कंचन:-
प्रेम जीवन का आधार है। यह मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है। प्रेम सबसे पहले स्वयं से करें। अपने शरीर से, मन से और फिर अपने आस पास के हर चीज से, प्रकृति से और श्रृष्टि की हर रचना से करें।
अपने परिवार से प्रेम करें। फिर शादी के बाद अपने पति या पत्नी से करें। प्रेम विवाह हो या माता पिता द्वारा तय किया गया परंपरागत विवाह, पति पत्नी में आपस में प्रेम होना चाहिए।
प्रेम अर्थात अपने साथी को खूबियों और खामियों के साथ स्वीकार करें। वो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करें। आदर करें, उसकी भावना को समझने की कोशिश करें ताकि उसका व्यक्तित्व निखरे। एक दूसरे को समय दें और उसकी परवाह करें। सबसे बड़ी बात कि उसे स्वतंत्र रखें। हर व्यक्ति की अपनी निजी रुचि और आकांक्षाएं होती हैं और जिसे वह अकेला ही जीना चाहता है। उसमें हस्तक्षेप न करें। ऐसा करने से प्यार बोझ लगने लगता है, जिससे उसकी अहमियत खत्म होने लगती है।