
अनुपमा शर्मा ( वृंदावन से):-
हर्ष और उल्लास का प्रतीक होली बसंत ऋतु के अंतिम चरण में और फाल्गुन मास में आने वाला त्योहार है, बसंत का उत्कर्ष है होली….
अपने अंतिम चरण में बसंत अपने उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता है… बसंत की शुरुआत साधनात्मक दृष्टि से साधकों, योगियों के लिए अवसर है अपने आन्तरिक जीवन में नवीनता लाने का ।
हमारी भारत भूमि त्योहारों की भूमि है, यहाँ हर दिन उत्सव है । फिर भी दो त्योहार ऐसे हैं जिसमें इंसान अपने घर आना नहीं भूलता उनमें से एक होली है तो दूसरी दीपावली, ये दोनों ही उत्सव(त्योहार) दैवीय उत्सव हैं। होली हमारे जीवन के रंगों का प्रतिनिधित्व करती है, खिले खिले रंग खिला -खिला जीवन। खुलकर जीने का अहसास दिलाती होली स्वतंत्रता का अहसास दिलाती होली। हर त्योहार या उत्सव का अपना एक संदेश होता है । होली सद्भावना और जोड़ने का संदेश देती है। ऋतुराज बसंत अपने पूरे यौवन पर होता है । हर तरफ परिवर्तन का संदेश देता होलिकात्सव सभी आंतरिक बुराइयों को दूर करने का सन्देश देता है।
होली देश के हर हिस्से में अलग-अलग ढंग से मनाई जाती है । बृज की होली तो भारत में सबसे अधिक प्रसिद्ध है उसमें भी बरसाने की लट्ठमार होली , हरियाणा की धुलंडी, बंगाल की दोल यात्रा,महाराष्ट्र में रंग पंचमी, पंजाब में बल्ले -बल्ले करती यह होली बिहार में पहुँचकर पूरे विश्व को फगुआ फगुनाहट से सराबोर कर देती है।
त्योहार आदमी की उत्सव प्रियता का ही प्रकटीकरण है जीवंत समाज इन्ही पर्व-त्योहारों से नवीन ऊर्जा ग्रहण करता है। होली का उल्लास ऐसी खुमारी लिए रहता है कि जिनको यह लग जाय तो जल्दी उतरती नहीं है। गरीब – अमीर सब इसके रंग में अपने अपने तरीके से इसे मनाते हैं।
बृज में होली एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना,नंदगाँव के मंदिरों में भगवान कृष्ण और राधा-रानी के ऊपर जमकर गुलाल बरसाया जाता है, जिसने भी जीवन में एक बार भी बृज की होली नहीं देखी उसने कुछ नहीं देखा… बृज की होली देवत्व का बोध कराती है।
पूरी दुनियाँ में बृज की होली बहुत प्रसिद्ध है । होली में विविधता भी बृज में ही देखी जाती है।
रंगों की होली, गुलाल की होली,लट्ठमार होली, फूलों की होली ,कीचड़ की होली । लट्ठमार होली और लड्डूमार होली बहुत प्रसिद्ध है ।
बरसाने में राधा रानी के मंदिर में टनों लड्डू बरसाये जाते हैं फिर आती है लट्ठ बरसाने की बारी । नटखट होरियारे नंद गाँव से बरसाना पहुँचते है फाग गाते हैं और बरसाने की गोपियाँ इन होरियारों पर प्रेम से लट्ठ बरसाती हैं। हर वर्ष लट्ठमार होली बड़े जोर शोर से मनायी जाती है। जिसका बाकायदा निमंत्रण 1 दिन पहले बरसाना से नंद गाँव भेजा जाता है।
जीवन से सभी विसंगतियों को दूर करने का पर्व है होली। आध्यात्मिक जीवन में भी होली परिवर्तन का संदेश देती है। पूर्ण गुरु की सहायता से ध्यान -अभ्यास द्वारा अपने अन्तस् के विविध रंगों को देखकर आनंद की अनुभूति करना ही होली का आध्यात्मिक पक्ष है। ईश्वर के तप और साधना के द्वारा आप अपने जीवन में बहुत से नए फल प्राप्त कर सकते हैं। हमारे यहाँ हर त्योहार बिना खानपान व पकवान के बिना असम्भव है। गुजिया, गूजा, लड्डू, गुरुदानी, नमकीन भजिया ,पापड़ और भी तमाम व्यंजन घर-घर बनते हैं ।

