अनुपमा शर्मा:
आज मंदिरों के माध्यम से प्राचीन चेन्नई का पुनरावलोकन कर रहे हैं । श्री प्रदीप चक्रवर्ती द्वारा लिखित अनेक ऐसी पुस्तकें हैं जिनके द्वारा पाठकों को भारतीय इतिहास एवं दर्शन जैसे विषयों पर जीवन का पाठ प्रदान करने का उत्तम प्रयास किया गया है। जिसके माध्यम से वे चेन्नई के मंदिर, किवदंतियाँ एवं लोककथाएं से हमारा परिचय करा रहे हैं जो अद्भुत एवं अविस्मरणीय है।
प्राचीन काल में चेन्नई क्षेत्र चेन्नापटना कहलाता था। तेलुगु भाषा में चेन्नापटना का अर्थ होता है, सुंदर। चेन्नापटना व्यापारियों की भूमि थी। यहाँ स्थित पल्लव कालीन प्राचीन बंदरगाह बड़ी संख्या में तेलुगु भाषी कपास व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करते थे। चेन्नापटना नाम किस प्रकार मद्रास में परिवर्तित हो गया, इसके विषय में यद्यपि अनेक कथाएं प्रचलित हैं । तथापि उनके कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं।
ऐसा कहा जाता है कि एक समय में आर्कोट के नवाब को अपने राज्य के वित्तीय भार का निर्वाह करने के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़ी तो धन जुटाने के लिए उसने अपनी भूमि के छोटे-छोटे भू – खण्डों को अंग्रेजों को विक्रय करना आरंभ कर दिया। शनैः शनैः अंग्रेजों ने सभी गांवों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया तथा बंदरगाह नगरी चेन्नई अथवा मद्रास का निर्माण किया।
चेन्नई का प्राचीन इतिहास
मानवीय वसाहत के आरंभिक चिन्ह चेन्नई के पल्लावरम क्षेत्र में प्राप्त हुए थे। प्राचीन इतिहास शोधकर्ता रॉबर्ट ब्रूस फूट को २० वीं सदी के आरंभ में इस क्षेत्र में पुरापाषाण युगीन शैल औजार प्राप्त हुए थे। ये औजार लगभग ४००० वर्ष अथवा उससे भी अधिक प्राचीन माने जाते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चेन्नई अनवरत रूप से वसाहती क्षेत्र रहा है।
दक्षिण भारत का एक अन्य पुरातात्विक स्थल है प्राचीन ताम्रपर्णी नदी। पुराणों तथा रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार दक्षिण भारत में देवी की प्राचीनतम कांस्य प्रतिमा इसी नदी के तल से प्राप्त हुई थी।
मध्यकालीन युग
पल्लव एवं चोल वंश के शासन काल में मंदिर राज्य के विविध पारंपरिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र होते थे। मंदिर के अधिष्ठात्र देव को राज्य का सम्राट तथा मंदिर को राजभवन माना जाता था। यह प्रथा गाँव के निवासियों में एक सामुदायिक भावना उत्पन्न करती थी। उदाहरण के लिए, चोल वंश के काल में कोडंबक्कम शिव मंदिर राज्य का जिला मुख्यालय था।
चेन्नई का प्राचीनतम जीवंत मंदिर वेलाचेरी का सप्तमातृका मंदिर है जिसका काल-निर्धारण पाँचवीं सदी माना जाता है।
दुर्भाग्य से मंदिरों के अतिरिक्त ऐसी कोई भी संरचना अब शेष नहीं है जिसका निर्माण पल्लव, चोल अथवा पंड्या वंश के राजाओं ने करवाया था। उस काल के राजा अस्थायी काष्ठ भवनों में निवास करते थे। इसके लिखित प्रमाण के रूप में अनेक शिलालेख उपलब्ध हैं, जैसे मायलापुर मंदिर की भित्तियों पर उपस्थित शिलालेख जिन्हें १००० वर्ष प्राचीन माना जाता है। एक शिलालेख के अनुसार चोल वंश के काल में चेन्नई में व्यापारी समितियाँ एवं सभाएं आयोजित की जाती थीं।
औपनिवेशिक काल
चेन्नई में तीन उपनिवेशवादियों का नियंत्रण रहा है, पुर्तगाली, फ्रांसीसी एवं अंग्रेज।
