
अनुपमा शर्मा:-
*ॐ हिंगुले परम हिंगुले अमृत रुपिणी।*
तनु शक्ति मनः शिवे श्री हिंगुलाय नमः स्वाहा।।
हिंगलाज शक्तिपीठ इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है । यह शक्तिपीठ मन्दिर सिंधु नदी के मुहाने पर पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के किनारे चन्द्रकूप पहाड़ पर एक हिन्दू शक्तिपीठ के रूप में स्थित है। सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में विशालकाय क्षेत्र में बने इस गुफा मन्दिर की भव्यता इतनी है कि देखने वाले आश्चर्य चकित रह जाते हैं। माता को लोग हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इस मन्दिर में शक्तिपीठ की प्रतिरूप माता की दर्शनीय प्रतिमा विराजमान है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान (मन्दिर)दो हजार साल पूर्व भी यहीं था । पुराणों में हिंगलाज शक्तिपीठ की अतिशय महिमा कही गयी है। श्रीमद्भागवतानुसार यह हिंगुला देवी का प्रिय महास्थान है।-–
‘हिंगुलाया महस्थान ‘ ब्रह्मवैवर्त पुराणानुसार माता हिंगुला के दर्शन करने से पुनर्जन्म के कष्टों से मुक्ति मिलती है। बृहन्नील तंत्रानुसार यहाँ माता सती का ब्रह्मरंध्र( मस्तिष्क) गिरा था । यहाँ माता हिंगुला रूप में तथा शिव भीमलोचन हैं । शक्तिपीठ में माता के ज्योतिर्मय शक्ति के रूप में दर्शन होते हैं। हिन्दू – मुस्लिम दोनों ही समुदायों के लोगों के बीच इस स्थान की मान्यता है । हिन्दू इसे हिंगुला शक्ति पीठ मानते हैं तो मुस्लिम इसे नानी हज। मुसलमान हिंगुला माता को नानी कहते हैं। हिंगलाज को आग्नेय शक्तिपीठ तीर्थ भी कहते हैं। स्कंदपुराण,वामन पुराण, व दुर्गा चालीसा में “हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
महिमा अमित ना न् जात बखानी” वर्णित है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जो व्यक्ति एक बार हिंगलाज माता के दर्शन कर लेता है उसे पूर्वजन्म के कर्मों को नहीं भुगतना पड़ता है । भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ने यहाँ घोर तप किया था उनका स्थान आशाराम आज भी यहाँ स्थित है । भगवान परशुराम द्वारा इक्कीस बार इस धरती से क्षत्रियों का अंत किया गया जब बचे हुए क्षत्रियों ने हिंगलाज माता की शरण ली तो माता ने उन्हें अभयदान दे ब्रह्मक्षत्रिय बना दिया। रावण वध के पश्चात भगवान राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा इस पाप से मुक्ति के लिये उन्होंने भी हिंगलाज शक्तिपीठ की यात्रा की और यहाँ एक यज्ञ भी किया। इस शक्तिपीठ का दर्शन गुरु गोरक्षनाथ, गुरु नानक देव जी व बाबा मखान जैसे महान संतों ने भी किया है। देवी का यहाँ मानवीय में रूप नहीं हैं बल्कि एक शिला के रूप में विराजमान हैं। हिंगलाज शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि यहाँ रात्रि में सभी शक्तियाँ एकत्रित होकर रास रचाती हैं और सुबह होते ही हिंगलाज माता में समा जाती हैं। मन्दिर के बगल में ही गुरु गोरक्षनाथ जी का चश्मा है मान्यतानुसार भोर में माता हिंगलाज यहीं स्नान करती हैं। मन्दिर में प्रवेश करने के लिये पत्थर की सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। सबसे पहले भगवान गणेश के दर्शन होते हैं जो रिद्धि-सिद्धि के दाता हैं। सामने ही माता हिंगलाज की प्रतिमा है । वैष्णोदेवी हिंगलाज माता की ही प्रतिमूर्ति हैं । हिंगलाज माता गुफा में ही हैं इसलिए उनको देख वैष्णो देवी का अनुभव होता है ।
इस शक्ति पीठ मन्दिर को मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा कई बार नष्ट करने का प्रयास किया लेकिन वह कभी सफल नहीं हुए बल्कि नष्ट हो गए।
पहले यह क्षेत्र भारत का ही हिस्सा था लेकिन विभाजन के बाद यह पाकिस्तान में चला गया।
यहाँ माता का चुल भी है चुल का मतलब अंगारों से भरा पथ ,मन्नतधारी लोग ही इस पथ पर चलते हैं।जो भी इस दहकते पथ को पार करता है उसे कोई हानि नहीं पहुँचती और उसकी मनोकामना भी पूर्ण होती है। ये माता का चमत्कार साक्षात यहाँ सभी को दिखता है।


*आदि अंत मध्य मात तेरो रूप सर्जनी ।
नमोस्तु मात हिंगुलाज निर्मला निरंजनी।।*