अनुपमा शर्मा:-
वराहपुराण अध्याय 74 के अनुसार जम्बूद्वीप सात द्वीपों ( द्वीप ) में से एक है , जिस पर प्रियव्रत के दस पुत्रों में से एक अग्निध्र का शासन था। प्रियव्रत स्वायंभुव मनु का पुत्र था , जिसे ब्रह्मा ने बनाया था, जो था बदले में, नारायण द्वारा निर्मित, अज्ञात सर्वव्यापी आदिम अस्तित्व।
जम्बूद्वीप में सात प्रमुख पर्वत:
हिमवान,
हेमकुता,
निषध,
मेरु,
नीला,
गंधमादन,
माल्यवान.
वराहपुराण को महापुराण के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और यह मूल रूप से 24,000 छंदों से बना था, संभवतः 10 वीं शताब्दी से पहले उत्पन्न हुआ था। यह दो भागों से बना है और सुता मुख्य कथावाचक हैं।
स्रोत : नीलमता पुराण
नीलमतपुराण में वर्णित सात महाद्वीपों में से एक को संदर्भित करता है। जम्बूद्वीप में नौ वर्ष हैं , अर्थात्, उत्तरकुरु, रम्य, हेयरण्वत, भद्राश्व, केतुमाल, इलावृत, हरिवर्ष, किंपुरुष और भारत, और अंतिम को नौ भागों में विभाजित किया गया है, जिनमें से नौवां अकेला भारत का उचित प्रतिनिधित्व करता है।
स्रोत :पौराणिक विश्वकोश
जम्बूद्वीप (जम्बूद्वीप)।—पुराण प्रसिद्ध सप्तद्वीपों (सात महाद्वीपों) में से एक। ये सातों महाद्वीप सातों समुद्रों को अलग करने वाले तटबंध हैं। सात द्वीपों में जम्बूद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप और पुष्करद्वीप शामिल हैं।
पुराण (पुराण, पुराण) ऐतिहासिक किंवदंतियों, धार्मिक समारोहों, विभिन्न कलाओं और विज्ञानों सहित प्राचीन भारत के विशाल सांस्कृतिक इतिहास को संरक्षित करने वाले संस्कृत साहित्य को संदर्भित करता है। अठारह महापुराणों की कुल संख्या 400,000 से अधिक श्लोक हैं और ये कम से कम कई शताब्दियों ईसा पूर्व के हैं।
स्रोत : शोधगंगा: शोधलदास उदयसुंदरिकथा
जम्बूद्वीप – भुर्लोक (पृथ्वी) के सात महाद्वीपों ( द्वीप ) में से एक। – सभी द्वीपों के बीच में जम्बूद्वीप है। यह अन्य द्वीपों के मध्य में स्थित है , प्रत्येक तरफ तीन द्वीप हैं । इसमें जम्बू नाम का एक बड़ा पेड़ और इसी नाम की नदी और पर्वत शामिल हैं और इसलिए इसे जम्बूद्वीप कहा जाता है। जम्बूद्वीप खारे सागर, लवण-समुद्र से घिरा हुआ है।
जम्बूद्वीप में अनेक पर्वतों का उल्लेख सोढला ने किया है। वे इस प्रकार हैं:-
मंदरा,
गंधमादन,
विपुला,
सुपार्श्व,
निषध,
हेमकुता,
हिमाद्री,
शृंगवान,
श्वेताचला,
नीलगिरि
और सुमेरु.
स्रोत : शोधगंगा: राजशेखर की काव्यमीमांसा
जम्बूद्वीप:-
हिन्दुस्तान, आर्यवर्त, जम्बूद्वीप, भारत के कितने नाम और क्या है उन नामों की कहानी?
इतिहासकारों की मानें तो जब अंग्रेजों का पदार्पण हुआ तो उन्हें हिन्दुस्तानी या हिंदुस्तान बोलने में दिक्कत होती थी. इसके बाद इंडस से इंडिया बनाया गया. देश का नाम भारत या इंडिया यह मुद्दा काफी चर्चा में है. इन दोनों के अलावा भी भारत के कई नाम हैं.
