दो नागदा हैं जिनका प्रयोग सुबह शाम की आरती के समय होता है।
पौराणिक मान्यतानुसार जब चण्ड व प्रचण्ड नामक दो राक्षसों ने देवताओं पर विजय प्राप्त की और भगवान शिव के निवास कैलाश पर हमला किया। राक्षसों के हमले के समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ पासे खेल रहे थे। नंदी को चण्ड व प्रचण्ड ने हरा दिया । तब भगवान ने राक्षसों को अपनी ओर आते हुए देखा तो उन्होंने शक्ति का ध्यान किया तब पार्वती हरसिद्धि के रूप में प्रकट हुई और राक्षसों का वध कर डाला। इस वजह से हरसिद्धि को त्रिपुरान्तक की शक्ति के रूप में जाना जाता है।
*दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै।*
*ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नम:॥*
*अतिसौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नम:।*
*नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:॥*

