



ब्रजेश वर्मा:–
19वीं सदी के अंतिम दशक में बिहार के चार ऐसे महान हस्ती थे, जिन्होंने लंदन स्थित सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में जाकर बैरिस्टरी की पढ़ाई की और फिर वापस लौटकर बिहार को दुनिया के नक्शे पर ला खड़ा किया।
सोसायटी ऑफ द मिडिल टेंपल की स्थापना सन 1312 में लंदन में लोगों को कानून की शिक्षा देने के उद्देश्य से किया गया था। ब्रिटेन रोमनों के कानून से बाहर निकलकर अपने खुद के बनाए कानून की ओर अग्रसर था। यह काम ब्रिटेन के राजा हेनरी सप्तम से जेम्स प्रथम तक चला। इस कॉलेज को कई बार जलाया गया, किंतु यह हमेशा उठ खड़ा हुआ।
भारत में जब अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत हुई तो कम से कम चार ऐसे बिहारी छात्र थे, जिन्होंने रूढ़िवादिता को तोड़ समुद्र के पार जाकर लंदन के सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में कानून की पढ़ाई हासिल की। यह कॉलेज उन दिनों के बिहारियों की पहली पसंद थी।
उन चार महान बिहारियों में सच्चिदानंद सिन्हा (1871-1950), अली इमाम (1869-1932), हसन इमाम (1871-1933) और दीप नारायण सिंह (1875-1935) का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।
उन दिनों विदेशों में जाकर पढ़ाई करने के बाद जब छात्र वापस भारत लौटते तो उनका शुद्धिकरण किया जाता। यहां तक कि बिहार के दरभंगा महाराज को भी यह समस्या झेलनी पड़ी थी। सच्चिदानंद सिन्हा ने 1889 में लंदन जाकर सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में एडिशन लिया था।
तीन साल बाद जब उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी कर भारत आने को सोचा तब उसके एक संबंधी ने उन्हें पत्र लिखकर उनके शुद्धिकरण की मांग की। पत्र के जवाब में सच्चिदानंद सिन्हा ने लिखा, “यदि हमें यह मालूम होता कि समुद्र के पार जाने से कोई पाप लगता है तो मैं भारत से बाहर नही जाता। भारत के बाहर किसी भी व्यक्ति के लिए यात्रा करना पाप नही होता। बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि अपनी प्रगति के लिए यह जरूरी है। मैने जो शिक्षा हासिल की है उसके तहत मैं किसी भी प्रकार का कर्मकांड नहीं करूंगा।” सच्चिदानंद सिन्हा बिहार के आरा जिले के रहने वाले थे।
यही कारण था कि उन्होंने अपने बचपन के मित्र भागलपुर के दीप नारायण सिंह का 1890 में लंदन में स्वागत किया। दीप नारायण सिंह भारत के जायसवाल समाज से आते थे। उन दिनों इस समाज से आने वाले दीप नारायण सिंह द्वारा भारत में चल रहे छुआछूत के भ्रम को तोड़ना बहुत बड़ी बात थी। वह अपने पिता राय बहादुर तेज नारायण सिंह के साथ लंदन गए थे। तेज नारायण सिंह बहुत ही प्रगतिवादी विचार के थे। उनकी मृत्यु भी 1896 में लंदन में ही हुई थी।
दीप नारायण ने सच्चिदानंद सिन्हा की सलाह पर ही सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में एडमिशन लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे बहुत दिनों तक लंदन में ही रहे। किंतु जब 1896 में उनके पिता की मृत्य हो गई तब वे वापस भारत आ गए।
दीप नारायण सिंह प्रथम ग्लोबल भारतीय थे, जिन्होंने अपनी साठ साल की उम्र में 16 साल तक कम से कम दो बार विश्व की यात्रा की। उन्होंने यूरोप, अमरीका, दक्षिण अमरीका, जापान और रूस को उन दिनों काफी नजदीक से देखा। भारत का कोई भी व्यक्ति उनकी तरह यात्रा नही कर पाया था। उन्होंने दुनिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति को अच्छे से समझा था।
वापस भारत आकर दीप नारायण सिंह ने एक दिन के लिए भी किसी भी अदालत में वकालत नही की। वे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े। 1901 में बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बने, 1908 में मद्रास कांग्रेस में जाकर स्वदेशी पर भाषण दिया, 1909 में भागलपुर में हुए बिहार प्रांतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले भी आए थे और 1920 में तिलक स्वराज फंड के लिए बैलगाड़ी पर घूमकर एक लाख रुपए जमा किया। वे भारत के चार प्रमुख फैशन में रहने वाले लोगों में से एक थे। दीप नारायण सिंह ने अंत में अपनी सारी संपति बिहार में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए दान कर दिया।
तीसरे बिहारी जिन्होंने लंदन जाकर सोसाइटी ऑफ मिडल टेंपल में शिक्षा हासिल की वे सर अली इमाम थे। वे पटना के पास नेउरा गांव के रहने वाले थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1887 में लंदन गए और फिर 1890 में सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में एडमिशन लिया।
भारत आकर अली इमाम ने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। 1909 में वे कलकत्ता हाई कोर्ट में स्टेंडिंग काउंसिल टू दि गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के सदस्य बने, अगले साल लॉ मेंबर ऑफ गवर्नमेंट ऑफ इंडिया बने, हैदराबाद निजाम की सेवा में भी रहे, 1908 में बिहार प्रांतीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष रहे, 1909 में अमृतसर स्थित मुस्लिम लीग के अधिवेशन की अध्यक्षता की और प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशंस में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व किया।
उनके छोटे भाई हसन इमाम थे, जिन्होंने 1892 में लंदन जाकर सोसाइटी ऑफ द मिडल टेंपल में एडमिशन लिया। सच्चिदानंद सिन्हा से उनकी इतनी दोस्ती थी कि वह उन्हीं के कमरे में रहा करते थे। वापस आकर हसन इमाम ने कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत की। पटना में दि बिहार टाइम्स अखबार के थोड़े समय के लिए संपादक भी रहे, 1908 के मद्रास कांग्रेस में हिस्सा लिया, बिहार को बंगाल से अलग प्रांत बनाने में सच्चिदानंद सिन्हा की मदद की, पटना उच्च न्यायालय में जज रहे और अंत में 1918 में बंबई में हुए आखिर भारतीय कांग्रेस कमेटी के स्पेशल अधिवेशन की अध्यक्षता भी की।
