ब्रजेश वर्मा :-
(दुमका): भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी सीता सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा उम्मीदवार नलिन सोरेन ने शुक्रवार को अपना- अपना नामांकन दाखिल किया।
दुमका लोकसभा सीट से दोनों उम्मीदवारों के नामांकन के समय जिस तरह से झारखंड के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति रही, उससे यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं है कि आनेवाले दिनों में दुमका का चुनावी शोर पूरे देश में फैलेगा। यहां मतदान अंतिम चरण के 1 जून को है।
झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी तथा पूर्व मंत्री एवं दुमका की विधायक रहीं डॉक्टर लुइस मरांडी ने अपने समर्थकों के साथ उस सीता सोरेन का मनोबल बढ़ाया, जिन्होंने ठीक चुनाव के पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा से त्यागपत्र देकर भाजपा का दामन पकड़ा है।
ऐसे में मुक्ति मोर्चा कैसे पीछे रहती ? अपने उम्मीदवार नलिन सोरेन को हौसला दिलाने के लिए स्वयं मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन और दुमका के विधायक एवं मंत्री बसंत सोरेन उपस्थित रहे।
नलिन सोरेन और सीता सोरेन का राजनीतिक रिकॉर्ड बहुत मजबूत है, किंतु दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। नलिन सोरेन दुमका से सटे शिकारीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से पिछले लगभग 35 साल से विधायक रहे हैं, जबकि सीता सोरेन दुमका के पास के जामा विधान सभा से पंद्रह साल से विधायक हैं।
दोनों उम्मीदवार राजनीति के मांझे खिलाड़ी हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इस लोकसभा चुनाव के ठीक पहले तक दोनों झारखंड मुक्ति मोर्चा परिवार के सदस्य रहे हैं। किंतु सीता सोरेन, जो मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो शिबू सोरेन की बहू हैं, ने अब भाजपा पर भरोसा कर लिया है।
दुमका लोकसभा में चल रही राजनीति कुछ अटपटा सा लगती है। खासकर भाजपा के लिए, जिसने अपने सीटिंग संसद सुनील सोरेन को टिकट देकर फिर बैठा दिया, क्योंकि चुनाव के बीच में ही सीता का भाजपा में प्रवेश हो गया था। सुनील सोरेन ने पिछली बार शिबू सोरेन को पराजित कर यह सीट हासिल की थी। सूत्रों के अनुसार उनका अपना खुद का बनाया हुआ समर्थक इस बात से आहत दिखता है और खबर यह है कि भाजपा के कुछ कार्यकर्ता इस चुनाव में रुचि नही ले रहे।
इसकी वजह एक घुसपैठ हो सकती है, हालाकि यह फैसला सीधे भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का है तो फिर पार्टी की जिम्मेदारी बनती है कि वह किस प्रकार अपने टूटते घड़े को जोड़कर रखे। अभी और भी कई शीर्ष भाजपा नेता दुमका आयेंगे। चूंकि चुनाव अंतिम चरण में है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा होना तय माना जा रहा है। जब जमावड़ा होगा तो स्थितियां बदल सकती हैं। इसबीच भाजपा के चुनावी मोर्चे को बाबूलाल मरांडी ने संभाल रखा है, जिनके साथ पूर्व मंत्री लुइस मरांडी का काफिला चल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस चुनाव में भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी के कंधों पर पार्टी की बहुत ही भारी जिम्मेदारी है। वे अत्यधिक भार को लेकर चल रहे हैं।
ठीक इसके उलट, झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ दिक्कत यह है कि उसके सबसे बड़े नेता पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जमीन घोटाले के एक मामले में जेल में हैं तथा मोर्चा समर्थक कांग्रेस के बड़े नेताओं के घरों से काले धन का भंडार पकड़ाता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण कांग्रेस नेता और मंत्री आलमगीर आलम हैं, जिनके पी ए के नौकर के घर से ई डी ने लगभग पैंतीस करोड़ रुपए बरामद किए। जिस तरह से झारखंड सरकार के मंत्रियों, अधिकारियों और समर्थकों के घरों से लूट के धन पकड़े जा रहे हैं वह इस नवोदित राज्य की शासन व्यवस्था को शर्मशार करती है। कांग्रेस और मोर्चा के लोगों के पास इसके सिवा इस बात का और कोई जवाब नही मिलता कि वे केंद्र की भाजपा सत्ता और ई डी पर पक्षपात का आरोप लगाए। लेकिन लोग तो थोक के भाव में पकड़े जा रहे रुपए को देख तो रहे हैं।
ऐसे में नलिन सोरेन के समर्थन में कांग्रेस के नेता क्या बोलेंगे? नलिन के चुनाव को आगे बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री चंपई सोरेन, कल्पना सोरेन और बसंत सोरेन पर ही उम्मीद टिकी है। वैसे दुमका लोकसभा क्षेत्र के अंदर आने वाले शिकारीपाड़ा विधानसभा में नलिन की अपनी जबरदस्त पकड़ है। किंतु एक क्षेत्र मात्र में निजी पकड़ का कोई खास फायदा तब तक नही होता, जबतक कि अन्य इलाकों से समर्थन नही मिले। किंतु जब मुक्ति मोर्चा के अपने कार्यकर्ता दुमका में जमा होंगे, तो वे हवा का रुख मोड़ सकते हैं, क्योंकि आदिवासी और मुस्लिम समाज पर उनकी पकड़ आज भी मजबूत है। दुमका लोकसभा एक रिजर्व सीट है।