कंचन:-
मन तो बच्चा है। हमारी उम्र बढ़ती जाती है, समय के अनुसार सब कुछ बदल जाता है। इसका हमारे मन पर भी प्रभाव पड़ने लगता है। कभी गौर से देखें तो हर मन के अंदर एक बच्चा छिपा होता है। जिस तरह बच्चे को खुश रखने की जिम्मेदारी उसके अभिवाभक की होती है, क्योंकि वह असमर्थ है। किंतु हर व्यक्ति के अंदर छिपा हुआ जो मन होता है उसे खुश रखने के लिए कोई बाहर से नही आयेंगे, उसे हम ही खुश रख सकते है।
यह हमें ही सोचना होगा। हर व्यक्ति का प्यार, खुशी, शांति और शक्ति आदि स्वाभाविक संस्कार होता है। अर्थात हर व्यक्ति हर समय अपने वास्तविक स्वरूप में रह सकता है। फिर हम क्या करें कि हर समय हम खुश, सुखी और शांत रह सकें।
मैने बहुत से लोगों को यह कहते हुए सुना है कि मन नही लगता है, क्या करें। मैं उनसे कहना चाहती हूं कि आप पहले शांति से अपने आप के साथ बैठें और जीवन के बारे में सोचें। याद करें कि कब किस बात से खुश हुए थे। दूसरी बात कि आप अपने मन रूपी बच्चे से पूछें कि वह क्या चाहता है।
आप अपने जीवन जीने के तरीके पर गौर करें जो आपको बेचैन किए रहता है। अपनी रुचियों को पहचानें और उसे ही प्राथमिकता दें। खाली दिमाग भी मन को परेशान करता है इसलिए अपने मन को किसी काम में उलझाए रखें। एक दिनचर्या बना लें और उसी में अपने आपको ढाल लें। फिर आपके पास मन नही लगता कहने का समय ही नही रहेगा। हम ही खुशी, प्यार और शांति के सागर हैं। सबकुछ मेरे ही पास है। बस अपने अंदर की दुनिया में प्रवेश करें, आपको सबकुछ मिल जायेगा।