भारत या इंडिया
पहले कुछ पौराणिक तथ्य जानना जरूरी है. अयोध्या के आचार्य रघुनाथ दास शास्त्री के मुताबिक सम्पूर्ण धरा कभी भारतवर्ष हुआ करती थी. वृहत्तर भारत जम्बूद्वीप का एक हिस्सा मात्र है. हमारा मौजूदा भारत भी. ब्रह्मांड शास्त्र के मुताबिक द्वीप या महाद्वीप का वह मतलब नहीं था, जिसे हम आज समझते हैं.
क्या कहता है इतिहास?
जम्बूद्वीप का मतलब लगभग आज का पूरा एशिया. इस धरा पर यूं कुल सात महाद्वीप हुआ करते थे. इनके नाम क्रमशः जम्बूद्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप और पुष्कर द्वीप. इनमें जम्बूद्वीप सबके केंद्र में है मतलब मध्य में है. हमारा देश इसी जम्बूद्वीप का एक हिस्सा है. शास्त्रों में इसके नौ खंड ताए गए हैं. भारत, किंपुरुष, हरि, केतुमाल, इलावृत्त, भद्रास्व, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय मतलब भारत यहां भी दर्ज है.
ऐसे में सबसे जिसे हम शास्त्रों में भारत वर्ष कहते हैं, असल भारत उसका एक हिस्सा मात्र है. पहले जैसा कि आचार्य रघुनाथ दास कहते हैं कि सम्पूर्ण धरा को भारतवर्ष कहा जाता था और पूरे में सनातन धर्म की मान्यता थी. कालांतर में धीरे-धीरे मानवता के विकास के साथ ही भूभाग अलग-अलग नामों से जाने जाने लगे.
कुछ सौ साल पहले तक पारस यानी ईरान, अफगानिस्तान, नेपाल, हिन्दुस्तान, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, लाओस तक भारत वर्ष था. इसी भारत वर्ष के मध्य में बसता है हिन्दुस्थान. जो उत्तर में हिमालय और दक्षिण में सागर-महासागर तक फैला हुआ है. इसी के उत्तरी भाग को आर्यावर्त कहा जाता रहा है.
आर्यावर्त मतलब आर्यों की भूमि, जहां वे बसते हैं. यह आर्यावर्त अफगानिस्तान में बहने वाली काबुल नदी, जिसे वैदिक काल में कुंभा नदी और प्राचीन काल में कोफेसा के नाम से जानी जाति थी, से लेकर गंगा नदी तक फैला हुआ था. इसलिए यह मानना कि आर्य कहीं बाहर से आए थे, पूरा सच नहीं है. इस तरह हमने अभी तक भारत के अनेक नामों यथा-भारतवर्ष, जंबूद्वीप, हिन्दुस्तान, भारत, आर्यावर्त आदि के बारे में जाना. अब इन्हें तनिक विस्तार देते हैं.
भारतवर्ष
पौराणिक तथ्यों के आधार पर पूरी पृथ्वी भारत वर्ष हुआ करती थी. इसके सात द्वीप ऊपर बताए गए हैं लेकिन ये द्वीप आज के द्वीप की परिभाषा से अलग मायने रखते हैं. श्रीमद्भागतवत के पंचम स्कन्द के 19-20 वें अध्याय में भी इसकी चर्चा मिलती है. आज का भारत इसी का एक अहम हिस्सा है. मतलब भारत वर्ष, केवल वह नहीं है जिसे हम सब जानते हैं.
जम्बूद्वीप
इसकी चर्चा विष्णु पुराण में भी मिलती है. कहा जाता है कि इसके नामकरण का आधार जामुन का पेड़ थे. जामुन के फल जिस नदी में गिरते हैं, वह मधु वाहिनी, जंबू नदी कहलाती है. इस इलाके में जामुन के वृक्ष बहुतायत मात्रा में पाए जाते थे. अनेक शास्त्रों में आज के भारत को जम्बूद्वीप का हिस्सा कहा गया है. पहले इसे जम्बूद्वीप के नाम से ही जाना जाता था.
