अनुपमा शर्मा:–


*सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी*
*त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ||*
त्रिपुरा में माता त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है. माता को त्रिपुर सुदंरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में इनसे सुंदर कोई नहीं है । माँ की उम्र 16 साल है। नवरात्रि के मौके पर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है
भारत के पूर्वोत्तर राज्य में स्थित माँ त्रिपुर सुंदरी का मंदिर देवी के प्रख्यात मंदिरों में से एक है. यह 51 शक्तिपीठों में से एक है । माँ त्रिपुर सुंदरी के नाम पर ही त्रिपुरा राज्य का नाम पड़ा। माता कमाख्या देवी की तरह ही इस मंदिर को भी तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता है।
त्रिपुरा स्थित ‘ त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात १०८और ज्ञात ५१शक्तिपीठों में से एक हैं । मान्यतानुसार यहाँ माता सती का ‘दक्षिण पाद’ गिरा था। मन्दिर प्रांगण कूर्म की पीठ जैसा होने की वजह से इस स्थान को कूर्मपीठ भी कहते हैं।
मन्दिर में लाल काली कास्टिक पत्थर की बनी माँ महाकाली की भी मूर्ति है।
त्रिपुर सुंदरी दस महा विद्याओं में से एक हैं । इन्हें महात्रिपुर
श्री कामराज महाविद्या की अधिष्ठात्री श्री विद्या का ही श्री कामराज महाविद्या की अधिष्ठात्री श्री विद्या का ही नामांतर त्रिपुरा यानी गुणत्रयातीता त्रिगुणानियंत्री शक्ति त्रिपुरा यानी गुणत्रयातीता त्रिगुणानियंत्री शक्ति
*प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि |*
*त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ||*
*यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तमलं बलं च
सा ।* *चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ||*
त्रिपुर सुंदरी…। त्रिपुर यानी तीनों लोकों (आकाश, धरती और पाताल) की श्रेष्ठ सुंदरी।
मान्यता है कि यहां देवी सती का सीधा पैर गिरा था। इन्हीं के नाम पर त्रिपुरा स्टेट का नाम भी है। त्रिपुर सुंदरी दुर्गा का काली अवतार है। सुबह 4 बजे मंदिर के पट खुले। इसके बाद पंचदेवों के साथ त्रिपुर सुंदरी का विशेष पूजन हुआ। ये सिलसिला पूरी नवरात्रि चलता है ।
ऐसा भी कहा जाता है कि माता सती का ‘दाहिना पैर’ उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिमी बाहरी इलाके में माताबाड़ी में गिरा था. इस ‘पीठस्थान’ (तीर्थयात्रा का केंद्र) को कूर्भपीठ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि मंदिर परिसर का आकार “कूर्म” या कछुए जैसा दिखता है. मंदिर की अधिष्ठात्री देवी ‘मां काली’ की मूर्ति, गर्भगृह में विराजमान है और यह लाल रंग के काले पत्थर से बनी है, जिसे बंगाली में ‘कष्टीपाथर’ के नाम से जाना जाता है.
