कंचन:
डेढ़ जीवी मोबाइल डाटा ने इंसानी दिलों दिमाग पर ऐसा कब्जा कर रखा है कि अब इससे छुटकारा मिलना मुश्किल लगता है।
जब हम इसके दुष्परिणाम को देखते हैं तो भविष्य मलीन दिखाई देता है। आज हम मशीन होकर रह गए हैं। पूंजीवाद का ऐसा प्रभाव होगा इसे किसने सोचा था कि छोटे बच्चों से बुजुर्ग तक एक मशीन बनकर रह गए हैं।यह एक ऐसी मशीन है, जिसके अंदर दिल तो धड़कता है, किंतु वह ध्यान में नही रहता।
आप एक ऐसे वीभत्स समाज की कल्पना कीजिए, जिसे मोबाइल, टीवी, अखबार और पत्रिकाएं मिलजुल कर चला रही हैं, जिसमें बच्चे कच्ची उम्र में ही प्रौढ़ हो गए हैं। गांव से लेकर शहर तक आपको मोबाइल से खेलते बच्चे मिल जायेंगे, जिनकी नीव खोखली हो रही हैं। समाज में सुधार लाने और शिक्षा के माध्यम से बच्चों के मानसिक स्तर को उच्च कोटि का बनाने के लिए सरकार अरबों रुपए हर साल खर्च करती है, किंतु जब हम उन्हीं बच्चों के हाथों मोबाइल की डेढ़ जीवी डाटा को खत्म करते हुए उसे फिक्रमंद देखते हैं, तो ऐसा लगता है सारी सरकारी मिशनरियां असफल हो चुकी हैं।
डेढ़ जीवी डाटा खत्म करने के चक्कर में आज इंसान इतना व्यस्त हो गया कि उसके सामने कौन अपने और कौन पराए हैं, उसकी वह तनिक भी फिक्र नहीं करता। इसकी मार से दुनिया बेहाल हो उठी है, तंत्र को इसने असफल कर रखा है और तो और सामाजिक रिश्ते भी बिगड़ गए हैं।
होती होगी जिस्मों पर हुकूमत, किंतु रूहों पर हुकूमत नहीं होती, इस जैसी पुरानी बातें भी खत्म हो जाती हैं, जब हम देखते हैं कि डेढ़ जीवी मोबाइल डाटा ने इंसानी रूहों पर भी कब्जा कर रखा है। यह साफ दिखाई देता है कि एक ही घर में हर कोई है, किंतु उनकी रूहें आपस में बिखरी हुई हैं। कोई किसी से बातें नही करता, हर कोई हाथों में मोबाइल लिए व्यस्त रहता है।
इस व्यवस्था से जहां ज्ञान का प्रकाश उदित होना चाहिए था, अज्ञानता की काली छाया ने इंसानों को जकड़ रखा है। अपराध को इसने इस कदर जन्म दिया कि मनुष्य का मूल स्वभाव ही समाप्त हो गया है। खुशी, आनंद, ज्ञान, शांति और पवित्रता को नफरत, हिंसा, ईर्ष्या, लालच और तनाव ने जकड़ रखा है।
संयुक्त परिवार तो पहले से ही टूट रहे थे, किंतु इस डेढ़ जीवी मोबाइल डाटा ने उसकी कब्र ही खोद दी। इंसान सिर्फ भाग रहा है और उसे यह भी नहीं पता कि वह किधर भाग रहा है। न लक्ष्य तय है और न अंतिम पड़ाव। जिस मस्तिष्क में कभी लिख पढ़कर अच्छाइयां उपजती थीं, उसमें डेढ़ जीवी मोबाइल डाटा के खाद ने एक विशाल विष वृक्ष पैदा कर दिया।

Spread the love

By lamppost

Dr. Brajesh Verma was born on February 26, 1958, in the Bhagalpur district of Bihar. He has been in the field of journalism since 1987. He has worked as a sub-editor in a Hindi daily, Navbharat Times, and as a senior reporter in Hindustan Times, Patna and Ranchi respectively. Dr. Verma has authored several books including Hindustan Times Ke Saath Mere Din, Pratham Bihari: Deep Narayan Singh (1875–1935), Rashtrawadi Musalman (1885–1934), Muslim Siyaasat, Rajmahal and novels like Humsaya, Bihar – 1911, Rajyashri, Nadira Begum – 1777, Sarkar Babu, Chandana, Gulrukh Begum – 1661, The Second Line of Defence and Bandh Gali.