हिन्दुस्तान
वृहत्तर भारत के दिल यानी मध्य में हिन्दुस्तान बसता है. यह भी अनेक ऐतिहासिक ग्रंथों में दर्ज पाया जाता है. और यही हमारा आज का भारत है.
आर्यावर्त
भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि आर्यों के आने के साथ ही यहां विस्तार हुआ. इसे सजाने-संवारने में उनकी बड़ी भूमिका रही. इसीलिए इस भूमि को आर्यों की धरती भी कहा गया, जो आज का भारत है, वह इसी आर्यावर्त का महत्वपूर्ण हिस्सा है.
भारत
इस शब्द या नामकरण की कहानी भरत नाम के तीन प्रतापी राजाओं से जुड़ती है. ऋषभदेव के पुत्र भरत, राम के भाई भरत और दुष्यंत-शकुंतला के पुत्र भरत. तीनों ही भरत अलग-अलग काल खंड में राज करते रहे इसलिए भारत नाम पड़ा.
इंडिया, अजनाभ वर्ष, हिम वर्ष, अल हिन्द, तियानझू, होडू, फग्युल जैसे नामों से भी भारत की पहचान रही है. इनमें सबसे नया नाम इंडिया ही है,जो अंग्रेजों के आने के बाद पड़ा. कहा जाता है कि जब यूनानी एवं तुर्क यहाँ आए तो वे सिंधु घाटी से होते हुए घुसे. चूंकि वे स को ह संबोधित करते थे इसलिए सिंधु, हिन्दु और हिन्दु के निवासी हिन्दुस्तानी हो गए.
जब अंग्रेजों का पदार्पण हुआ तो उन्हें हिन्दुस्तानी या हिंदुस्तान बोलने में दिक्कत पेश आती. उन्हें पता चला कि सिंधु घाटी को इंडस वैली भी कहा गया है तो उन्होंने इंडस से इंडिया बनाया और इस्तेमाल करने लगे. ऐसी कई और कहानियां हैं. अल-हिन्द नाम अरब देशों ने दिया है. इसका मतलब होता है हिन्द का देश. फग्युल शब्द तिब्बत से आया है तथा तियानझू नाम दिया चीन के लोगों ने और होडू नाम जापान से आया. इन सबका मतलब भारत, हिंदुस्तान है.
पौराणिक भूगोल के अनुसार भूलोक के सप्त महाद्वीपो में एक द्वीप है। यह पृथ्वी के केंद्र मे स्थित है।
इसके इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय, ये नव खण्ड हैं।
इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है।
जंबूद्वीप का नामकरण यहाँ स्थित जबू वृक्ष (जामुन) के कारण हुआ है।
जंबूद्वीप से क्रमानुसार बड़े द्वीपों के नाम इस प्रकार है- प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर।
पौराणिक भूगोल के आधार पर यह कहना उपयुक्त होगा कि जंबूद्वीप में वर्तमान एशिया का अधिकांश भाग सम्मिलित था।
विष्णु पुराण[१] के अनुसार-
जम्बूदीप
‘जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्,
हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।[२]
जैन ग्रंथ ‘जंबूद्वीप्प्रज्ञप्ति‘ में जंबूद्वीप के सात वर्ष कहे गये हैं। हिमालय को महाहिमवंत और चुल्लहिमवंत दो भागों में विभाजित माना गया है और भारतवर्ष में चक्रवर्ती सम्राट का राज्य बताया गया है।
पुराणों में जंबूद्वीप के छ: वर्ष पर्वत बताये गये हैं – हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2
विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2
माथुर, विजयेन्द्र कुमार ऐतिहासिक स्थानावली, द्वितीय संस्करण-1990 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृष्ठ संख्या- 351।
बेंदल सागर · अरब सागर · अंडमान सागर · अटलांटिक महासागर · अंटार्कटिक महासागर · भूमध्य सागर · हिंद महासागर · कैस्पियन सागर · पूर्वसागर · टेथिस सागर · अरल सागर · उत्तरी सागर · प्रशान्त महासागर · अजाव सागर · लाल सागर · आर्कटिक महासागर · मृत सागर · रत्नाकर · ईजियन सागर · एड्रियाटिक सागर
पौराणिक सप्त सागर
इक्षुसागर · लवण सागर · क्षीरसागर · सुरा सागर · घृत सागर · दधि सागर · स्वादु सागर
सप्तद्वीप
जम्बू द्वीप · प्लक्ष द्वीप · शाल्मल द्वीप · कुश द्वीप · क्रौंच द्वीप · शाक द्वीप · पुष्कर द्वीप
खाड़ियाँ
अदन की खाड़ी · बंगाल की खाड़ी · मन्नार की खाड़ी · ओमान की खाड़ी · फ़ारस की खाड़ी · खंभात की खाड़ी · कच्छ की खाड़ी · पाक की खाड़ी · कैम्बे की खाड़ी
