अनुपमा शर्मा:

*कैलाशा चल कन्दरालय उमा शंकरी*
*कौमारी निगमार्थ गोचरकरी ओंकार बीजाक्षरी*
*मोक्षद्वार कपाट पाटन करी काशीपुरा धीश्वरी*
*भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्नपूर्णेश्वरी ।।*
सात पवित्र पुरियों में से एक काशी को वाराणसी और बनारस भी कहते हैं । काशीविश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर मीरघाट मुहल्ले में स्थित यह शक्तिपीठ विशालाक्षी शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ भगवान शिव का विशालाक्षेश्वर नाम से शिवलिंग भी विराजमान है।उत्तरप्रदेश के बनारस(काशी) में मणिकर्णिका घाट पर माता सती के कान के मणि जड़ित कुण्डल व आँख  गिरे थे । इस शक्तिपीठ की शक्ति विशालाक्षी  हैं और भैरव को काल भैरव कहते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार विशालाक्षी नौ गौरियों में पंचम हैं और श्री काशीविश्वनाथ उनके मंदिर के समीप ही विश्राम करते हैं।
*देवी सर्वविचित्र रत्न रचिता दाक्षायणी सुंदरी*
*वामा स्वादु पयोधर प्रियकरी सौभाग्य माहेश्वरी ।*
*भक्तभीष्ट करी सदा शुभ करी काशी पुराधीश्वरी*
*भिक्षां देहि कृपावलम्बन करी  मातान्नपूर्णेश्वरी ।।*
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ अन्नपूर्णा, जिनके आशीर्वाद से समस्त संसार के जीव भोजन प्राप्त करते हैं, वे ही माता अन्नपूर्णा विशालाक्षी हैं। स्कंद पुराण के अनुसार जब महर्षि व्यास को वाराणसी में कोई भी भोजन अर्पण नहीं कर रहा था तब माता अन्नपूर्णा(विशालाक्षी ) गृहिणी के रूप में प्रकट हुयीं और महर्षि वेद व्यास जी को भोजन दिया। तंत्र सागर के अनुसार भगवती गौरवर्णा हैं उनके दिव्य विग्रह से तप्त स्वर्ण सदृश्य कांति प्रवाहित होती है। वह अत्यंत रूपवती हैं तथा सदैव षोडशवर्षीया दिखती हैं। वह मुण्डमाल धारण करती हैं व रक्तवस्त्र पहनती हैं । उनके दो जिनमें वह क्रमशः खड्ग, खप्पर धारण करती हैं। इस शक्ति पीठ में पूजा अर्चना करने से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है। यहाँ के बारे में मान्यता है जो भी भक्त ४१ मंगलवार तक कुमकुम का प्रसाद चढ़ाता है माँ उसकी हर मनोकामना पूरी करती है।
*अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शङ्कर प्राण वल्लभे*
*ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि पार्वती ।।*
*माता पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः*
*बान्धवा:शिव भक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ।।*
विशालाक्षी मंदिर 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। विशालाक्षी मंदिर को विशालाक्षी गौरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह वाराणसी में पवित्र गंगा नदी के तट पर मीर घाट पर स्थित एक सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। विशालाक्षी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, यह हिंदू देवी माँ आदि शक्ति को समर्पित सबसे पवित्र मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि देवी सती की बालियाँ उस स्थान पर गिरी थीं जहां आज विशालाक्षी मंदिर है।
विशालाक्षी शक्तिपीठ मंदिर विशालाक्षी माँ (जिसका अर्थ है चौड़ी आंखों वाली देवी) को समर्पित है । 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। विशालाक्षी मंदिर को विशालाक्षी गौरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।   यह हिंदू देवी माँ आदि शक्ति को समर्पित सबसे पवित्र मंदिर है।  मंदिर सुबह 05.00 बजे से रात 09.00 बजे तक खुला रहता है ।
वाराणसी में छह मंदिर हैं जो षडंग (छह गुना) योग का प्रतीक हैं। ये हैं विश्वनाथ मंदिर, विशालाक्षी मंदिर, पवित्र गंगा नदी, काल भैरव मंदिर, धूदिराज मंदिर (यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है) और दंडपाणि मंदिर (भगवान शिव को समर्पित)।
*विशालाक्षी मंदिर का इतिहास* —-
ऐसा माना  माना जाता है कि
