दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही दुनियां इस बात की जानकारी हासिल करने में जुटी रही कि आखिरकार आजाद हिन्द फौज के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की हवाई दुर्घटना में हुई कथित मौत का रहस्य क्या है। इस विषय में खोज आज भी जारी है और अभी तक कोई भी एजेंसी, सरकार, लेखक, पत्रकार यह दावे के साथ नही कह सकता कि 18 अगस्त 1945 को उस हवाई दुर्घटना में हुआ क्या था, जिसमें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सफर कर रहे थे।
इन्ही खोजों में डॉ. ब्रजेश वर्मा की किताब “सुभाष की खोज” एक ऐसी कड़ी है जो पाठकों को नेताजी की मृत्यु की खोज के एक नए रास्ते पर ले जाता है। इस पुस्तक को डॉ. वर्मा ने एक उपन्यास के रूप में लिखा है, जो सत्य और कल्पना का एक ऐसा समिश्रण है जिसे पढ़ते समय आप बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि क्या सचमुच नेताजी को रूस में लंबे समय तक बंद करके रखा गया था। और यदि ऐसा था तो यह सब किसके इशारे पर हो रहा था।
डॉ. ब्रजेश वर्मा, जो पेशे से पत्रकार रहे हैं, ने अपने इस उपन्यास में दावा किया है कि अस्सी के दशक में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के एक टॉप रैंक के सैनिक अधिकारी ने उन्हें अपना हस्ताक्षरयुक्त एक साक्षात्कार दिया था, जिसके आधार पर उन्होंने “सुभाष की खोज” की रचना की है।
इस उपन्यास में यह दर्शाया गया है कि भारत में आजादी के बाद आजाद हिंद फौज के कुछ बड़े रैंक के अधिकारियों ने एक ऐसी गुप्त संस्था का निर्माण किया था जिनका काम नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कथित तौर की सचाई को जानना था।
इस दिशा में मेजर रैंक की एक महिला अधिकारी, जिसका नाम उपन्यास में मेजर राधिका दिखाया गया है, को नेताजी की खोज की जिम्मेदारी दी जाती है। अब मेजर राधिका बैंकाक, वियतनाम, जापान, अफगानिस्तान और रूस तक की यात्रा गुप्त रूप से करती है। उसे किन लोगों का सहयोग मिलता है और किसका विरोध झेलना पड़ता है इसे इस उपन्यास में पूरे रहस्य और रोमांच के साथ दिखाया गया है।
उपन्यास में वर्णित घटनाएं 1958 की हैं, जब सोवियत संघ काफी मजबूती से साम्यवादी विचारधाराओं को आगे बढ़ा रहा था और भारत एक समाजवादी देश के रूप में उभरते हुए उसका समर्थन कर रहा था। इस पुस्तक में दर्जनों ऐसे सबूत दिखाए गए हैं जिससे पता चलता है कि 1958 तक नेताजी रूस के किसी जेल में कथित रूप से बंद थे। इसका कारण क्या था, इसे बहुत सारे तर्कों से समझाने की कोशिश की गई है। उस जहाज की पूरी बारीकी से जानकारी दी गई है, जिसमें कथित रूप से नेताजी सुभाषचंद्र बोस सवार होकर निकले थे और जो क्रैश हुआ था।
लेखक ने पूरे उपन्यास को प्रेजेंट टेंस में लिखा है, जिसे पढ़कर एक नई अनुभूति होती है क्योंकि हिंदी साहित्य में लेखन की यह विधा बहुत कम मिलती है।
आपको लगभग ढ़ाई सौ पेज की यह किताब निराश नही करेगी। इसका प्रकाशन हाल ही में notion press से हुआ है, जिसकी कीमत 300 रूपए मात्र हैं। यह किताब एमेजॉन, फिलिफकार्ट, कोबो, किंडल सहित अमेरिका और लंदन में भी उपलब्ध है, जिसकी कीमत क्रमश 10 डॉलर और 14 पाउंड है। डॉ ब्रजेश वर्मा ने अबतक 13 किताबों की रचना की है, जिनमें राज्यश्री, नादिरा बेगम, मुस्लिम सियासत, राजमहल, हमसाया, प्रथम बिहारी दीप नारायण सिंह, गुलरुख बेगन, बिहार 1911, हिंदुस्तान टाइम्स के साथ मेरे दिन और The Second Line of Defence शामिल हैं।