जलसन्धि
कुश द्वीप · क्रौंच द्वीप · जम्बू द्वीप · न्यूमूर द्वीप · पुष्कर द्वीप
जब संपूर्ण धरती पर ही प्राचीनकाल में सिर्फ हिन्दू ही एकमात्र धर्म था तो इसके प्रचार-प्रसार का क्या मतलब। शिव के सात शिष्यों ने इस धर्म की एक शाखा को विश्व के कोने-कोने में फैलाया था। अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा, अथर्वा, वशिष्ठ, विश्वामित्र, भारद्वाज, मरीचि, कश्यप, अत्रि, भृगु, गर्ग, अगस्त्य, वामदेव, शौनक, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, नारद, विश्वकर्मा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, जमदग्नि, गौतम, मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्राचार्य), विशालाक्ष, पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि और बहुदंती पुत्र आदि ऋषियों ने वैदिक ज्ञान की रोशनी को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया। प्रारंभिक जातियां सुर (देवता) और असुर (दैत्य) दोनों ही वेदों के ज्ञान को मानती थी।
हिन्दू धर्म की कहानी जम्बूद्वीप के इतिहास से शुरू होती है। इसमें भारतवर्ष जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक खंड है। भारतवर्ष के इतिहास को ही हिन्दू धर्म का इतिहास नहीं समझना चाहिए। प्राचीनकाल में अफ्रीका और दक्षिण भारत के अधिकतर हिस्से जल में डूबे हुए थे। जल हटा तो यहां जंगल और जंगली जानवरों का विस्तार हुआ। यहीं से निकलकर व्यक्ति सुरक्षित स्थानों और मैदानी इलाकों में रहने लगा। यह स्थान उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीचोंबीच था जिसे आज हम अलग अगल नामों से पुकारते हैं। यह क्षेत्र दक्षिणवर्ती हिमालय के भूटान से लेकर हिन्दूकुश पर्वत के पार इसराइल तक था।
‘जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्,
हरिवर्षं तथैवान्यन्मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।- (विष्णु पुराण)
पुराणों और वेदों के अनुसार धरती के सात द्वीप थे- जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित है। जम्बू द्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।
रशिया से श्रीलंका और इसराइल से चीन तक फैला जम्बूद्वीप : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है। इस संपूर्ण नौ खंड में इसराइल से चीन और रूस से भारतवर्ष का क्षेत्र आता है। जम्बू द्वीप में प्रमुख रूप से 6 पर्वत हैं:- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।
कैसे भारत बना हिन्दुस्तान : पहले संपूर्ण हिन्दू धर्म कई जातियों में विभाजित होकर जम्बू द्वीप पर शासन करता था। अग्नीन्ध्र उसके राजा था। फिर उसका शासन घटकर भारतवर्ष तक सीमित हो गया। फिर कुरुओं और पुरुओं की लड़ाई के बाद आर्यावर्त नामक एक नए क्षेत्र का जन्म हुआ जिसमें आज के हिन्दुस्थान के कुछ हिस्से, संपूर्ण पाकिस्तान और संपूर्ण अफगानिस्तान का क्षेत्र था। लेकिन लगातार आक्रमण, धर्मांतरण और युद्ध के चलते अब घटते-घटते सिर्फ हिन्दुस्तान बचा है।
यह कहना सही नहीं होगा कि पहले हिन्दुस्थान का नाम भारतवर्ष था और उसके भी पूर्व जम्बू द्वीप था। कहना यह चाहिए कि आज जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है। जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।
भारतवर्ष का वर्णन : समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार 9 हजार योजन है। यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है।
इसमें 7 पर्वत हैं : महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र।
भारतवर्ष के 9 खंड : इन्द्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व और वारुण तथा यह समुद्र से घिरा हुआ द्वीप उनमें नौवां है।
