ब्रजेश वर्मा:

जिन लोगों ने कभी भी मर्फी रेडिओ के उस प्रचार को देखा होगा, उन्हें एक खूबसूरत से चित्र जरूर याद होंगे, जिसे “मर्फी बेबी” के नाम से दुनिया जानती थी.
ब्रिटिश भारत में इम्पेरियल रेडिओ ऑफ़ इंडिया (1936) की स्थापना के कुछ साल पहले ही 1929 में फ्रैंक मर्फी और ई. जे. पावर ने मिलकर बाजार में मर्फी रेडियो को उतारा और उसके विज्ञापन में जिस खूबसूरत बच्चे की तस्वीर लगाईं गयी उसे दुनिया “मर्फी बेबी” के नाम से जानने लगी थी. बेबी ऐसी थी गृहणियों की नजर ही उसपर से नहीं हटतीं.
आज के नए युग के बच्चे, जिन्होंने स्मार्ट फोन को अपने जीवन का आधार बना लिया है और एक हद तक यह उनकी जरूरतों में शामिल है, शायद ही अपने पूर्वजों के उस जुनून को जान पाएं जो कभी रेडियो के दीवाने होते थे. अब ये किस्से-कहानियों वाली बातें बन चुकी हैं, फिर भी भारतीय गांव में और रडियो के कुछ दीवाने लोगों के बीच यह एक सदी से अधिक समय से आज भी जीवित है.
हेनरिच हर्ट्ज (1857-1894), जो कि एक जर्मन वैज्ञानिक था, ने सबसे पहले 1886 में रेडियो तरंगों की खोज की थी. फिर इटली के एक वैज्ञानिक जी. मार्कोनी (1874-1937) ने 1895-96 के बीच पहली बार रेडियो ट्रांसमीटर एंड रसीवर की खोज की और फिर 1900 में रेडियो आम लोगों के लिए उपलब्ध हो गयी. यह सब 19वीं सदी के अंत में हो रहा था, आज हमलोग 21वीं सदी में हैं और रेडियो आज भी बाजरा में है.
दुनिया के तमाम राजनेताओं रूजबेल्ट, चर्चिल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु, शुभाष चन्द्र बोस सहित हिटलर, तेजो, मुसोलिनी और स्टॅलिन जैसे अधिनायकों ने अपनी राजनीतिक ताकत के लिए रेडियो का खूब इस्तेमाल किया. नेताजी शुभाष बोस के कथित निधन अथवा गांधी जी की हत्या की खबर जब भारत के लोगों ने सुनी होगी हो उनपर क्या बीती होगी यह आज के लोग नहीं समझ सकते!
हम भूलवश रेडियो को सिर्फ मनोरंजन की वास्तु मान लेते हैं, जैसा कि आज अधिकांश लोग मोबाईल फोन को मान कर चल रहे हैं. वास्तविकता यह नहीं है. रेडियो संचार माध्यम की एक सबसे बड़ी ताकत रही जो आज भी अपनी सेवा दे रही है.
रेडियो तरंगों का क्या महत्व होता है इसे ब्रिटिश गणितग्य एलन टर्निंग (1912-1954) की जीवनी से समझा जा सकता है. एलन टर्निग ही वह व्यक्ति था जिसने दूसरे विश्वयुद्ध के समय एक ऐसा कंप्यूटर बनाया जो रेडियो तरंगों को पकड़ सकता था. जर्मनी में हिटलर ने एनिग्मा मशीन बनाया था जो हर रोज लाखों गुप्त संदेशों को भेजा करता, किन्तु उसके एनिग्मा से जो रेडियो तरंगें निकलतीं उसे कोई नहीं समझ पाता. फिर युवा एलन टर्निंग ने एक कंप्यूटर बना दिया जो एनिग्मा के गुप्त संदेशों को तोड़ देता था. इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन ने अटलांटिक महासागर में जर्मनी को परास्त कर दिया, अन्यथा द्वीतीय विश्वयुद्ध का नतीजा कुछ और ही होता.
रेडियो तरंगों से चलती हैं. हमारे देश में अधिकांश लोग चूँकि इसे एक मनोरंजन का साधन मानते हैं तो आल इंडिया रेडिओ जो कि बाद में आकाशवाणी कहलाया, बीबीसी समाचार, विविध भारती, क्रिकेट और हाकी की कमेंट्री और फिर रेडियो सिलोंन के अमीन सयानी के विनाका गीत माला के बिना बात अधूरी रह जाएगी.

अमीन सयानी रेडियो के उन महान व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने पचास हजार से भी अधिक रेडियो कार्यक्रम किए. उनके विनाका गीत माला, जो कि बुद्धवार को रात के आठ बजे रेडियो सिलोंन से आया करती, इतना प्रसिद्द था कि उसने दशको तक लोगों को बांधे रखा. भारत में रेडियो पर प्रसारित होने वाले हॉकी और क्रिकेट के कमेंट्री आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर छाए हुए हैं.
अनगिनत कहानियां हैं रेडियो की और अनगिनत लोग हैं जिन्होंने इस प्लेटफार्म से अपने कैरियर की शुरुआत की. आज तो ऍफ़ एम् का जमाना है. उम्मीद है रेडियो इस सदी में भी अपने सफर को जारी रखेगा.