

अनुपमा शर्मा:-
*ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।*
*दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। *
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।*
श्री शैलम स्थित शक्तिपीठ एक पवित्र स्थान है। यह शक्तिपीठ मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर से 250 किमी दूर कुरनूल के पास स्थित है। इस मंदिर को ‘दक्षिण कैलास’ और ‘ब्रह्मगिरि’ भी कहा जाता है। श्री शैल शक्ति पीठ के साथ भगवान शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। इस मंदिर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर भ्रामराम्बा देवी मंदिर भी स्थित है जिसे शक्ति पीठ माना जाता है।
यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति ‘महालक्ष्मी’ के रूप में और भैरव ‘ संबरानंद ‘ और ‘ ईश्वरानंद ‘ के रूप में हैं । पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए । ये शक्तिपीठ अत्यंत पावन स्थल कहलाते हैं। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
श्री शैलम को दक्षिण भारत का कैलास व ब्रह्मगिरि कहते हैं। कुर्नूल के निकट श्री शैलम में माता की ग्रीवा का निपात हुआ था। श्री शैलम में भगवान शिव का मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भी है। यहाँ से ७किलोमीटर पश्चिम में भ्रमराम्बा देवी शक्तिपीठ है। इस शक्तिपीठ मंदिर में देवी को महालक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। श्री शैलम में सभी त्योहारों को मनाया जाता है। भ्रमराम्बा (भ्रामरी) का अर्थ है मधुमक्खियों की माता। एक बार ‘अरुणासुर’ नामक दैत्य ने पूरे संसार पर अपना आधिपत्य कर लिया। उस दैत्य ने गायत्री मंत्र का निरंतर जाप कर कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा जी ने उस दैत्य से मनचाहा वरदान माँगने को कहा तो उसने कहा कि मुझे कोई दो या चार पैरों वाला जीव न् मार सके।
*दृश्यन्ते रथमारूढ़ा देव्या:क्रोधसमाकुलाः ।।*
*शड्ख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।*
ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया जिसके कारण सभी देवता डर गये और माता आदि शक्ति की शरण में पहुँचे और उनसे अपनी रक्षा की प्रार्थना की। देवताओं के द्वारा प्रार्थना करने पर माता प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि अरुणासुर उनका भक्त है इसलिए वह उसका वध नहीं कर सकतीं। फिर देवताओं ने एक योजना के अनुसार देवगुरु बृहस्पति को अरुणासुर दैत्य के पास भेजा। देवगुरु बृहस्पति को देखकर दैत्य चकित रह गया और उनके आने का कारण जानने की कोशिश की तब देवगुरु ने कहा उन्हें उससे मिलने में कोई असमंजस नहीं है क्योंकि दोनों एक ही देवी (गायत्री) की आराधना करते हैं । यह सुनकर अरुणासुर लज्जित हुआ और सोचने लगा कि जिस देवी की पूजा देवता करते हैं वह उस देवी को कैसे पूज सकता है। उसने उसी क्षण माता की पूजा करना बंद कर दिया जिससे माता क्रोधित हो गयीं और उन्होंने भ्रमराम्बा(भ्रामरी) का रूप धारण कर लिया और छः पैर वाली असंख्य मधुमक्खियों की उत्पत्ति कर उस दैत्य का क्षण भर में वध कर दिया और उसकी सेना को भी नष्ट कर दिया।
*या देवीसर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।*