मुख्य नदियां : शतद्रू, चंद्रभागा, वेद, स्मृति, नर्मदा, सुरसा, तापी, पयोष्णी, निर्विन्ध्या, गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, कृतमाला, ताम्रपर्णी, त्रिसामा, आर्यकुल्या, ऋषिकुल्या, कुमारी आदि नदियां जिनकी सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं।
तट के निवासी : इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरान्तदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, सन्धव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते हैं। इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं।
किसने बसाया भारतवर्ष : त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था।
जम्बूद्वीप के शासक : वायु पुराण के अनुसार महाराज प्रियव्रत का अपना कोई पुत्र नहीं था तो उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था जिसका लड़का नाभि था। नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम ऋषभ था। इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे तथा इन्हीं भरत के नाम पर इस देश का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राम के कुल में पूर्व में जो भरत हुए उनके नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा। यहां बता दें कि पुरुवंश के राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं पड़ा।
इस भूमि का चयन करने का कारण था कि प्राचीनकाल में जम्बू द्वीप ही एकमात्र ऐसा द्वीप था, जहां रहने के लिए उचित वातारवण था और उसमें भी भारतवर्ष की जलवायु सबसे उत्तम थी। यहीं विवस्ता नदी के पास स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा निवास करते थे।
राजा प्रियव्रत ने अपनी पुत्री के 10 पुत्रों में से 7 को संपूर्ण धरती के 7 महाद्वीपों का राजा बनाया दिया था और अग्नीन्ध्र को जम्बू द्वीप का राजा बना दिया था। इस प्रकार राजा भरत ने जो क्षेत्र अपने पुत्र सुमति को दिया वह भारतवर्ष कहलाया। भारतवर्ष अर्थात भरत राजा का क्षेत्र। यही पर भरतों की लड़ाई उनके ही कुल के अन्य समुदाय से हुई थी जिसे दशराज्ञ के युद्ध के नाम से जाना जाता है जिसका वर्णन वेदों में है।
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)
जब भी मुंडन, विवाह आदि मंगल कार्यों में मंत्र पड़े जाते हैं, तो उसमें संकल्प की शुरुआत में इसका जिक्र आता है: ।।जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत ।
* इनमें जम्बू द्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस जम्बू द्वीप में भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात ‘भारतवर्ष’ स्थित है, जो कि आर्यावर्त कहलाता है।
।।हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्। तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:…..।।
* हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है।
जम्बू द्वीप का विस्तार
* जम्बू दीप : सम्पूर्ण एशिया
* भारतवर्ष : पारस (ईरान), अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिन्दुस्थान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्रीलंका, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस तक भारतवर्ष।
आर्यावर्त : बहुत से लोग भारतवर्ष को ही आर्यावर्त मानते हैं जबकि यह भारत का एक हिस्सा मात्र था। वेदों में उत्तरी भारत को आर्यावर्त कहा गया है। आर्यावर्त का अर्थ आर्यों का निवास स्थान। आर्यभूमि का विस्तार काबुल की कुंभा नदी से भारत की गंगा नदी तक था। हालांकि हर काल में आर्यावर्त का क्षेत्रफल अलग-अलग रहा।
ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को ‘सप्तसिंधु’ प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदीसूक्त (10/75) में आर्यनिवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे।
हिन्दू धर्म कब शुरू हुआ?
