
ब्रजेश वर्मा:-
ईस्ट इंडिया कंपनी के आरंभिक दिनों में एक एंग्लिकन बिशप वर्तमान झारखंड के राजमहल इलाके में आया था। उसका नाम बिशप हेबर (1783-1826) था।
उसने 1824 में राजमहल की यात्रा की थी। उसने इस इलाके के बारे में जो कुछ भी लिखा वह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
बिशप हेबर एक विद्वान इंसान था, जिसने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाई थी। किंतु भारत आकर उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी सेवा दी। वह अपने जीवन के अंत तक इसी देश में रहा। वह कलकत्ता में 42 साल तक बिशप रहा और उस दौरान उसने विभिन्न देशों की यात्राएं की।
सन 1824 में जब वह राजमहल आया था तबतक इस इलाके में बहुत कुछ बदल चुका था। उन दिनों कलकत्ता और अवध के बीच राजमहल ही एकमात्र ऐसी जगह थी, को मुस्लिम और ब्रिटिश सत्ता का केंद्र के रूप में विकसित हुई थी।
राजमहल की यात्रा के दौरान बिशप हेबर ने यहां जो कुछ भी देखा, उसने लिखा कि 1770-71 के अकाल के बाद इस इलाके में एक जानलेवा झगड़ा चालीस वर्षों से चला आ रहा था। समतल भूमि पर रहने वाले किसानों के बीच हत्याओं का सिलसिला एक कभी न खत्म होने वाली घटना थी। पहाड़िया लोग जब कभी भी मुसलमान जमींदारों की बंदूक के निशानों पर रहते, उन्हें जानवरों की तरह मार गिराया जाता।
बिशप हेबर, जिसने भागलपुर की भी यात्रा की थी, ने देखा कि यहां के स्थानीय लोग साल में एकबार अगस्टस क्लीवलैंड के सम्मान में उसके स्मारक के पास एकत्र होकर एक धार्मिक पर्व मनाते थे। स्थानीय लोग क्लीवलैंड की पूजा करते थे। ( इस बात का जिक्र सर लेस्ली स्टीफन एंड सर सिडनी ली द्वारा संपादित एवं जार्ज स्मिथ द्वारा लिखित पुस्तक, दि डिक्शनरी ऑफ नेशनल बायोग्राफी, 1818, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, लंदन, में भी है।)
दरअसल बिशप हेबर ने यह महसूस किया था कि जबसे भागलपुर और राजमहल के कलक्टर अगस्टस क्लीवलैंड ने राजमहल में रहने वाला एक पहाड़िया सरदार जिसका नाम जौरा पहाड़िया था, को अपनी ओर मिलाकर ईस्ट इंडिया कंपनी में इस इलाके का तीरंदाज दस्ते का इंचार्ज बना दिया था, तभी से इस इलाके में शांति स्थापित हो गई थी। जौरा पहाड़िया ईस्ट इंडिया कंपनी को अपनी सेवा देने वाला पहला आदिवासी था, जो जीवन भर कंपनी की सेवा में रहा। इसे जबरा पहाड़िया के नाम से भी बुलाया जाता है।
बिशप हेबर ने जौरा उर्फ जबरा पहाड़िया की तुलना रॉब रॉय (1671-1734) से की है, जो स्कॉटलैंड का एक डाकू था, जिसे ब्रिटेन में एक दंतकथा के रूप में जाना जाता है।