पुर्तगाली प्रथम उपनिवेशवादी थे जिन्होंने चेन्नई के निकट बंदरगाह का निर्माण किया था। उन्होंने १५ वीं शताब्दी के अंतिम खण्ड में यह निर्माण कराया था। कालांतर में इस बंदरगाह क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए फ्रांसीसी एवं अंग्रेजों के मध्य संघर्ष हुआ। सन् १७४४-१७६३ में हुए इस संघर्ष में पराजित होने के पश्चात फ्रांसीसी चेन्नई को अंग्रेजों को सुपुर्द करने के लिए बाध्य हो गये।
जब अंग्रेजों ने सर्वप्रथम भारत में उपनिवेश स्थापित किया, तब विश्व के अन्य देशों के संग स्थापित वस्त्र व्यापार पर अपना सर्वस्व नियंत्रण पाने के लिए भारत के पूर्वी तट पर उन्हे एक बंदरगाह की आवश्यकता प्रतीत हुई। वे मुख्यतः कपास एवं नील का व्यापार कर रहे थे। इस व्यापार के लिए चेन्नई सर्वोत्तम क्षेत्र था।
चंद्रगिरी के विजयनगर राजवंश के राजा ने उन्हे इस व्यापार को आरंभ करने के लिए ३०० वर्ग किलोमीटर का छोटा सा भूखण्ड प्रदान किया। अंग्रेजों ने इस भूखण्ड पर अपने दुर्ग का निर्माण किया तथा यहाँ से अपना व्यापार आरंभ किया। यह क्षेत्र अब लोकप्रिय मरीना समुद्रतट है।
तमिल साहित्य एवं संगीत
तमिल साहित्यों एवं संगीत में उन सभी गाँवों का विस्तृत उल्लेख प्राप्त होता है जिनसे चेन्नई का सृजन हुआ था। मायलापुर कपालीश्वर स्वामी मंदिर लगभग १००० वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर के अप्पर स्वामी ने पुम्बाबाई, समथर के प्रति उनके प्रेम तथा कालांतर में उनकी मृत्यु पर आधारित अनेक कविताओं की रचना की है। तत्पश्चात इन कविताओं के माध्यम से वे पुम्बाबाई को मृत्यु की गोद से उठने का आह्वान करते हैं तथा उन्हे नश्वर प्रेम का त्याग कर शिव के अमर प्रेम में लीन होने के लिए प्रेरित करते हैं। वे उनसे शैव धर्म के आदर्शों को दूर-सुदूर तक पहुँचाने का निवेदन करते हैं।
कपालीश्वर मंदिर – चेन्नई
एक रोचक कविता में मायलापुर क्षेत्र की समृद्ध वनस्पतियों, उत्सवों तथा विविध अवसरों पर बने भिन्न भिन्न व्यंजनों का विवरण है। आज भी ये सभी उत्सव उतने ही उत्साह से मनाए जाते हैं। इससे संबंधित एक रोचक तथ्य यह है कि पुम्बाबाई पार्वती का ही प्राचीन नाम है जिनकी मूर्ति की मंदिर में प्रतिष्ठापना की गयी है।
यात्रा साहित्य
चेन्नई के इतिहास का एक अन्य साहित्यिक स्रोत है, वेंकटाध्वरी कवि की रचना, विश्वगुणादर्शचंपू। १७ वीं सदी में रचित यह रचना चंपू छंद से संबंधित है। चम्पू एक भारतीय साहित्यिक शैली है जिसमें गद्य एवं कविताओं का संगम होता है। चंपू छंद का प्रयोग कर लिखे गये लेख संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु तथा अनेक अन्य भारतीय भाषाओं में प्राप्त होते हैं।
इन साहित्यों में क्रिशानु एवं विश्ववासु नामक दो गन्धर्वों की दृष्टि से चेन्नई एवं अन्य भारतीय नगरों का वर्णन किया गया है। इन दोनों गन्धर्वों में एक आशावादी तथा दूसरा निराशावादी है। ये दोनों गन्धर्व भारत वर्ष की यात्रा करते हुए दक्षिण क्षेत्र से उत्तर क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं। वे भारत पर अंग्रेजों के प्रभाव के विषय में चर्चा कर रहे हैं। वे राजनीति, संस्कृति, इतिहास, आधारभूत संरचनाओं के विकास एवं संभावित भविष्य की भी चर्चा कर रहे हैं। आशावादी क्रिसानु नगर का वर्णन करते हुए सदैव अपनी चर्चा को सकारात्मक आशाजनक अंत प्रदान करता है। इन रचनाओं के माध्यम से हमें १७ वीं शताब्दी तक चेन्नई पर अंग्रेजों के प्रभाव की जानकारी प्राप्त होती है।
चेन्नई एक प्राचीन नगरी है जो अब तक जीवंत है। इसके प्रत्येक कोने में प्राचीन काल के चिन्ह हैं जो प्राचीन विश्व को वर्तमान से जोड़ते हैं। चेन्नई एवं उसके इतिहास के विषय में अधिक शोध अब भी शेष है।