यह सवाल हर हिन्दू इसलिए जानना चाहता है, क्योंकि उसने कभी वेद, उपनिषद, 6 दर्शन, वाल्मिकी रामायण और महाभारत को पढ़ा नहीं। यदि देखने और सुनने के बजाय वह पढ़ता तो उसको इसका उत्तर उसमें मिल जाता, लेकिन आजकल पढ़ता कौन है।
हिन्दू धर्म की शुरुआत पांच कल्पों में सिमटी है। सबसे पहले महत कल्प हुआ। फिर हिरण्य गर्भ कल्प, फिर ब्रह्म कल्प, फिर पद्म कल्प और फिर वर्तमान में चल रहा वराह कल्प है। वराह कल्प में सृष्टि और मानव की रचना फिर से हुई और इसका विकास क्रम जारी है।
हिन्दू मानते हैं कि समय सीधा ही चलता है। सीधे चलने वाले समय में जीवन और घटनाओं का चक्र चलता रहता है। समय के साथ घटनाओं में दोहराव होता है फिर भी घटनाएं नई होती हैं। लेकिन समय की अवधारणा हिन्दू धर्म में अन्य धर्मों की अपेक्षा बहुत अलग है। प्राचीनकाल से ही हिन्दू मानते आए हैं कि हमारी धरती का समय अन्य ग्रहों और नक्षत्रों के समय से भिन्न है, जैसे 365 दिन में धरती का 1 वर्ष होता है तो धरती के मान से 365 दिन में देवताओं का 1 ‘दिव्य दिन’ होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों पर दिन और वर्ष का मान अलग अलग है।
हिन्दू काल-अवधारणा सीधी होने के साथ चक्रीय भी है। चक्रीय इस मायने में कि दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है तो यह चक्रीय है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कल वाला दिन ही आज का दिन है और आज भी कल जैसी ही घटनाएं घटेंगी। राम तो कई हुए, लेकिन हर त्रेतायुग में अलग-अलग हुए और उनकी कहानी भी अलग-अलग है। पहले त्रेतायुग के राम का दशरथ नंदन राम से कोई लेना-देना नहीं है।
यह तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव ही तय करते कि किस युग में कौन राम होगा और कौन रावण और कौन कृष्ण होगा और कौन कंस? ब्रह्मा, विष्णु और महेश के ऊपर जो ताकत है उसे कहते हैं… ‘काल ब्रह्म’। यह काल ही तय करता है कि कौन ब्रह्मा होगा और कौन विष्णु? उसने कई विष्णु पैदा कर दिए हैं कई अन्य धरतियों पर।
हिन्दू काल निर्धारण अनुसार 4 युगों का मतलब 12,000 दिव्य वर्ष होता है। इस तरह अब तक 4-4 करने पर 71 युग होते हैं। 71 युगों का एक मन्वंतर होता है। इस तरह 14 मन्वंतर का 1 कल्प माना गया है। 1 कल्प अर्थात ब्रह्माजी के लोक का 1 दिन होता है।
विष्णु पुराण के अनुसार मन्वंतर की अवधि 71 चतुर्युगी के बराबर होती है। इसके अलावा कुछ अतिरिक्त वर्ष भी जोड़े जाते हैं। 1 मन्वंतर = 71 चतुर्युगी = 8,52,000 दिव्य वर्ष = 30,67,20,000 मानव वर्ष। …फिलहाल 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और यह 7वां मन्वंतर चल रहा है जिसका नाम वैवस्वत मनु का मन्वंतर कहा गया है। यदि हम कल्प की बात करें तो अब तक महत कल्प, हिरण्य गर्भ कल्प, ब्रह्म कल्प और पद्म कल्प बीत चुका है और यह 5वां कल्प वराह कल्प चल रहा है।
अब तक वराह कल्प के स्वयम्भुव मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत मनु, चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वंतर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अंतरदशा चल रही है। मान्यता अनुसार सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी संवत् प्रारंभ होने से 5,632 वर्ष पूर्व हुआ था।
(जारी….)