ब्रजेश वर्मा:-
बाबू महेश नारायण (1859-1907) की जीवन शैली इस बात की जानकारी देता है कि दुनिया में कलम की ताकत का क्या महत्व होता है।
यह बात सही है कि यदि बिहार में महेश नारायण नही होते तो बिहार की गौरवशाली पत्रकारिता का एक बड़ा अध्याय हमेशा अधूरा रहता। उनकी लगन क्षमता, उनका धीरज और बिहारियों के मन में यह बात कि “बिहार बिहारियों का है” बैठा देने की ताकत ही बिहार को बंगाल से एक अलग राज्य बनाने का कारण बना था। किंतु महेश बाबू वह दिन देखने के लिए जीवित नही रहे, जिसके लिए अपनी लेखनी के माध्यम से बिहार में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। उनका निधन 1907 ई में हो गया, जबकि बिहार 1911 में  इसकी घोषणा सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में कर दी।
महेश नारायण को बिहार के एक महान व्यक्तित्व हसन इमाम ने ” दि फादर ऑफ पब्लिक ओपिनियन इन बिहार” की उपाधि दी थी। महज अपने 48 साल के जीवन में महेश नारायण ने 25 साल तक बिहार में अखबारों के माध्यम से बड़ा आंदोलन खड़ा किया था।
सच्चिदानंद सिन्हा के शब्दों में, “आजकल के अधिकांश बिहारियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि बिहार को एक अलग राज्य बनाने के लिए महेश नारायण की क्या भूमिका थी?”
सच्चिदानंद सिन्हा फिर लिखते हैं कि जब बिहार को एक पृथक प्रांत बनाने का आंदोलन उन्होंने शुरू किया तब एक ऐसे अखबार  को निकालने की जरूरत पड़ी जो बिहारियों की आवाज बन सके। ” मैं उस अखबार का नाम ” दि बिहारी”  रखना चाहता था ताकि बिहार की जनता की भावनाओं से जुड़े, लेकिन महेश नारायण की सलाह पर 1894 में  इसका नाम ” दि बिहार टाइम्स’ रखा गया।” किंतु फिर  जुलाई 1907 में इस अखबार का नाम ‘ दि बिहारी” कर दिया गया। यह साप्ताहिक अखबार पटना से निकलता था, किंतु 1905 में इसे कुछ समय के लिए भागलपुर से भी निकाला गया। और फिर 1907 में इसे पटना ले जाया गया। जब 1 अप्रैल 1912 को बिहार एक पृथक प्रांत के रूप में आया तब इस अखबार को दैनिक रूप में बदल दिया गया।
दि बिहार टाइम्स की स्थापना बिहार की पत्रकारिता की दुनिया में एक क्रांति थी, जिसे संपादक के रूप में महेश नारायण अपने जीवन के अंतिम दिनों तक निकालते रहे। वह एकमात्र ऐसे संपादक थे, जिन्होंने बिहारियों को अपने हक की लड़ाई के लिए तो जगाया ही, साथ ही उन बंगालियों की बोलती बंद करा दी जो बिहार को बंगाल से अलग नही होने देना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने जो ओपिनियन बनाया, उसकी वजह से ब्रिटिश सरकार यह मानने को तैयार हो गई कि ” बिहार फॉर बिहारी” एकदम सही मांग है।
बाबू महेश नारायण की धारावाहिक कविता स्वप्न शीर्षक से “बिहार बंधु” अखबार में 13 अक्टूबर 1881 से 15 दिसंबर 1881 तक प्रकाशित हुई थी। उसके कुछ अंश इस  प्रकार हैं :-
थी अंधेरी रात और सुनसान था
और फैला था दूर तक मैदान
जंगल भी वहां था
जानवर का गुवां था
बादल था गरजता
बिजली थी चमकती
वो बिजली की चमक से रौशनी होती भयंकर से….”
जो कथित  लोग इस बात का गुमान करते हैं कि हिंदी साहित्य के आधुनिक युग में सबसे पहले फलाने कवि ने बिना छंद वाली कविता की रचना की, उन्हें बाबू महेश नारायण की 1881 में लिखी गई कविताओं को पढ़ना चाहिए।
महेश नारायण की एक और कविता की कुछ पंक्तियां:-
बिजली की चमक में
रौशन हुआ चिहरा
देखा तो परी है
नाजों से भरी है
घूंघट वाले बाल
मखमल के दो गाल
तवा नाजुक उसके कुछ था मलाल।”

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By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.