वाराणसी में इस पवित्र स्थान पर माता सती की बालियां या आँखें गिरी थीं। कजली तीज, भारतीय महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार, विशालाक्षी मंदिर में बहुत खुशी से मनाया जाता है। यह त्यौहार हिंदू माह भाद्रपद (अगस्त) के तीसरे दिन पखवाड़े के दौरान आयोजित किया जाता है।
विशालाक्षी शक्तिपीठ मंदिर वाराणसी उत्तर प्रदेश
विशालाक्षी शक्तिपीठ मंदिर विशालाक्षी मां (जिसका अर्थ है चौड़ी आंखों वाली देवी) को समर्पित है, 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक है। विशालाक्षी मंदिर को विशालाक्षी गौरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह वाराणसी में पवित्र गंगा नदी के तट पर मीर घाट पर स्थित एक सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। विशालाक्षी मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, यह हिंदू देवी मां आदि शक्ति को समर्पित सबसे पवित्र मंदिर है। किंवदंतियों के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि देवी सती की बालियां उस स्थान पर गिरी थीं जहां आज विशालाक्षी मंदिर है। समय: मंदिर सुबह 05.00 बजे से रात 09.00 बजे तक खुला रहता है ।
विशालाक्षी मंदिर का इतिहास ऐसा माना जाता है कि वाराणसी में इस पवित्र स्थान पर माता सती की बालियां या आंखें गिरी थीं। कजली तीज, भारतीय महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार, विशालाक्षी मंदिर में बहुत खुशी से मनाया जाता है। यह त्यौहार हिंदू माह भाद्रपद (अगस्त) के तीसरे दिन पखवाड़े के दौरान आयोजित किया जाता है।
सती प्रजापति दक्ष की बेटी थीं और उन्होंने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध भगवान शिव से विवाह किया था। एक बार, प्रजापति दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया था लेकिन उन्होंने अपनी बेटी और अपने दामाद को नहीं बुलाया। सती अपने पिता के ऐसे व्यवहार से बहुत दुःखी थीं। वह वहाँ पहुँची लेकिन सती की उपेक्षा करने के कारण उसे अपने पिता से अपमानित होना पड़ा। वह अपने पति (भगवान शिव) का अपमान सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
वह मर गयी लेकिन उसका शव नहीं जला। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपना वीरभद्र रूप धारण कर लिया। उन्होंने दक्ष का सिर काट दिया लेकिन अंततः उन्होंने उसके जीवन को पुनर्जीवित करके उसे माफ कर दिया। दुखी भगवान शिव सती के शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमते रहे। अंततः भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को 52 भागों में विच्छेदित कर दिया। शरीर का प्रत्येक अंग शक्तिपीठ बन गया। जिस स्थान पर शरीर का टुकड़ा धरती पर गिरा था वह स्थान मंदिर में परिवर्तित हो गया।
भगवान शिव ने शक्ति पीठ की सुरक्षा के लिए संरक्षक के रूप में प्रत्येक शक्ति पीठ के लिए 52 भैरवों की रचना की थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी आंखें या बालियां वाराणसी में गिरी थीं, इसीलिए वाराणसी में इस मंदिर को विशालाक्षी मंदिर कहा जाता है।
वाराणसी में छह मंदिर हैं जो शास्तांग (छह गुना) योग का प्रतीक हैं। ये हैं विश्वनाथ मंदिर, विशालाक्षी मंदिर, पवित्र गंगा नदी, काल भैरव मंदिर, धूदिराज मंदिर (यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है) और दंडपाणि मंदिर (भगवान शिव को समर्पित)।
विशालाक्षी मंदिर का महत्व विशालाक्षी मां की पूजा करने से ठीक पहले भक्त गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं। भक्तों का मानना ​​है कि देवी को पूजा, जल चढ़ाना, गीत जपना अत्यधिक लाभदायक है क्योंकि देवी सफलता और धन प्रदान करती हैं। अविवाहित लड़कियां अपने वर को पाने के लिए, नि:संतान माँ संतान पाने के लिए और दुर्भाग्यशाली लोग अपने उज्ज्वल भाग्य के लिए देवी विशालाक्षी की पूजा करती हैं।
भक्त अक्टूबर के महीने में इस मंदिर में नवरात्रि मनाते हैं और साथ ही भैंस राक्षस (महिषासुर) पर देवी दुर्गा की विजय का जश्न मनाते हैं। वे अन्य नवरात्रि चैत्र (मार्च) के पखवाड़े  में मनाते हैं। प्रत्येक नौ दिन में वे नवदुर्गा की पूजा करते हैं।

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.